परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के लिए स्विटजरलैंड, मैक्सिको और अमेरिका से मिले आश्वासन से जो माहौल बना था वह अब हकीकत के धरातल पर आने लगा है। भारतीय रणनीतिकारों को लगने लगा है कि उनकी कोशिशों को सिर्फ चीन ही नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं अड़ा है बल्कि कम से कम चार देश ऐसे और हैं जो भारत को एनएसजी का सदस्य बनता नहीं देखना चाहते। ये देश हैं न्यूजीलैंड, आयरलैंड, आस्टिया और दक्षिण अफ्रीका। जानकारों का कहना है कि ये चारों देश भी अभी तक भारत विरोध के अपने एजेंडे पर अड़े हैं। ऐसे में एनएसजी की राह भारत के लिए और कठिन होती दिख रही है। सूत्रों के मुताबिक अगले कुछ दिन भारतीय कूटनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगे। इसमें पीएमओ से लेकर विदेश मंत्रलय और विदेश स्थित भारतीय दूतावास भी शामिल होंगे। पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को इस रणनीति के तहत ही रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात की। वाशिंगटन, टोक्यो, लंदन और कैनबरा स्थित भारतीय दूतावास व उचायोग भी इन देशों की सरकारों के साथ मिल कर भारतीय दावेदारी का विरोध करने वाले देशों को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। न्यूजीलैंड को मनाने में जापान व ऑस्ट्रेलिया की मदद ली जा रही है। अमेरिका की भूमिका सबसे अहम है। उसके जरिए भी विरोधी देशों के सामने भारतीय पक्ष पेश किए जा रहे हैं। भारत रूस के जरिए चीन के विरोध को कम करने का विकल्प भी आजमा रहा है। अभी तक चीन के रुख में किसी नरमी के संकेत नहीं हैं। रविवार को चीन के विदेश मंत्रलय ने इस बात के साफ संकेत दे दिए हैं कि एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले किसी भी देश के एनएसजी में शामिल होने का वह समर्थन नहीं करता है। वैसे भारत की तरफ से ताशकंद (उबेकिस्तान) में अगले हफ्ते होने वाली शंघाई को-ऑपरेशन संगठन (सीएसओ) की बैठक में भी इस मुद्दे पर सहमति की कोशिश जारी रहेगी। यह बैठक 23 जून को होगी जिसमें संभव है कि भारतीय दल का नेतृत्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज करें। अगर स्वराज ताशकंद वहां जाती हैं तो उनकी मुलाकात चीन के विदेश मंत्री से भी होगी। इसमें स्वराज एनएसजी को लेकर चीन को सीधे तौर पर मनाने की कोशिश कर सकती हैं। सूत्रों ने बताया कि वियेना में पिछले हफ्ते एनएसजी के मौजूदा 48 देशों की दो दिवसीय बैठक में सभी सदस्य देशों का रुख सामने आ गया है। चीन निश्चित तौर पर सबसे बड़ी अड़चन है लेकिन आयरलैंड और आस्टिया भी मौजूदा नियम का कड़ाई से पालन करने के पक्ष में हैं। यानी जो देश परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करेंगे उन्हें ही एनएसजी की सदस्यता मिलनी चाहिए। भारत अभी तक एनपीटी में शामिल नहीं हुआ है। वैसे अमेरिका समेत एनएसजी के अधिकांश सदस्य देश भारत के इसमें शामिल होने के पक्ष में हैं। लेकिन एनएसजी के नियमों के मुताबिक सभी 48 देशों का समर्थन मिलने के बाद ही इसमें किसी दूसरे देश को शामिल किया जा सकता है। भारत की दावेदारी पर 24 जून को सियोल (दक्षिण कोरिया) में वोटिंग होनी है।
No comments:
Post a Comment