सरकार भले ही सेस लगा देती हो लेकिन हकीकत यह है कि जिस काम के लिए यह धनराशि जनता की जेब से ली जाती है, उस पर खर्च नहीं हो पाती। अक्सर यह धनराशि या तो सरकारी खजाने में पड़ी रहती है या फिर इसका इस्तेमाल दूसरे कार्यो के लिए किया जाता है। कई प्रकार के सेस के संबंध में अब तक का अनुभव यही बताता है। हाल में सरकार ने सेवाओं पर स्वछ भारत सेस और कृषि कल्याण सेस लगाए हैं। हालांकि विगत में लगाए गए सेस का अनुभव बताता है कि सरकार ने इनसे जुटायी गयी पूरी धनराशि को वांछित कार्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया। मसलन, सरकार ने शोध और अनुसंधान को बढ़ावा देने आरएंडडी सेस लगाकर 1996 से 2014-15 के दौरान भारी भरकम 5,783 करोड़ रुपये जुटाए लेकिन इसमें से शोध और अनुसंधान पर मात्र 549 करोड़ रुपये ही खर्च हुए। इस तरह आरएंडडी सेस से जुटाई गयी 90 प्रतिशत राशि घोषित मद पर खर्च ही नहीं हुई। इसी तरह प्राथमिक शिक्षा सेस के जरिए जुटाई गई पूरी धनराशि भी प्रारंभिक शिक्षा कोष में नहीं भेजी गई। प्राथमिक शिक्षा सेस के जरिये 2004-05 से 2014-15 के दौरान 154,818 करोड़ रुपये जुटाए गए लेकिन इसमें से 141,520 करोड़ रुपये ही प्रारंभिक शिक्षा कोष में दिए गए। इस तरह 13,298 करोड़ रुपये भारत की संचित निधि में ही शेष रह गए। इस तरह सरकार ने जिस काम के लिए यह सेस लगाया था उस कार्य के लिए पूरी धनराशि का इस्तेमाल नहीं हुआ। इसके अलावा सरकार ने 2002-03 से 2014-15 के दौरान यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड में 66,117 करोड़ रुपये जुटाए जबकि इसमें से मात्र 26,983 करोड़ रुपये को ही निर्धारित उद्देश्य के लिए खर्च किया गया जबकि शेष राशि दूसरे कार्यो के लिए इस्तेमाल की गयी। सेस से धनराशि जुटाने तथा उसका इस्तेमाल निर्धारित कार्य के लिए न करने को लेकर विगत में कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में चिंता प्रकट की है।
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