ओबामा प्रशासन और अमेरिका का मीडिया मोदी-ओबामा शीर्षस्तरीय वार्ता के बाद जिस मुद्दे को सबसे यादा तवजो दे रहा है वह है पेरिस समझौते में शामिल होने के लिए भारत की सहमति। अमेरिका ने यह भी कहा है कि भारत इस वर्ष ही पेरिस समझौते में शामिल होने को तैयार है। लेकिन विदेश मंत्रलय ने स्पष्ट किया है कि भारत की तरफ से पेरिस समझौते में शामिल होने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। भारत इसमें शामिल होने को तैयार है लेकिन अभी भी कुछ मुद्दे हैं जिसको लेकर उसकी कुछ शर्ते हैं। इस पर विस्तार से चर्चा के बाद ही भारत पेरिस समझौते में शामिल होगा।भारतीय विदेश मंत्रलय के सूत्रों ने अमेरिका के इस दावे का खंडन किया है कि भारत वर्ष 2016 में ही पेरिस समझौते में शामिल होने की रजामंदी दे दी है। सूत्रों के मुताबिक भारत तैयार है लेकिन हमने कोई समय सीमा तय नहीं की है। भारत ने यह जरूर वादा किया है कि हम इसमें जल्द से जल्द शामिल होंगे। भारत की अधिकांश चिंताओं पर साफ तौर पर अमेरिकी पक्ष से बात हुई है लेकिन कुछ चिंताएं अभी भी हैं जिन पर अलग से बातचीत होने के आसार हैं।जानकारों का कहना है कि राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में हर कीमत पर पेरिस समझौते को सफल होते देखना चाहते हैं। अमेरिका की तरफ से वह पहले ही वादा कर चुके हैं कि अमेरिका इसमें इसी वर्ष शामिल होगा। लेकिन वह भारत को भी इसमें पूरी तरह से शामिल होते देखना चाहते हैं। भारत के अभी तक इसमें शामिल नहीं होने को वह एक बड़ी चुनौती मानते है। दरअसल, पेरिस समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप कह चुके हैं कि अगर वह सत्ता में आते हैं तो पेरिस समझौते को रद्दी के टोकरी में डाल देंगे। जबकि ओबामा की पूरी कोशिश है कि इसे अंतिम तौर पर लागू कर दिया जाए ताकि अगली ट्रंप राष्ट्रपति भी बने तो उनके लिए इसे खारिज करना आसान नहीं हो। बताते चले कि पेरिस समझौते में शामिल होने के बाद भारत को अपनी उत्सर्जन स्तर को लेकर कई कड़े फैसले करने होंगे। औद्योगिक उत्सर्जन और इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर अंकुश लगाने के लिए कई तरह के कदम उठाने होंगे। पेरिस समझौते को जब दिसंबर, 2015 में अंतिम रूप दिया गया था तभी भारत इसके कई शर्तो को लेकर अपनी सीमाएं व्यक्त की थी।
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