Saturday, 25 June 2016

26 June 2016..3. ब्रेक्जिट से एफडीआइ की राह में बिछे कांटे:-

केंद्र सरकार ने इस सप्ताह के शुरू में ही नौ क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की सीमा बढ़ाने के साथ नियम आसान किये थे। इसके चंद दिनों बाद ही ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह में यूरोपीय यूनियन (ईयू) से अलग होने का फैसला आ गया और दुनिया भर के आर्थिक हालत और चुनौतीपूर्ण हो गए। इसके बाद देश में एफडीआइ बढ़ने की उम्मीदों पर पानी फिरने का अंदेशा जताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि फिलहाल तो विदेशी निवेश बढ़ाना अत्यंत कठिन है। खासतौर ब्रिटेन व यूरोपीय संघ का एफडीआइ घटने की भी आशंका है।वित्त वर्ष 2015-16 में भारत में 55.46 अरब डॉलर एफडीआइ आया था जो 2013-14 के 36.04 अरब डॉलर के मुकाबले काफी अधिक था। हालांकि दुनियाभर के पूंजी, मुद्रा और शेयर बाजारों पर ‘ब्रेक्जिट’ के प्रभाव तथा अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के ब्याज दरें बढ़ाने की संभावनाओं के बीच माना जा रहा है कि इस सप्ताह के शुरू में प्रतिरक्षा सहित नौ क्षेत्रंे में एफडीआइ की नीति उदार बनाने का पूरा फायदा शायद फिलहाल न मिल पाये। ब्रेक्जिट की खबर आते ही शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट और शेयर बाजार में गिरावट से निवेशकों के रुख का संकेत मिलता है। रेटिंग एजेंसी इक्रा की वरिष्ठ अर्थशास्त्री अदिति नायर का कहना है कि सरकार ने हाल ही में एफडीआइ को उदार बनाने के जो कदम उठाए हैं, ब्रेक्जिट उसके फायदे पर असर डाल सकता है क्योंकि पूरे यूरोप में राजनीतिक अस्थिरता आने का अंदेशा है।वैसे बीते 15 वर्षो में भारत में निवेश करने के मामले में मॉरीशस और सिंगापुर के बाद ब्रिटेन तीसरे नंबर पर रहा है। ऐसे में ब्रिटेन में अनिश्चितता आने से भारत में एफडीआइ आने की उम्मीदों पर तात्कालिक दृष्टि से पानी फिर सकता है। वहीं मॉरीशस और सिंगापुर के साथ दोहरा कराधान निवारण संधि (डीटीएए) में संशोधन के बाद इन देशों की कंपनियांे पर आने वाले वर्षों में कैपिटल गेन टैक्स लगने लगेगा जिससे मध्यावधि में वहां से आने वाले एफडीआइ पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इस बीच विश्व बैंक ने वैश्विक विकास दर के अपने अनुमान को घटा दिया है जो दुनियाभर में सुस्ती का संकेत है। इसका एक मतलब यह भी है कि दुनियाभर में निवेश की रफ्तार सुस्त रहने वाली है। इसे देखते हुए भारत में एफडीआइ बढ़ने की संभावना फिलहाल मुश्किल नजर आ रही है। हालांकि सरकार यह मानकर चल रही है कि दुनिया में भले ही उथल-पुथल हो, लेकिन भारत सर्वाधिक तेज विकास दर हासिल करने वाला अकेला बड़ा देश है। इसलिए वैश्विक निवेशक भारत का रुख कर सकते हैं।

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