भारत को सेमीकंडक्टर हब बनाने की महत्वाकांक्षी योजना कई अड़चनों का शिकार हो गई है। जेपी इंफ्राटेक के कुछ हफ्तों बाद एसटीटी माइक्रो ने भी भारी-भरकम निवेश वाली चिप उत्पादन परियोजना से हाथ खींच लिया है। इस तरह देश को स्मार्टफोन के लिए सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में चीन और ताइवान के बरक्स खड़ा करने की कोशिशें परवान चढ़ने से पहले ही दम तोड़ती नजर आ रही हैं। अब केंद्र सरकार की ओर से नए सिरे से प्रयास करने की बात कही जा रही है। सरकार ने करीब तीन साल पहले देश में निजी क्षेत्र की ओर से 5-5 अरब डॉलर के निवेश वाले दो चिप प्लांट लगाने का एलान किया था। ये प्लांट भारत को ग्लोबल मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने योजना का हिस्सा थे। इन प्लांटों के लगने से चिप आयात में कमी आने के साथ ही हजारों की तादाद में नौकरियां पैदा होतीं। देश भी सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में चीन और ताइवान को टक्कर देने की स्थिति में होता। मगर इस महात्वाकांक्षी योजना की राह भी खराब बुनियादी ढांचे, लालफीताशाही, बिजली आपूर्ति की बदतर व्यवस्था और लचर प्लानिंग जैसी अड़चनों ने रोक ली। पहले जेपी इंफ्राटेक ने अपने चिप मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट से हटने की घोषणा की। जेपी समूह की यह कंपनी अमेरिका की आइबीएम कॉर्प और इजरायल की टावर जैज के साथ मिलकर यह प्लांट लगा रही थी। वहीं, दूसरा प्लांट स्टार्ट अप फर्म हिंदुस्तान सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी (एचएसएमसी) की अगुआई में यूरोप की एसटीमाइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स और मलेशिया की सिल्टेरा का कंसोर्टियम लगा रहा था। इस प्लांट के लिए कंसोर्टियम जरूरी फंड का इंतजाम नहीं कर पाया।इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीकी विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि तीन साल में सेमीकंडक्टर से जुड़ी टेक्नोलॉजी में खासा बदलाव आया है। अब सेमीकंडक्टर उद्योग में 14 नैनोमीटर जितने छोटे चिप का जोर है। आगे इसके 10 नैनोमीटर से भी कम पर आने की उम्मीद है। इस वजह से निवेशक भी भारत सरकार की 22 नैनोमीटर की चिप फैब्रिकेटर स्थापित करने की योजना पर संदेह करने लगे हैं। अब सरकार इसके लिए नए सिरे से प्रयास करेगी। इसी तरह एचएसएमसी के संस्थापक देवेन वर्मा ने कहा कि चिप मांग को लेकर हमारे मूल अनुमान गलत थे। अब हमने अपने प्लांट स्थापित करने की योजना को टाल दिया है, क्योंकि भारत में अभी सेमीकंडक्टर का कोई बाजार ही नहीं है।
No comments:
Post a Comment