Thursday, 11 August 2016

16 July 2016..1. ग्रांट थार्नटन की रिपोर्ट : कारोबारी उम्मीद में भारत शीर्ष से फिसलकर तीसरे पायदान पर खिसका:-

 कारोबारी आशावाद के मामले में लगातार दो तिमाही शीर्ष पर रहने के बाद अप्रैल-जून की तिमाही में भारत तीसरे स्थान पर खिसक गया है।बाजार अध्ययन कंपनी ग्रांट थॉर्नटन के यहां जारी अंतरराष्ट्रीय कारोबार रिपोर्ट (आईबीआर) में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे महत्वपूर्ण सुधारों में देरी, कर विवादों का समाधान नहीं हो सकने तथा बैंकों पर बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के बोझ के कारण उनके कमजोर भविष्य की आशंका एवं सार्वजनिक बैंकों के पुनपरूजीकरण की जरूरत के मद्देनजर भारत को लेकर कारोबारियों का विास कमजोर पड़ा है।रिपोर्ट 36 देशों की 2,500 कंपनियों/उद्यमों के वरिष्ठ अधिकारियों के सव्रेक्षण के आधार पर तैयार की गई है। इसमें कहा गया है कि ओवरआल कारोबारी विास में भारत भले शीर्ष से दो स्थान नीचे उतर गया है, लेकिन राजस्व वृद्धि के मामले में यह शीर्ष पर बना हुआ है। सव्रेक्षण के 96 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना है कि राजस्व में बढ़ोतरी होगी। इसमें उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी के भी संकेत मिले हैं। इस मामले में भारत जनवरी मार्च के तीसरे स्थान से एक पायदान चढ़कर दूसरे पायदान पर पहुंच गया है।रोजगार बढ़ने की उम्मीद के मामले में यह शीर्ष स्थान से खिसककर दूसरे तथा मुनाफा बढ़ने की आशावादिता में तीसरे से एक स्थान गिरकर चौथे पायदान पर आ गया।रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कारोबार को लेकर उम्मीद जहां कम हुई ह, वहीं निर्यात को लेकर उम्मीद बढ़ी है। सव्रे के अनुसार, जनवरी-मार्च की तिमाही में 13 प्रतिशत उद्यमियों ने निर्यात बढ़ने की संभावना जताई थी जबकि अप्रैल-जून की तिमाही में ऐसा कहने वालों की संख्या बढ़कर 35 प्रतिशत पर पहुंच गई है। नियमों और लाल फीताशाही को विकास में अवरोधक मानने वालों के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर रहा।कंपनियों की नई इमारतों में निवेश की उम्मीद भी कम हुई है। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में भारत इस मामले में शीर्ष पर रहा था। 51 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा था कि वे नई इमारतों में निवेश करेंगी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उनकी संख्या घटकर महज 30 प्रतिशत रह गई। सिर्फ 41 प्रतिशत प्रतिभागियों ने ही नये संयंत्र और मशीनरी में निवेश बढ़ाने की संभावना जताई।अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) भी चिंता का कारण बना हुआ है। केवल 24 प्रतिशत कंपनियों ने ही कहा कि वे आरएंडडी पर अपना निवेश बढ़ायेंगी। जनवरी-मार्च तिमाही में 31 प्रतिशत कंपनियों ने ऐसा कहा था।

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