भारत ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा करने वाला दुनिया का पांचवां बड़ा देश है। फिलहाल देश 18 लाख मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा कर रहा है। लेकिन चार साल में इसके तीन गुना बढ़कर 52 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच जाने का अनुमान है। एसोचैम-सीकाइनेटिक्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत का ई-वेस्ट सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर इसके मौजूदा 9.35 करोड़ टन से 2018 तक बढ़कर 13 करोड़ टन पर पहुंचने का अनुमान है। इस दौरान इसमें 17.6 फीसदी का सालाना इजाफा होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अमीर होने के साथ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर अधिक खर्च कर रहे हैं। इनका मुख्य स्राेत सरकार, जनता और निजी (औद्योगिक) क्षेत्र हैं। देश में निकलने वाले कुल ई-वेस्ट में इनकी 75 फीसदी की हिस्सेदारी है। वहीं, परिवारों से बहुत कम 16 फीसदी मात्रा में ई-वेस्ट निकल रहा है। जबकि शेष ई-वेस्ट पैदा करने में मैन्युफैक्चरर्स का योगदान है। कंप्यूटर, टेलीविजन और मोबाइल फोन के वेस्ट को सबसे खतरनाक माना जाता है क्योंकि इनमें सीसे, पारे और कैडमियम की मात्रा अधिक होती है। उम्र कम होने से ये उपकरण जल्द कबाड़ में तब्दील हो जाते हैं। कुल ई-वेस्ट में से मात्र डेढ़ फीसदी की ही रिसाइक्लिंग हो पाती है। इसकी वजह इन्फ्रास्ट्रक्चर, कानून फ्रेमवर्क का लचर होना है। कुल ई-वेस्ट के 95 फीसदी हिस्से को असंगठित क्षेत्र और स्क्रैप डीलरों द्वारा मैनेज किया जा रहा है।
ई-वेस्ट में आने वाले आयटम
• खराब कंप्यूटर मॉनिटर
• मदरबोर्ड, प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी)
• कैथोड रे ट्यूब्स (सीअारटी)
• मोबाइल फोन और चार्जर
• कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन
• क्रिस्टल डिस्प्ले-प्लाज्मा टीवी
• एसी और रेफ्रिजरेटर
ई-वेस्ट में हिस्सेदारी
• कंप्यूटर उपकरण - 70 %
• दूरसंचार उपकरण - 12 %
• इलेक्ट्रिकल उपकरण - 8 %
• चिकित्सा उपकरण - 7 %
• घरों से निकलने वाला वेस्ट - 4%
ई-वेस्ट में आने वाले आयटम
• खराब कंप्यूटर मॉनिटर
• मदरबोर्ड, प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी)
• कैथोड रे ट्यूब्स (सीअारटी)
• मोबाइल फोन और चार्जर
• कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन
• क्रिस्टल डिस्प्ले-प्लाज्मा टीवी
• एसी और रेफ्रिजरेटर
ई-वेस्ट में हिस्सेदारी
• कंप्यूटर उपकरण - 70 %
• दूरसंचार उपकरण - 12 %
• इलेक्ट्रिकल उपकरण - 8 %
• चिकित्सा उपकरण - 7 %
• घरों से निकलने वाला वेस्ट - 4%
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