फरवरी, 2016 में अपनी भारत यात्र के दौरान अमेरिकी नौ सेना के मुखिया (चीफ ऑफ यूएस नवल ऑपरेशंस) जॉन रिचर्डसन ने जब यह कहा था कि ‘भारत और अमेरिका आपसी सहयोग से एयरक्राफ्ट कैरियर (लड़ाकू विमान वाहक पोत) के निर्माण की दिशा में काफी आगे पहुंच गए हैं,’ तब दुनिया भर के विशेषज्ञों ने इस पर अचंभा जताया था। लेकिन मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति बराक ओबामा के सामने वाशिंगटन में दोनों देशों के रक्षा मंत्रलयों के बीच इस बारे में समझौता होने के बाद अब किसी को इस बात का शक नहीं रह गया है कि अमेरिका भारत को दुनिया के सबसे शक्तिशाली और आधुनिक युद्धक विमान वाहक पोत के निर्माण में मदद नहीं करेगा। भारत ने पहले ही इस पोत का नाम सोच रखा है ‘विशाल’। ओबामा और मोदी की मुलाकात के बाद भारत और अमेरिका के बीच वैसे तो आठ समझौते हुए हैं। लेकिन युद्धक विमान वाहक पोत के निर्माण संबंधी समझौते को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है जिसका असर वैश्विक होगा। दोनों देशों की तरफ से जारी विज्ञप्ति में इस समझौते का जिक्र सिर्फ एक लाइन में है कि भारतीय रक्षा मंत्रलय और अमेरिका के रक्षा विभाग के बीच एयरक्राफ्ट कैरियर की तकनीकी से जुड़ी सूचना-आदान प्रदान करने संबंधी समझौता हुआ है। यह पहली बार होगा कि अमेरिका अपनी युद्धक विमान वाहक पोतों की तकनीकी किसी दूसरे देश को देगा। माना जा रहा है कि इससे अरब, प्रशांत और हिंद महासागरीय क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे को माकूल तरीके से चुनौती दी जा सकेगी। यह भी सच है कि यह एक कदम भारतीय नौ सेना की मौजूदा ताकत को कई गुना बढ़ाने की क्षमता रखता है।
जानकारों के मुताबिक, भारत ने छह वर्ष पहले ही देश में एक अत्याधुनिक एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने का फैसला लिया था। अभी भारत के पास इस तरह के दो कैरियर हैं- विक्रमादित्य और विराट। विराट जल्द ही रिटायर होगा। नए विक्रांत पर तेजी से काम हो रहा है और वह वर्ष 2018 तक शामिल किया जाएगा।
80 युद्धक विमान तक रखे जा सकते हैं : भारत का नया एयरक्राफ्ट कैरियर जिसकी योजना अभी बन रही है, वह सबसे महत्वाकांक्षी योजना होगी जो अब अमेरिकी तकनीकी की मदद से बनेगी। मसलन, अब इसे आणविक ऊर्जा से चलने वाला बनाया जा सकता है ताकि यह वर्षो तक गहरे समुद्र में रहकर अपनी सेवा दे सकता है। साथ ही, पहले इसकी क्षमता 60 से 65 हजार टन रहने की योजना थी, उसे अब बढ़ाकर 80 हजार टन किया जा सकता है। 60 से 65 हजार टन की क्षमता वाले युद्धपोत पर 40 से 45 युद्धक विमानों को एकसाथ रखा जा सकता है जबकि अगर इसकी क्षमता 80 हजार टन की जाए तो इसमें 80 युद्धक विमान रखे जा सकते हैं। यही नहीं, कई अत्याधुनिक युद्धक विमानों को एकसाथ उतारा और उड़ाया जा सकता है।
चीन पर लग सकेगी नकेल
अमेरिकी नौ सेना को अमेरिकी ताकत की रीढ़ माना जाता है। अमेरिका के पास 10 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं लेकिन हिंद और प्रशांत महासागर में जिस तरह से चीन अपनी ताकत बढ़ा रहा है, इससे वह भारत को एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने में मदद करने को तैयार हुआ है। वैसे भी, चीन जिस तरह से भारत के चारों तरफ छोटे-छोटे नौ सैनिक अड्डे बना रहा है, वे भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती हैं।
जानकारों के मुताबिक, भारत ने छह वर्ष पहले ही देश में एक अत्याधुनिक एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने का फैसला लिया था। अभी भारत के पास इस तरह के दो कैरियर हैं- विक्रमादित्य और विराट। विराट जल्द ही रिटायर होगा। नए विक्रांत पर तेजी से काम हो रहा है और वह वर्ष 2018 तक शामिल किया जाएगा।
80 युद्धक विमान तक रखे जा सकते हैं : भारत का नया एयरक्राफ्ट कैरियर जिसकी योजना अभी बन रही है, वह सबसे महत्वाकांक्षी योजना होगी जो अब अमेरिकी तकनीकी की मदद से बनेगी। मसलन, अब इसे आणविक ऊर्जा से चलने वाला बनाया जा सकता है ताकि यह वर्षो तक गहरे समुद्र में रहकर अपनी सेवा दे सकता है। साथ ही, पहले इसकी क्षमता 60 से 65 हजार टन रहने की योजना थी, उसे अब बढ़ाकर 80 हजार टन किया जा सकता है। 60 से 65 हजार टन की क्षमता वाले युद्धपोत पर 40 से 45 युद्धक विमानों को एकसाथ रखा जा सकता है जबकि अगर इसकी क्षमता 80 हजार टन की जाए तो इसमें 80 युद्धक विमान रखे जा सकते हैं। यही नहीं, कई अत्याधुनिक युद्धक विमानों को एकसाथ उतारा और उड़ाया जा सकता है।
चीन पर लग सकेगी नकेल
अमेरिकी नौ सेना को अमेरिकी ताकत की रीढ़ माना जाता है। अमेरिका के पास 10 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं लेकिन हिंद और प्रशांत महासागर में जिस तरह से चीन अपनी ताकत बढ़ा रहा है, इससे वह भारत को एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने में मदद करने को तैयार हुआ है। वैसे भी, चीन जिस तरह से भारत के चारों तरफ छोटे-छोटे नौ सैनिक अड्डे बना रहा है, वे भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती हैं।
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