न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की सदस्यता को लेकर चीन के विरोध को सरकार बहुत यादा अहमियत नहीं दे रही है। उसका मानना है कि भारत और चीन के बीच यह ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसका हल न निकाला जा सके। इसलिए अतिसंवेदनशील माने जा रहे इस मुद्दे को लेकर भारत एनएसजी के भीतर किसी भी तरह का ध्रुवीकरण होने देने के पक्ष में नहीं है।देश मंत्रलय के सूत्रों का मानना है कि चीन के विरोध को बहुत अधिक तवजो नहीं दी जानी चाहिए। दोनों देशों के परस्पर हित जुड़े हैं। इसीलिए सरकार मानती है कि एनएसजी की सदस्यता के मुद्दे पर चीन के विरोध का हल निकाला जा सकता है। हालांकि सूत्रों ने माना कि जिस तरह मीडिया में इस मुद्दे को लेकर खबरे आ रही हैं, वे भारतीय हितों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। एनएसजी में भारत की सदस्यता को लेकर हो रहे विरोध पर सूत्रों का मानना है कि ऐसे देशों की संख्या काफी सीमित है। एनपीटी पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की सूची में नहीं होने के चलते चीन समेत कुछ देश भारत की सदस्यता का विरोध कर रहे हैं। हालांकि भारत को एनएसजी के बाहर रहते हुए भी कई सुविधाएं हासिल हैं। लेकिन अब भारत इस ग्रुप के भीतर रहकर इसके नियमों के पुनर्निर्धारण में अपनी भूमिका अदा कर सकता है। इस मामले में पहले ही काफी वक्त बीत चुका है। जानकारों का मानना है कि भारत अब जितना लाभ ले सकता है, उसे हासिल कर लेना चाहिए। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति में काफी बदलाव दिखने लगा है। हाल के अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की वर्तमान स्थिति क्या है और वह विदेशी सहयोगियों से क्या अपेक्षा करता है? विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि पीएम मोदी के हाल के विदेश दौरों से भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर कोई देश भारत के साथ संबंध बनाने के पीछे कोई उद्देश्य या महत्वाकांक्षा रखता है तो भारत की भी अपनी महत्वाकांक्षाएं और उद्देश्य हैं। हाल के वर्षो में कूटनीति में भारतीय परिप्रेक्ष्य के लिहाज से इसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के हालिया दौरे को मेक इन इंडिया के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अमेरिका में माना गया कि भारत ने कारोबार करना आसान बनाने की दिशा में काफी कदम उठाए हैं। खासतौर पर रक्षा के क्षेत्र में नियमों को काफी उदार बनाया गया है। दरअसल रक्षा क्षेत्र में अभी तक के नियम सिर्फ ट्रेडिंग को बढ़ावा देते थे। जबकि मौजूदा सरकार ने निर्माण को बढ़ावा देने की दिशा में नीतियों में बदलाव की प्रक्रिया शुरू की है।
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