भारत और नामीबिया ने इस संसाधन संपन्न अफ्रीकी देश से यूरेनियम की आपूत्तर्ि की राह में आ रही बाधाओं को दूर करने का बृहस्पतिवार को फैसला किया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और उनके नामीबियाई समकक्ष के बीच हुई बातचीत में यह फैसला किया गया।नामीबिया से यूरेनियम आपूत्तर्ि की राह में रोड़े अटका रहे मसलों को सुलझाने के लिए भारत परमाणु ऊर्जा विशेषज्ञों की एक संयुक्त तकनीकी टीम यहां भेजेगा। नामीबिया दुनिया में यूरेनियम का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है। प्रणब और नामीबिया के राष्ट्रपति हेज जी गिनगॉब के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के दौरान इस मुद्दे पर र्चचा हुई। प्रणब ने नामीबिया के राष्ट्रपति को बताया कि भारत ने भले ही परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तख्त न किए हों, लेकिन इसके बावजूद 12 देशों से उसने परमाणु ईंधन आपूर्ति इंतजाम किए हैं। विदेश मंत्रालय में सचिव (आर्थिक संबंध) अमर सिन्हा ने यहां द्विपक्षीय बातचीत का ब्योरा देते हुए पत्रकारों को बताया, इसके बाद नामीबियाई पक्ष ने उन इंतजामों के अध्ययन की इच्छा जताई। सिन्हा ने इसे ‘‘सकारात्मक कदम’ बताया कि नामीबिया इस मुद्दे पर भारत के साथ संपर्क कायम करने को तैयार है। भारत ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए 2009 में नामीबिया के साथ एक संधि की थी, लेकिन यह अब तक लागू नहीं हो सकी है।अमर सिन्हा ने कहा, नामीबिया ने इसे लागू करने के लिए ‘‘ठोस इच्छा’ जाहिर की है। उनके मुताबिक, नामीबियाई पक्ष ने कहा कि उनकी खदानों में खनिज से उन्हें राजस्व की प्राप्ति नहीं होती। यहां की यात्रा करने वाला भारतीय दल नामीबिया को अन्य देशों के साथ इंतजाम का तकनीकी और आर्थिक विवरण बताएगा और यह भी बताएगा कि शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ईंधन की आपूत्तर्ि के संबंध में दोनो पक्षों के बीच समझौते पर कैसे पहुंचा जा सकता है। नामीबियाई पक्ष से एक सुझाव यह दिया गया कि कोई भारतीय कंपनी ईंधन का खनन करे लेकिन अब तक इसका मूल्यांकन नहीं हो सका है। यूरेनियम के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक होने और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए भारत के साथ समझौता करने के बावजूद नामीबिया ‘‘पलिंडाबा संधि’ की वजह से भारत को ईंधन की आपूर्ति नहीं करता है ।
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