दुनिया भर में अपनी कूटनीति के झंडे मोदी सरकार भले ही गाड़ रही हो लेकिन नेपाल के साथ भारत के रिश्ते लगातार बिगड़ रहे हैं। बहरहाल, भारत ने नेपाल के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया फिर शुरू की है। नेपाल के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री कमल थापा आज तीन दिवसीय यात्रा पर दिल्ली पहुंचे। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से उनकी काफी सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत हुई। स्वराज ने नेपाल की इन आशंकाओं को दूर करने की भरसक कोशिश की कि भारत वहां किसी भी तरह की अस्थिरता चाहता है। स्वराज ने साफ तौर पर कहा कि भारत एक मजबूत और स्थिर नेपाल चाहता है। नेपाल ने भी अपने रुख में बदलाव होने के संकेत दिए। थापा ने कहा कि भारत के साथ रिश्ते की तुलना किसी दूसरे देश के साथ नहीं की जा सकती। चीन के साथ दोस्ती कभी भी भारत के साथ रिश्तों का विकल्प नहीं हो सकता। नेपाल चीन और भारत-दोनों के विकास का फायदा लेने को इच्छुक है और इसके लिए दोनों देशों के साथ बेहतर रिश्ता बनाना चाहता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भारत की शर्त पर चीन से दोस्ती बढ़ाई जाए।थापा ने कहा कि पूरी दुनिया में तेजी से बदलाव आ रहे हैं और नेपाल उनके साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रहा है। हिमालय 50 वर्ष पहले तक बहुत बड़ी बाधा था लेकिन आज यह नहीं है। रेलमार्ग हिमालय तक पहुंच चुके हैं। तिब्बत को बेहतरीन सड़क मार्ग से जोड़ा जा चुका है। नेपाल भी इस बदलाव का फायदा उठाकर विकसित होना चाहता है। मधेशी आंदोलन और संविधान संशोधन मुद्दे पर उपजे विवाद के बारे में उन्होंने कहा कि हम इनका शांतिपूर्ण हल जरूर निकालेंगे। नेपाल सरकार ने इसके लिए एक समिति बनाई है जिसे तीन महीने में सुझाव देने को कहा गया है। पीएम केपी शर्मा ओली की तरफ से भारत विरोधी बयानों के बारे में थापा ने कहा कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा था बल्कि भारतीय मीडिया ने उसे गलत तरीके से पेश किया है। भारत में नेपाल के राजदूत दीप उपाध्याय को अचानक बुलाने के फैसले पर उन्होंने कहा कि यह फैसला सिर्फ इस आधार पर लिया गया था कि हमें उनसे भी एक योग्य अधिकारी इस काम के लिए मिल गया था। भारतीय पक्ष ने भी थापा और स्वराज की बैठक को काफी अच्छा माना है। बताते चलें कि नेपाल में संविधान संशोधन के मुद्दे पर भारत के साथ उसके रिश्ते पिछले कुछ महीनों से काफी खराब चल रहे हैं। नेपाल के पीएम ओली की तरफ से भारत विरोधी बयान देने से मामला काफी बिगड़ गया। नेपाल सरकार के दबाव में वहां की राष्ट्रपति को अपनी भारत यात्रा रद्द करनी पड़ी। भारत स्थित राजदूत को हटाने को भी भारत विरोधी कदम के तौर पर देखा गया।
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