भारत और अमेरिका ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में समस्याओं के शांतिपूर्ण निदान के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा गठबंधन बनाने की आवश्यकता जताई है। उल्लेखनीय है कि चीन इस क्षेत्र में अपनी ताकत दिखाकर समुद्री सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है। 15 वीं शांगरी ला वार्ता में रक्षा मंत्री मनोहर र्पीकर ने कहा, समस्याओं को धमकी या बल के इस्तेमाल से सुलझाने की कोशिश को नया गठबंधन निश्चित तौर पर कमजोर करेगा। यही नहीं इलाके में आतंकवाद और कट्टरपंथ के खतरे से भी इस गठबंधन के जरिये निपटा जा सकेगा। पाइरेसी और प्राकृतिक आपदा की स्थिति से निपटने में भी गठबंधन सक्षम होगा। इस गठबंधन से संबद्ध देशों में आपसी विश्वास बढ़ेगा। र्पीकर ने कहा कि भारत समुद्री किनारे के क्षेत्रीय देशों के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाकर ब्लू इकोनॉमी विकसित करना चाहता है।
र्पीकर ने दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर कहा कि समुद्र में जाने-आने का अधिकार सभी का है। वहां के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन होना चाहिए। वहां पर किसी तरह की धमकी और बल के इस्तेमाल की जरूरत नहीं होनी चाहिए। इलाके के सभी देशों का उद्देश्य आर्थिक तरक्की है, वह तभी संभव है जब इलाके में शांति और सद्भाव होगा। उन्होंने पश्चिम एशिया का उदाहरण दिया, जहां पैदा अशांति की वजह से आर्थिक तरक्की प्रभावित हुई है। अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन में अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने कहा, इस गठबंधन में चीन भी शामिल हो सकता है। लेकिन उसे दक्षिण चीन सागर में अपनी विस्तारवादी नीतियों पर रोक लगानी होगी। कार्टर ने कहा कि यह गठबंधन एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को मजबूती देगा। चीन ने प्रस्तावित गठबंधन पर सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की है। चीनी रक्षा मंत्रलय में विदेशी मामलों के निदेशक रियर एडमिरल गुआन यूफेई ने कहा है कि अमेरिका की अगुआई में एशियाई देशों के बनने वाले गठबंधन का चीन स्वागत करता है। लेकिन वह भड़कावे वाली किसी भी कार्रवाई का विरोध करेगा जिससे क्षेत्र की शांति को खतरा पहुंचे। गौरतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर दक्षिण चीन सागर के करीब-करीब पूरे हिस्से पर चीन दावा करता है। इस इलाके में वह कई कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर चुका है। वह अपनी सामरिक क्षमता भी लगातार बढ़ा रहा है।
र्पीकर ने दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर कहा कि समुद्र में जाने-आने का अधिकार सभी का है। वहां के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन होना चाहिए। वहां पर किसी तरह की धमकी और बल के इस्तेमाल की जरूरत नहीं होनी चाहिए। इलाके के सभी देशों का उद्देश्य आर्थिक तरक्की है, वह तभी संभव है जब इलाके में शांति और सद्भाव होगा। उन्होंने पश्चिम एशिया का उदाहरण दिया, जहां पैदा अशांति की वजह से आर्थिक तरक्की प्रभावित हुई है। अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन में अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने कहा, इस गठबंधन में चीन भी शामिल हो सकता है। लेकिन उसे दक्षिण चीन सागर में अपनी विस्तारवादी नीतियों पर रोक लगानी होगी। कार्टर ने कहा कि यह गठबंधन एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को मजबूती देगा। चीन ने प्रस्तावित गठबंधन पर सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की है। चीनी रक्षा मंत्रलय में विदेशी मामलों के निदेशक रियर एडमिरल गुआन यूफेई ने कहा है कि अमेरिका की अगुआई में एशियाई देशों के बनने वाले गठबंधन का चीन स्वागत करता है। लेकिन वह भड़कावे वाली किसी भी कार्रवाई का विरोध करेगा जिससे क्षेत्र की शांति को खतरा पहुंचे। गौरतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर दक्षिण चीन सागर के करीब-करीब पूरे हिस्से पर चीन दावा करता है। इस इलाके में वह कई कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर चुका है। वह अपनी सामरिक क्षमता भी लगातार बढ़ा रहा है।
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