Sunday, 21 August 2016

दैनिक समसामयिकी 22 July 2016(Friday)

1.कश्मीर पर भारत का पाकिस्तान को बेहद सख्त जवाब : गुलाम कश्मीर खाली करे पाक:- कश्मीर कार्ड खेलने में जुटे पाकिस्तान को भारत ने जमकर लताड़ लगाने के साथ ही आईना भी दिखाया है। भारत ने गुलाम कश्मीर पर अवैध कब्जा जमाए पाकिस्तान को जल्द से जल्द इसे खाली करने की चेतावनी देकर स्पष्ट कर दिया है कि जिस आग को वह भड़काने की कोशिश कर रहा है उससे उसका दामन भी खाक हो सकता है। पानी अब सिर से ऊपर जा रहा है और भारत इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। हिजबुल आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद से ही पाकिस्तान जिस तरह से कश्मीर की आड़ में आतंकियों का मन बढ़ा रहा है भारत ने उसे भी दुनिया के सामने ला दिया है। पाक की ओर से नए सिरे से कश्मीर राग अलापने पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अब इस मुद्दे पर मुरव्वत नहीं होगी। सख्त संदेश भी दिया जाएगा और सख्ती से निपटा भी जाएगा। पाक से गुलाम कश्मीर को खाली करने की बात कहकर यह बता दिया गया है कि भारत अब पाकिस्तान से उसके ही अंदाज में निपटेगा। हाल के वर्षो में भारत की तरफ से यह सबसे तल्ख टिप्पणी है। भारतीय विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने गुरुवार को कहा, भारत ने यह देखा है कि संयुक्त राष्ट्र की तरफ से घोषित आतंकी ने फिर पाकिस्तान में कश्मीर पर कार्यक्रम का आयोजन किया है। यह वही आतंकी है जिसने पूर्व में अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन और तालिबान लीडर मुल्ला मंसूर की मौत पर भी जुलूस की अगुआई की थी। उन्होंने कोई नाम लिए बगैर लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद के आह्वान पर बुधवार को पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में किए गए आयोजनों का जिक्र किया। पाकिस्तान ने 19 जुलाई को कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जे की बरसी के मौके पर जश्न और 20 जुलाई को आतंकी वानी की मौत पर ‘ब्लैक डे’ मनाया। इस मौके पर हाफिज सईद ने खुद हिजबुल के कई आतंकियों के साथ रैलियों को संबोधित किया। स्वरूप ने कहा, हम पाक सरकार की तरफ से आतंकियों को बढ़ावा देने की नीति की कड़ी भर्त्सना करते हैं। उन्होंने कहा, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुलाम कश्मीर में तथाकथित चुनाव के मुद्दे पर गलत सूचना देना बंद करे। कश्मीर के एक हिस्से पर पाकिस्तान ने अवैध तरीके से कब्जा जमा रखा है और उसे ‘आजाद’ कहता है।
2. वित्त वर्ष बदलने को करना पड़ेगा संविधान में संशोधन:- एक अप्रैल से शुरू होने वाले वित्त वर्ष को बदलने की दिशा में सरकार ने कदम बढ़ा दिया है लेकिन इसे मूर्त रूप देने को संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र सरकार को इस संबंध में संविधान संशोधन की जरूरत की संभावनाएं तलाशनी चाहिए। साथ ही नए वित्त वर्ष को लागू करने के लिए एक नया कानून भी बनाना चाहिए। नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय का कहना है कि अमेरिका ने जब 1974 में अपना वित्त वर्ष बदला था तो वहां की संसद ने ‘कांग्रेसनल बजट एंड इंपाउंडमेंट कंट्रोल एक्ट 1974’ पारित किया था। इस कानून के प्रभाव में आने से ही अमेरिका का वित्त वर्ष बदलकर एक अक्टूबर से 30 सितंबर तक हुआ था। इससे पहले अमेरिका का वित्त वर्ष एक जुलाई से 30 जून तक होता था। देबरॉय का यह सुझाव ऐसे समय आया है जब सरकार ने वित्त वर्ष बदलने की संभावनाओं पर विचार करने के लिए वित्त मंत्रलय के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। इस समिति को रिपोर्ट इस साल के अंत तक देने को कहा गया है। ऐसे में माना जा रहा है कि समिति नीति आयोग के सदस्य के विचारों को संज्ञान में लेकर अपनी सिफारिशों का मसौदा तैयार कर सकती है। देबरॉय का कहना है कि सरकार को वित्त वर्ष बदलने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पर भी विचार करना चाहिए। फिलहाल संविधान के अनुछेद 367 (1) के तहत परोक्ष तौर पर वित्त वर्ष को एक अप्रैल से 31 मार्च की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है। असल में भारत में मौजूदा वित्त वर्ष जनरल क्लॉज एक्ट 1897 के तहत परिभाषित है जिसका जिक्र संविधान के अनुछेद 367 (1) में किया गया है। नया वित्त वर्ष लागू करने से पहले संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ सकती है। देबरॉय और नीति आयोग में ओएसडी किशोर देशाई ने इस संबंध में एक पेपर भी तैयार किया है। कहा है कि सरकार अगर नया वित्त वर्ष एक जनवरी से शुरू करना चाहती है तो पहले करीब डेढ़ साल की अवधि को ट्रांजीशनल फाइनेंशियल ईयर के तौर पर माना जा सकता है।
3. सभी देश कम करेंगे हाइड्रोफ्लूरोकॉर्बन:- मांट्रियाल प्रोटोकॉल में पक्ष बने दुनिया के 196 देशों ने बृहस्पतिवार को उस संशोधन पर काम करने के लिए बैठक की जिसमें वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार हाइड्रोफ्लूरोकॉर्बन (एचएफसी) के उत्पादन एवं उपभोग को कम करने की बात शामिल है।इन देशों ने पिछले साल स्वीकार किए गए ‘‘दुबई पाथवे ऑन एचएफसी’ के तहत चिह्नित डेटा के अभाव सहित सभी चुनौतियों को पहले दूर करने पर सहमति जताई है। एचएफसी का इस्तेमाल ओजोन को क्षय करने वाले पदार्थो के स्थान पर एयर कंडिशनिंग, रेफ्रीजरेशन, फोम और एयरोसोल में होता है। वार्ताकारों ने कहा, मांट्रियाल प्रोटोकॉल के तहत एचएफसी को कम करने पर समझौता होने से 2050 तक 105 गीगाटन कार्बनडाइक्साइड के उत्सर्जन और इस सदी के आखिर तक नियंतण्र तापमान के 0.4 सेल्सियस तक बढ़ने से बचा जा सकेगा।मांट्रियाल प्रोटोकॉल के पक्ष तीसरी महत्वपूर्ण (एक्ट्राआर्डिनरी मीटिंग) बैठक में शामिल होंगे जो 22-23 जुलाई को विशेष तौर पर एचएफसी के मुद्दे के निदान के लिए बुलाई गई है। इस बैठक में मंत्रीस्तरीय गोलमेज वार्ता शामिल होगी जिसका मुख्य ध्यान इस पर होगा कि मांट्रियाल प्रोटोकॉल के पक्ष किस तरह से ‘‘दुबई पाथवे ऑन एचएफसी’ की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए 2016 में आगे बढ़ सकते हैं। भारतीय शिष्टमंडल बहरीन, कनाडा, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, श्रीलंका, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र और अन्य देशों के मंत्रियों एवं उच्चस्तरीय प्रतिभागियों के साथ र्चचा में शामिल होगा।
4. समुद्र के गर्भ में हाइड्रोजन गैस का विशाल भंडार:- अमेरिकी वैज्ञानिकों ने समुद्र के गर्भ में हाइड्रोजन गैस का विशाल भंडार होने का अनुमान जताया है। समुद्र तल में मौजूद चट्टानों में इसके होने की संभावना है। हाइड्रोजन का भंडार मिलने की स्थिति में ईंधन के इस्तेमाल के मौजूदा तरीके और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में जबरदस्त सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं। ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इसका पता लगाया है। उनके मुताबिक समुद्र तल के नीचे टेक्टोनिक प्लेट के फैलाव में आई तेजी के कारण बने चट्टानों में मुक्त हाइड्रोजन गैस का विपुल भंडार हो सकता है। शुरुआती अध्ययनों में इस पर यादा ध्यान नहीं दिया गया था। वैज्ञानिक पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत के लिए मुख्य तौर पर हाइड्रोजन गैस की उपस्थिति को जिम्मेदार मानते हैं। अनुमान के मुताबिक हाइड्रोजन गैस पाए जाने पर जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला और पेट्रोलियम पदार्थो के स्थान पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। हाइड्रोजन गैस के दहन पर कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता है। ऐसे में ग्लोबल वार्मिग की गंभीर होती समस्या से निपटने में भी मदद मिल सकती है। शुरुआती अध्ययन में टेक्टोनिक प्लेट में मंद गति से फैलाव के कारण हाइड्रोजन गैस के निर्माण की बात कही गई थी। ताजा शोध उसके उलट है। नए मॉडल में समुद्र तल के नीचे हाइड्रोजन गैस की मात्र को टेक्टोनिक प्लेटों में फैलाव की गति और चट्टान की मोटाई के अनुपात में आंका गया है।
5. कैंसर ग्रिड बनाने में जुटा भारत:- देश में कैंसर से सालाना होने वाली लाखों मौतों को रोकने तथा बीमारी के समूल उन्मूलन के लिए नेशनल कैंसर ग्रिड बनाया जाएगा। देश के 85 बड़े कैंसर स्क्रीनिंग केंद्रों को जोड़कर यह ग्रिड तैयार होगी। इसके बाद सभी संस्थान सभी संस्थान आपस में इलाज, डेटा शेयरिंग व शोध से जुड़ी बातों को साझा कर सकेंगे। साथ ही विदेश के कैंसर संस्थानों से भी ऑनलाइन मदद ले सकेंगे। छह माह में ग्रिड के तैयार हो जाने की उम्मीद है। ऐसा होते ही भारत एशिया का पहला देश बन जाएगा, जिसके पास बीमारी से लड़ने का ऐसा तंत्र होगा। अभी तक यह ग्रिड अमेरिका, फ्रांस जैसे कुछ चुनिंदा देशों में ही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय के नोएडा के सेक्टर 39 स्थित नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेन्शन एंड रिसर्च (एनआइसीपीआर) की अगुवाई में मुंबई में इस बाबत नौ-दस अगस्त को मैराथन बैठक होने जा रही है। एनआइसीपीआर व विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग व निर्देशन में हो रही इस बैठक में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान (एम्स), टाटा कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट, राजीव गांधी कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे कई बड़े संस्थानों को आमंत्रित किया गया है। गौरतलब है कि टाटा कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट ने कुछ संस्थानों को जोड़कर ग्रिड तैयार किया था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर यह नई पहल है।


6. फोर्चून 500 की सूची में सात भारतीय कंपनियां:- रेवेन्यू के लिहाज से दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों की फोर्चून की सूची में सात भारतीय कंपनियों ने जगह बनाई है। रिटेल बिजनेस की दिग्गज कंपनी वॉलमार्ट इस लिस्ट में पहले पायदान पर है। भारतीय कंपनियों में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन सबसे आगे तो रही, लेकिन इसका स्थान 161वां है। 2016 की सूची में खास बात यह है कि नवरत्न कंपनी ओएनजीसी इससे बाहर हो गई है। जबकि निजी क्षेत्र की रत्न एवं आभूषण निर्यात करने वाली कंपनी राजेश एक्सपोर्ट्स ने पहली बार सूची में प्रवेश किया है। उसे 423वां स्थान मिला। सात भारतीय कंपनियों में चार सार्वजनिक क्षेत्र की हैं। निजी सेक्टर की कंपनियों मंे रिलायंस इंडस्ट्रीज सबसे आगे है। इसके बाद टाटा मोटर्स और राजेश एक्सपोर्ट्स का नंबर है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में इंडियन ऑयल के बाद एसबीआइ है। फिर भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम का नंबर है। इंडियन ऑयल 5470 करोड़ डॉलर (लगभग 3,66,490 करोड़ रुपये) के रेवेन्यू के साथ 161वें नंबर पर है। बीते साल यह सूची में 119वें स्थान पर थी। रिलायंस इंडस्ट्रीज पिछले साल 158वें से खिसककर 215वें पायदान पर पहुंच गई है।

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