Thursday, 11 August 2016

13 July 2016...1.द. चीन सागर पर चीन का ऐतिहासिक हक नहीं : इंटरनेशनल ट्राइब्यूनल:-

 दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों पर अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले से पहले राष्ट्रीय एकजुटता का आह्वान करते हुए चीन की मीडिया ने अमेरिका और जापान के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि अगर पीएलए (पिपुल्स लिबरेशन आर्मी) की सैन्य ताकत परीक्षण को लेकर तनाव बढ़ता है तो चीन को सतर्क रहना चाहिए। न्यायाधिकरण का फैसला आने से पहले सरकारी ‘‘ग्लोबल टाइम्स’ ने कहा, अमेरिका और जापान ने दावा किया है कि चीन सहित सम्बंधित देश न्यायाधिकरण के परिणाम का पालन करें। चीन के साथ उनके तीखे टकराव हैं, जिसका कहना है कि यह फैसला ‘‘कागज के टुकड़े से अधिक’ कुछ नहीं होगा।
भारत के लिए इसलिए अहम
• लुक ईस्ट नीति के खयाल से यह महत्वपूर्ण है। अगर चीन की स्थिति मजबूत होती गई तो भारत के लिए समुद्री परिवहन मंी मुश्किलें आएंगी। समुद्री सुरक्षा पर भी खतरा।
• चीनी दावे को गलत ठहराने के लिए अमेरिका ने यह भी तर्क दिया है कि कई देशों के पास ऐसे नक्शे जो बताते हैं कि पिछले कई सौ सालों से भारत, मलय और अरब के व्यापारी इस इलाके से गुजरते रहे हैं।
• वियतनाम ने सबसे पहले 1970 में इस इलाके में तेल और गैस होने का पता लगाया। सर्वेक्षण और अध्ययन के लिए ओएनजीसी से करार। भारत का कहना है कि इस काम में लगी अपनी संपत्ति और अपने लोगों की सुरक्षा के लिए उसके पास नौसेना के उपयोग का अधिकार।
• अमेरिका और जापान के साथ मिलकर भारत के संयुक्त रूप से नौसैनिक युद्ध अभ्यास करने का प्रयास साम्यवादी देश चीन पर दबाव बनाए रखने के लिए ही।
अब क्या होगा
• अदालत का फैसला मानना चीन के लिए बाध्यकारी। अमेरिका ने अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही भी है।
• लेकिन अदालत के पास इसे लागू कराने का तंत्र नहीं।
• चीन का रुख नहीं बदला तो अमेरिका के साथ खड़े होकर कई देश उस पर दबाव बनाएंगे। चीन भी गोलबंदी करेगा। इससे हथियारों की होड़ बढ़ेगी।
• चीन इस इलाके को वायु सुरक्षा चिह्न्ति क्षेत्र (एडिज) घोषित कर सकता है।
• वह स्कारबोरो द्वीपसमूह पर कब्जा भी कर सकता है।

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