सरकार के जल्द ही दलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि की घोषणा किए जाने की उम्मीद के साथ नीति आयोग के सदस्य रमेश चांद ने कहा कि प्रौद्योगिकीय गतिरोध को दूर किए बगैर केवल समर्थन मूल्य को बढ़ाने से ही दीर्घावधि में दलहन उत्पादन बढ़ाने में मदद नहीं मिलेगी।उन्होंने कहा कि सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार करने और प्रौद्योगिकीय मसलों का समाधान करने की जरूरत है क्योंकि खुदरा कीमतों पर तब तक दवाब बना रहेगा जब तक कि मांग और आपूत्तर्ि के अंतर को दूर नहीं किया जाता। थिंक टैंक अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान द्वारा आयोजित एक समारोह में चांद ने कहा, ‘‘मैं कुछ हद तक इस बात से सहमत हूं कि अधिक समर्थन मूल्य दिए जाने से खेती का कुछ रकबा दलहन के लिए बढ़ेगा लेकिन यह हमें उत्पादन को काफी अधिक बढ़ाने में मदद नहीं करेगा।’उन्होंने कहा कि सरकार को इस बारे में पुनर्विचार करने की जरूरत है। यह सोचना ‘‘दिवास्वप्न’ होगा कि बगैर प्रौद्योगिकीय गतिरोध को तोड़े केवल ऊंचा भाव देने से उत्पादन बढ़ेगा। कभी दलहनों के भाव गेहूं और चावल के लगभग बराबर हुआ करते थे पर आज इनकी दरें गेहूं और चावल के मुकाबले छह गुना अधिक हैं। वर्ष 2016-17 (जुलाई से जून) के लिए दलहन और अन्य खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के प्रस्ताव पर जल्द ही मंत्रिमंडल की बैठक में विचार किए जाने की संभावना है। कृषि मंत्रालय ने दलहन की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए इसके एमएसपी को बढ़ाकर 200 रपए प्रति क्विंटल करने का प्रस्ताव किया है।यह पूछने पर कि इस वर्ष दलहन के एमएसपी में वृद्धि करने से क्या अपेक्षित परिणाम हासिल होंगे, चांद ने कहा, ‘‘एमएसपी पर अंधविास नहीं होना चाहिए। पहले से ही बाजार की दरें एमएसपी के मुकाबले 50 फीसद अधिक हैं।
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