Friday 24 June 2016

24 June 2016...2. डीआरडीओ विदेशी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार:-

 प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआइ से जुड़े नियमों में बदलाव के मद्देनजर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) ने भी कमर कस ली है। डीआरडीओ के महानिदेशक एस क्रिस्टोफर ने कहा कि उनका संगठन न सिर्फ विदेशी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार है, बल्कि अपने उत्पादों को निर्यात भी करेगा। रक्षा मंत्रलय के अधीन डीआरडीओ भारतीय सेना के तीनों अंगों की जरूरतों के मुताबिक उत्पादों और तकनीकों की डिजाइन व विकास के काम को अंजाम देता है। केंद्र सरकार ने सोमवार को ही रक्षा क्षेत्र में 100 फीसद एफडीआइ की इजाजत देने का एलान किया था। क्रिस्टोफर ने कहा, ‘इस बात की पूरी संभावना है कि किसी दिन कोई बड़ी विदेशी कंपनी 100 फीसद एफडीआइ के साथ आ सकती है। इससे हमारे सामने प्रतिस्पर्धा खड़ी हो सकती है। हम भी इस प्रतिस्पर्धा का लाभ उठाने के लिए तैयार हो रहे हैं।’ महानिदेशक के मुताबिक, मेक इन इंडिया भी डीआरडीओ के लिए भी यह एक बड़े तोहफे के समान है। उनके संगठन की तकनीक स्वदेशी है। इसलिए बड़े अवसर मिलेंगे। वह खुद भी कई बार सरकार से डीआरडीओ के उत्पादों के निर्यात की इजाजत देने के लिए कह चुके हैं। जहां तक तकनीकी का सवाल है, तो हो सकता है कुछ मामलों में हम थोड़े पीछे हों, मगर दुनिया में कई गरीब देश हैं, जिन्हें हमारे उत्पादों की जरूरत है। डीआरडीओ की ओर से तमाम परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी के सवाल पर क्रिस्टोफर ने कहा कि जब उन प्रोजेक्टों और उत्पादों को हाथ में लिया गया था तब उनकी जटिलताओं पर ध्यान नहीं दिया गया था। साथ ही कई बार जब परियोजना अंजाम पर पहुंचने वाली होती है, तो सेना की उस खास उत्पाद को लेकर जरूरतें और अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। इस वजह से और अधिक समय लग जाता है। अन्य देशों में भी किसी नए उत्पाद के विकास पर खासा समय लगता है। पनडुब्बियों को ही ले लीजिए, इन पर तीन दशक तक का वक्त लग जाता है। हवाई निगरानी प्रणाली के विकास में अमेरिका को भी 15 साल लग जाते हैं।

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