उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम ने कहा कि गुरुवार को होने वाले जनमत संग्रह में ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (ईयू) से बाहर निकलने के लिए मतदान करने की स्थिति में भारत सहित नियंतण्र वित्तीय बाजार में मचने वाले कोहराम से निपटने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक दोनों को तैयार रहना चाहिए।एसोचैम ने जारी रिपोर्ट में कहा कि जनमत संग्रह के दिन ब्रिटेन के ईयू में शामिल रहने या नहीं रहने (ब्रेग्जिट) के लिए होने वाले मतदान में बहुत मामूली अंतर रहने की उम्मीद है। यह नियंतण्र अर्थव्यवस्था के लिए बड़े जोखिम के रूप में उभरेगा। लघु अवधि के लिए इससे वित्तीय बाजार में भारी उथल-पुथल होने की भी आशंका है।रिपोर्ट के अनुसार, ब्रेग्जिट का जोखिम ऐसे समय में उभरा है जब फॉरेन करेंसी नॉन रेजिडेंट (एफसीएनआर) खातों की अवधि पूरी होने से देश से 20 अरब डालर निकाले जाने की आशंका है। हालांकि पिछले 18 महीनों में कच्चे तेल के आयात पर हुए व्यय में कमी आने से चालू खाते की स्थिति बेहतर बनी हुई है।एसोचैम ने कहा, अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए लंदन मुख्य केंद्र रहा है। ब्रेग्जिट से उत्पन्न होने वाले जोखिम का असर नियंतण्र वित्तीय बाजार पर अवश्य पड़ेगा। ऐसे में महत्वपूर्ण उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्था और नियंतण्र फंड मैनेजर्स की प्राथमिकता वाले देश भारत में भी रपए में अस्थिरता या डालर की निकासी का जोखिम बना हुआ है। एसौचेम ने कहा कि एफसीएनआर खातों से डालर की निकासी के बाद देश में डालर की आपूत्तर्ि बाधित होने की स्थिति से निपटने के लिए आरबीआई को एक प्रभावशाली योजना के साथ तैयार रहना चाहिए।उसने कहा कि मध्यम एवं दीर्घ अवधि में ब्रिटेन एवं यूरोपीय बाजारों की अनिश्चितता को देखते हुए निवेशक भारत का रुख कर सकते हैं, लेकिन अल्पावधि में कुछ भी हो सकता है। एक विश्वसनीय अर्थव्यवस्था के रूप में देश को ऐसे हालात से निपटने का बेहतर समाधान ढूँढना के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।यूरोपीय संघ संधि की धारा 50 के तहत ब्रिटेन के पास अलग होने की शतरें पर वार्ता के लिए दो साल का समय होगा। ऐसे में यूरोप के बदलते परिदृश्य के मद्देनजर भारत के नीति निर्माताओं के पास एक मजबूत नीति बनाने के लिए पर्याप्त समय होगा।
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