• जलवायु परिवर्तन से देश को ऑक्सीजन देने वाले हिमालय के 80 फीसद ग्लेशियरों पर खतरा मंडरा रहा है। ग्लेशियरों के तेजी से सिकुड़ने का ही कारण है कि खंडवृष्टि और अतिवृष्टि जैसी आपदाएं हिमालयी क्षेत्र को बर्बाद कर रही हैं। हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बेवजह आपदाओं का दंश ङोलना पड़ता है।
• दून यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में हिमालय के अध्ययन में जुटे जाने माने विशेषज्ञों ने अपने रिसर्च को सामने रखा। गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह ने कहा जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फबारी, बारिश, ठंड, गर्मी का चक्र बदल गया है।
• ग्लेशियर जोन में तापमान बढ़ने से काराकोरम व गंगा बेसिन के ग्लेश्यिर को सबसे ज्यादा खतरा बना हुआ है। यह ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहा है। इसका असर समुद्रतल परिवर्तन के साथ ही हिमालय से लेकर मैदानी क्षेत्र का मौसम, फसलीय चक्र, अतिवृष्टि, खंडवृष्टि जैसी समस्या खड़ी हो रही है।
• उन्होंने कहा कि हिमालय के लोगों का इस समस्या से कोई लेना-देना नहीं है। मगर, आपदाओं से सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें उठाना पड़ता है। ऐसे में सरकारों को हिमालय के विकास में बजट की कोई कमी नहीं करनी चाहिए। यह भीख के रूप में नहीं बल्कि हक के रूप में प्राथमिकता के साथ दिया जाना चाहिए।
• इस दौरान उत्तराखंड के नैनीताल, मसूरी, कौसानी जैसे पर्यटक स्थलों पर जलवायु परिवर्तन के असर को भी आंकड़ों के साथ समझाया गया। इसके लिए नियोजित विकास की योजना बनाने पर जोर दिया गया।
• उन्होंने साफ कहा कि हिमालयी क्षेत्र में के 75 ग्लेशियरों पर हुए अध्ययन में 62 सिकुड़ गए हैं। इन सब पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ा है।
• दून यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में हिमालय के अध्ययन में जुटे जाने माने विशेषज्ञों ने अपने रिसर्च को सामने रखा। गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह ने कहा जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फबारी, बारिश, ठंड, गर्मी का चक्र बदल गया है।
• ग्लेशियर जोन में तापमान बढ़ने से काराकोरम व गंगा बेसिन के ग्लेश्यिर को सबसे ज्यादा खतरा बना हुआ है। यह ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहा है। इसका असर समुद्रतल परिवर्तन के साथ ही हिमालय से लेकर मैदानी क्षेत्र का मौसम, फसलीय चक्र, अतिवृष्टि, खंडवृष्टि जैसी समस्या खड़ी हो रही है।
• उन्होंने कहा कि हिमालय के लोगों का इस समस्या से कोई लेना-देना नहीं है। मगर, आपदाओं से सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें उठाना पड़ता है। ऐसे में सरकारों को हिमालय के विकास में बजट की कोई कमी नहीं करनी चाहिए। यह भीख के रूप में नहीं बल्कि हक के रूप में प्राथमिकता के साथ दिया जाना चाहिए।
• इस दौरान उत्तराखंड के नैनीताल, मसूरी, कौसानी जैसे पर्यटक स्थलों पर जलवायु परिवर्तन के असर को भी आंकड़ों के साथ समझाया गया। इसके लिए नियोजित विकास की योजना बनाने पर जोर दिया गया।
• उन्होंने साफ कहा कि हिमालयी क्षेत्र में के 75 ग्लेशियरों पर हुए अध्ययन में 62 सिकुड़ गए हैं। इन सब पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ा है।