प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने खाड़ी के देशों के साथ अपने रिश्तों को नया परवाज देने की कोशिशें जिस तरह से तेज की हैं उसका परिणाम दिखाई देने लगा है। मोदी की दोहा यात्र के दौरान रविवार को कतर के निवेश प्राधिकरण और भारतीय विदेश मंत्रलय के बीच एक अहम समझौता किया गया। इसके तहत कतर के फंड भी भारत के बुनियादी क्षेत्रों में निवेश करेंगे। कतर के पास दुनिया का 15वां सबसे बड़ा सॉवरेन फंड है। वर्ष 2015 में इसका आकार 256 अरब डॉलर का था। सरकार के नियंत्रण वाले निवेश फंड को सॉवरेन वेल्थ फंड कहते हैं। यह व्यापार अधिशेष और प्रचुर विदेशी मुद्रा भंडार की बदौलत तैयार होता है। कतर से पहले मोदी की संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की यात्र के दौरान भी वहां की सरकार ने अपने सॉवरेन फंड का निवेश भारतीय बाजार व ढांचागत क्षेत्र में करने का समझौता किया था। यूएई के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा फंड है, जिसका आकार तकरीबन 800 अरब डॉलर का है। यूएई ने तब भारत के विभिन्न ढांचागत क्षेत्रों में अगले कुछ वर्षो में 75 अरब डॉलर निवेश करने का प्रस्ताव किया था। भारत सरकार इसे अपनी मंजूरी दे चुकी है। इस तरह से देखा जाए तो खाड़ी के देशों के दो सबसे बड़े फंड भारत में निवेश करने का समझौता कर चुके हैं। ये दोनों फंड भारत में लंबे समय के लिए निवेश करेंगे। भारत में बुनियादी क्षेत्र में वित्तीय संसाधन की जरूरत को देखते हुए इन दोनों समझौतों को काफी अहम माना जा रहा है। मोदी की कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी के साथ मुलाकात के बाद दोनों देशों ने जो संयुक्त बयान जारी किया है उससे साफ है कि भारत व कतर व्यापक द्विपक्षीय रिश्तों की नींव रख चुके हैं। इसमें इस बात का जिक्र है कि कतर की कंपनियों ने भारत के रक्षा क्षेत्र में निवेश करने की रुचि दिखाई है। कतर की कंपनियों ने मेक इन इंडिया कार्यक्रम में काफी रुचि दिखाई है। इसे आगे बढ़ाने के लिए एक अंतर मंत्रलय उचस्तरीय समिति गठित करने का भी फैसला हुआ है।
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