Friday 17 June 2016

16 June 2016...1.ईयू पर ब्रिटेन में जनमत संग्रह पर भारत की भी नजर:-

आगामी 23 को ब्रिटिश जनता जनमत संग्रह में हिस्सा लेकर यह बता देगी कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ का हिस्सा रहेगा या नहीं। जनमत संग्रह के पहले के अधिकांश सर्वेक्षण में यह बताया जा रहा है कि ब्रिटिश जनता यूरोपीय संघ के साथ रहने में अब यादा इछुक नहीं है। ऐसे में भारतीय कूटनीति तय करने वाले आला अधिकारी और देश का उद्योग जगत भी मानने लगा है कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (ईयू) से अलग होने का भारत पर भी कई तरह से असर होना तय है। यह असर कूटनीति से लेकर अर्थव्यवस्था तक में महसूस किया जाएगा। देश के शेयर व मुद्रा बाजार और यूरोपीय संघ के साथ द्विपक्षीय कारोबार पर भी इसके बड़े असर की संभावना जताई जा रही है। जानकार यह भी मानते हैं कि इस तरह का फैसला आगे चलकर देश की रक्षा, राजनीति, आव्रजन समेत अन्य नीतियों पर भी असर डालेंगी।
वैश्विक मंदी का खतरा : ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में नहीं रहने पर भारतीय कूटनीति पर क्या असर पड़ेगा इस बारे में पूछने पर विदेश मंत्रलय के अधिकारी बताते हैं कि डिप्लोमेसी के तौर पर बहुत यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि ईयू का सदस्य होने के बावजूद ब्रिटेन के साथ भारत के द्विपक्षीय रिश्ते अपने हिसाब से आगे बढ़ रहे थे। हां, ब्रिटेन अगर ईयू का सदस्य बना रहता है तो हो सकता है कि आगे कुछ वर्षो बाद इनके बीच द्विपक्षीय रिश्ते ईयू व भारत के आधार पर तय हो। लेकिन यह स्थिति अभी तक नहीं है। हां, ब्रिटेन के अलग होने से वैश्विक मंदी के और गहराने की आशंका जताई जा रही है क्योंकि ब्रिटेन के कुल निर्यात का आधा यूरोपीय यूनियन को ही होता है। अगर ऐसा होता है तो जाहिर है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा होने की वजह से भारत पर भी असर पड़ेगा। यह भी देखना होगा कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच विशेष द्विपक्षीय व्यापार समझौते (मुक्त व्यापार समझौते जैसा) को लेकर जो बात चल रही है उसका भविष्य क्या होगा। ब्रिटेन पहले ही भारत के साथ अलग मुक्त व्यापार समझौता करने की ख्वाहिश जता चुका है। यह सब बातें भविष्य के गर्भ में हैं।
शेयर व मुद्रा बाजार संशय में : कई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थागत अपनी रिपोर्ट में यह चेतावनी दे चुकी हैं कि ब्रिटेन के बाहर होने से वैश्विक मंदी यादा लंबी खिंच सकती है। खासतौर पर यूरोपीय देशों की मंदी यादा गहरा सकती है। जानकार इसे 2008 की वैश्विक मंदी के बाद सबसे बड़े वित्तीय घटनाक्रम के तौर पर देख रहे हैं। इससे वैश्विक बाजार में अस्थिरता फैलने का भी खतरा है। शेयर बाजार से पैसा निकालने की होड़ शुरू हो सकती है। 
कोटक सिक्यूरिटीज के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट दीपेन शाह का कहना है कि आने वाले दिनों में शेयर व मुद्रा बाजार पर ब्रिटेन में जनमत संग्रह का काफी असर पड़ेगा। खास तौर पर इससे मुद्रा बाजार में काफी अस्थिरता फैलने के आसार हैं। मैकलाइ फाइनेंशियल के सीईओ जमाल मैकलाई भी मानते हैं कि भारत के सामने बड़ी चुनौती मुद्रा बाजार की अस्थिरता ला सकती है। यूरो और ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिग की अस्थिरता से डॉलर पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में भारतीय रुपये में और कमजोरी आने की आशंका है। माना जाता है कि इस तरह की स्थिति देश में होने वाले निवेश पर भी असर डालेगा।
सकते में ब्रिटिश भारतीय उद्यमी : पिछले एक दशक के भीतर ब्रिटेन भारतीय कंपनियों के लिए निवेश का सबसे पसंदीदा स्थल बन गया है। हाल ही में ब्रिटेन में रहने वाले 81 भारतीय उद्यमियों ने कहा है कि ब्रिटेन का ईयू में रहना ही उनके हित में है। अभी तकरीबन सौ भारतीय कंपनियां वहां ब्रिटेन में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी हैं और भारत वहां निवेश करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। ऐसे में वहां होने वाले बदलाव से ये कंपनियां सीधे तौर पर प्रभावित होंगी।

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