वैसे तो भारतीय कूटनीति में पिछले डेढ़ दशक से ‘लुक ईस्ट’ का नारा यादा बुलंद है लेकिन अभी ऐसा लगता है कि मोदी सरकार के लिए खाड़ी क्षेत्र के देश यादा महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के पहले दो वर्षो में ही खाड़ी क्षेत्र की चारों बड़ी ताकतों (संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ईरान और कतर) की यात्र कर चुके हैं। इन देशों के साथ भारत ने कई अहम समझौते किए हैं। खाड़ी में पहुंच बढ़ाने की मोदी सरकार की तेजी को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि एक-दूसरे के कट्टर विरोधी देश सऊदी अरब और ईरान को एकसाथ साधने की कोशिश हो रही है। विदेश मंत्रलय के अधिकारी बताते हैं कि अभी सिर्फ शुरुआत है, खाड़ी देशों के साथ गहरी कूटनीति का दौर आगे और तेज होगा।
अस्सी लाख भारतीयों की चिंता : विदेश मंत्रलय के अधिकारियों का कहना है कि खाड़ी इस समय सबसे संकट काल से गुजर रहा है। लेकिन भारत की सबसे बड़ी चिंता वहां रह रहे अपने 80 लाख नागरिकों की है। ये सालाना अपने देश 70 अरब डॉलर की राशि भेजते हैं जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए काफी अहम है। इराक युद्ध और हाल के सीरिया-यमन विवाद में भारत देख चुका है कि अपने नागरिकों को वापस लाने में कूटनीति काफी अहम होती है।
ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी जरूरी: इन्हें यादा तवजो देने के पीछे दूसरी वजह देश की ऊर्जा सुरक्षा है। विदेश सचिव एस. जयशंकर ने पिछले गुरुवार को बताया कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरत का दो तिहाई खाड़ी देशों से आयात करता है। कतर से भारत अपनी कुल गैस का 65 फीसद आयात करता है। सऊदी अरब और ईरान से भारत सबसे यादा कचा तेल खरीदता है। ऐसे में रिश्तों को बेहतर बनाना देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी है।
हथियार बाजार में भारत चाहता है हिस्सा : जानकार मानते हैं कि पिछले चार से पांच वर्षो में खाड़ी क्षेत्र में जिस तरह के बदलाव हुए हैं, उससे आने वाले दिनों में यहां हथियारों की खरीद बड़े पैमाने पर होगी। भारत अब हर तरह के हथियार बनाने की क्षमता हासिल कर चुका है तो उसे यहां एक बेहतर बाजार दिख रहा है। सऊदी अरब और कतर ने भारत से कई तरह के हथियार खरीदने में रुचि भी दिखाई है।
खाड़ी के सॉवरिन फंड पर नजर : इस कूटनीति के पीछे एक अहम वजह खाड़ी देशों का लबालब भरा हुआ सॉवरिन फंड भी है। मोदी की यूएई यात्र के दौरान 75 अरब डॉलर भारत के ढांचागत क्षेत्र में निवेश का समझौता हुआ है जबकि कतर के साथ भी रविवार को इसी तरह का समझौता किया गया है। खाड़ी के अन्य देशों के पास भी निवेश लायक काफी फंड है। भारत अभी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहा अर्थव्यवस्था है। इसे बनाए रखने के लिए सरकार को ढांचागत क्षेत्र में भारी भरकम निवेश करने की जरूरत है। पीएम मोदी की कोशिश अभी तक काम करती दिख रही है।
अस्सी लाख भारतीयों की चिंता : विदेश मंत्रलय के अधिकारियों का कहना है कि खाड़ी इस समय सबसे संकट काल से गुजर रहा है। लेकिन भारत की सबसे बड़ी चिंता वहां रह रहे अपने 80 लाख नागरिकों की है। ये सालाना अपने देश 70 अरब डॉलर की राशि भेजते हैं जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए काफी अहम है। इराक युद्ध और हाल के सीरिया-यमन विवाद में भारत देख चुका है कि अपने नागरिकों को वापस लाने में कूटनीति काफी अहम होती है।
ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी जरूरी: इन्हें यादा तवजो देने के पीछे दूसरी वजह देश की ऊर्जा सुरक्षा है। विदेश सचिव एस. जयशंकर ने पिछले गुरुवार को बताया कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरत का दो तिहाई खाड़ी देशों से आयात करता है। कतर से भारत अपनी कुल गैस का 65 फीसद आयात करता है। सऊदी अरब और ईरान से भारत सबसे यादा कचा तेल खरीदता है। ऐसे में रिश्तों को बेहतर बनाना देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी है।
हथियार बाजार में भारत चाहता है हिस्सा : जानकार मानते हैं कि पिछले चार से पांच वर्षो में खाड़ी क्षेत्र में जिस तरह के बदलाव हुए हैं, उससे आने वाले दिनों में यहां हथियारों की खरीद बड़े पैमाने पर होगी। भारत अब हर तरह के हथियार बनाने की क्षमता हासिल कर चुका है तो उसे यहां एक बेहतर बाजार दिख रहा है। सऊदी अरब और कतर ने भारत से कई तरह के हथियार खरीदने में रुचि भी दिखाई है।
खाड़ी के सॉवरिन फंड पर नजर : इस कूटनीति के पीछे एक अहम वजह खाड़ी देशों का लबालब भरा हुआ सॉवरिन फंड भी है। मोदी की यूएई यात्र के दौरान 75 अरब डॉलर भारत के ढांचागत क्षेत्र में निवेश का समझौता हुआ है जबकि कतर के साथ भी रविवार को इसी तरह का समझौता किया गया है। खाड़ी के अन्य देशों के पास भी निवेश लायक काफी फंड है। भारत अभी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहा अर्थव्यवस्था है। इसे बनाए रखने के लिए सरकार को ढांचागत क्षेत्र में भारी भरकम निवेश करने की जरूरत है। पीएम मोदी की कोशिश अभी तक काम करती दिख रही है।
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