ब्रेक्जिट के कारण उपजे अनिश्चितता का माहौल खत्म करने के लिए यूरोपीय संघ (ईयू) सक्रिय हो गया है। ईयू में शामिल देशों के नेता चाहते हैं कि समूह से बाहर होने की प्रक्रिया पर ब्रिटेन जल्द से जल्द अमल शुरू करे। यूरोपीय आयोग के प्रमुख यां क्लाउड जंकर ने कहा है कि इसके लिए लिस्बन संधि की धारा 50 के तहत जल्द बातचीत शुरू होनी चाहिए।दूसरी ओर, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन चाहते हैं कि उनका उत्तराधिकारी उस जटिल समझौता वार्ता का नेतृत्व करे जिसके तहत समूह छोड़ने के लिए दो साल की समय सीमा निर्धारित की गई है। ईयू की सदस्यता को लेकर ब्रिटेन में हुए ऐतिहासिक जनमत संग्रह का शुक्रवार को नतीजा आने के बाद कैमरन ने अक्टूबर तक अपना पद छोड़ने की घोषणा की थी। ब्रिटेन की जनता ने 52 फीसद मतों के साथ ब्रेक्जिट के पक्ष में फैसला सुनाया था। कैमरन ब्रिटेन के ईयू में बने रहने के पक्ष में थे। हालांकि ईयू के सदस्य देश ब्रिटेन को अक्टूबर तक का मोहलत देने को राजी नहीं हैं। जंकर ने कहा कि वे समझ नहीं पा रहे हैं कि समूह से अलग होने का पत्र भेजने के लिए ब्रिटेन को अक्टूबर तक का समय क्यों चाहिए। इस बीच, शनिवार को बर्लिन में जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैंड, इटली, बेल्जियम और लक्जमबर्ग के विदेश मंत्रियों की बैठक भी हुई। इन्हीं छह देशों ने 1957 में यूरोपीय आर्थिक समूह बनाया था। मौजूदा ईयू इसी समूह का विस्तार है। मंगलवार से ब्रसेल्स में दो दिवसीय बैठक शुरू होने की संभावना है। इसमें ईयू के 27 देशों के नेता भाग लेंगे। दूसरी ओर, ईयू छोड़ने की प्रक्रिया जल्द शुरू करने के लिए बढ़ते दबाव के बीच में ब्रिटेन को जर्मनी से बड़ी राहत मिली है। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने इस मसले पर जल्दबाजी नहीं दिखाने की बात कही है। उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द प्रक्रिया शुरू करने के लिए किसी तरह के तकरार के पक्ष में नहीं हैं। जर्मनी इस समूह का सबसे ताकतवर देश है। मर्केल ने कहा कि समझौते की प्रक्रिया अछे माहौल में शुरू होनी जरूरी है। समूह से निकलने के बाद भी ब्रिटेन हमारा करीबी साङोदार रहेगा और वह आर्थिक रूप से हमसे जुड़ा है। जर्मनी सहित छह संस्थापक देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए मर्केल ने यह बात कही। इस बैठक में जल्द से जल्द बातचीत के लिए ब्रिटेन पर दबाव बढ़ाने का फैसला किया गया था।
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