हेग स्थित संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के दक्षिण चीन सागर पर फैसले को जिस तरह चीन ने बुधवार को मानने से इन्कार किया है उससे आने वाले दिनों में इस क्षेत्र के बेहद अशांत होने का संकेत मिलता है। ऐसे में भारत भी पूरी सतर्कता से न सिर्फ समूचे मामले पर पैनी नजर रख रहा है, बल्कि उसी हिसाब से अपनी संभावित रणनीति को धार देने की प्रक्रिया में जुटा है। फिलहाल भारत अंतररराष्ट्रीय बिरादरी के सहयोग से चीन पर अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले को अमल में लाने का दबाब बनाने की रणनीति पर अमल करेगा। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, दक्षिण चीन सागर पर भारत आने वाले दिनों में पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के साथ होगा। चीन ने जिस तरह न्यायालय के आदेश को रद्दी की टोकरी में डालने वाला कहा है उससे उसकी विस्तारवादी मानसिकता की झलक मिलती है। चीन जिस आधार पर इस पूरे समुद्री क्षेत्र पर अपना दावा ठोक रहा है उसे कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस आधार पर ब्रिटेन व यूरोप के अन्य देश अपने पुराने उपनिवेशों पर दावा जता सकते हैं। हर देश को अंतरराष्ट्रीय नियमों का भी पालन करना होगा। बांग्लादेश के साथ अपने सामुद्रिक विवाद मामले में भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेश को स्वीकार किया था। इस सामुद्रिक क्षेत्र में भारत की रुचि का सबसे अहम कारण व्यवसायिक है। भारत के लगभग 750 अरब डॉलर के विदेशी कारोबार का आधा हिस्सा इस रास्ते से गुजरता है। इसके अलावा इस क्षेत्र के तमाम देशों के साथ भारत गहरे आर्थिक संबंध बनाने में जुटा है। वियतनाम, फिलीपींस, कंबोडिया समेत अन्य देशों में भारतीय कंपनियां न सिर्फ बड़ा निवेश कर रही हैं, बल्कि भारतीय उत्पादों का एक अहम बाजार विकसित हो रहा है। चीन के विरोध के बावजूद भारत की राष्ट्रीय तेल कंपनी ओएनजीसी दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के अधिकार वाले दो तेल ब्लाकों में हिस्सेदारी खरीद चुकी है। ऐसे में अगर चीन का वर्चस्व इस समुद्री मार्ग पर होता है तो यह भारत के वैश्विक कारोबार पर काफी प्रतिकूल असर डालेगा। यही वजह है कि भारत चाहता है कि इस क्षेत्र में मौजूदा स्थिति बरकरार रहे और जहाजों की आवाजाही में कोई अड़चन नहीं आए। सूत्रों के मुताबिक, सिर्फ दक्षिण चीन सागर में ही नहीं, बल्कि भारत के चारों तरफ समुद्री इलाकों में जिस तरह चीन अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है वह सबसे बड़ा खतरा है। इसलिए दक्षिण चीन सागर को लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून को मानने के लिए चीन को बाध्य करना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो उसकी मनमानी और बढ़ सकती है जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत पर पड़ सकता है।
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