1.तुर्की में तख्तापलट नाकाम, 265 की मौत:- तुर्की में सैन्य विद्रोह कर तख्तापलट की कोशिश को नाकाम कर दिया गया है। लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टरों और तोपों के हमलों से बेपरवाह लोग राष्ट्रपति रेसेप तैयप एदरेगन की अपील के बाद भारी तादाद में सड़कों पर उतरे और सरकार समर्थक सैनिकों ने सत्ता पर काबिज होने के बागियों के मंसूबों को चकनाचूर कर दिया। हालांकि लोकतंत्र की हिफाजत की इस जंग में 161 लोगों को जान गंवानी पड़ी। वहीं जवाबी कार्रवाई में एदरेगन समर्थक जवानों ने 104 बागी सैनिकों को मार गिराया। तख्तापलट की साजिश में दो शीर्ष जनरलों समेत 2839 बागियों को गिरफ्तार किया गया। 2,745 जजों को भी हटा दिया गया है। बागियों के हमले से संसद भवन क्षतिग्रस्त हो गया है। विद्रोहियों ने सरकारी टेलीविजन को कब्जे में लेकर सैनिक शासन की जबरिया घोषणा करा दी, लेकिन शनिवार सुबह होते-होते इसकी हवा निकल गई। बागियों के हमले में राष्ट्रपति एदरेगन बाल-बाल बचे। दक्षिण-पश्चिमी तटीय शहर मैरीमेरिस में छुट्टी मना रहे राष्ट्रपति के उस ठिकाने को भी बमबारी कर उड़ा दिया, जहां वह ठहरे थे। लेकिन, शुक्रवार रात को बगावत की सूचना मिलते ही एदरेगन वहां से इस्तांबुल के लिए निकल चुके थे। उन्होंने सीएनएन के रिपोर्टर के स्मार्ट फोन की वीडियो कॉलिंग सर्विस के जरिये देशवासियों को संबोधित किया। सैन्य विद्रोह के खिलाफ अपील करते हुए कहा, ‘सड़कों पर कब्जा जमाए रखो, कभी कुछ भी हो सकता है।’ उन्होंने विद्रोह के लिए अमेरिका में रह रहे फेतुल्ला गुलेन के अनुयायियों को दोषी ठहराया। एदरेगन के आह्वान के बाद उनकी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी का झंडा लहराते हजारों कार्यकर्ता व आम लोग सड़कों पर उतर आए और बागी सैन्य टुकड़ियों को घेरना शुरू कर दिया। मार्शल लॉ लगे होने का हवाला देते हुए घर लौटने की अपील की तो जनता भिड़ गई।
2. केंद्र व राज्यों के बीच बने एक राय : मोदी:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों से खुफिया सूचना साझा करने के लिए कहा है जिससे देश को आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से लड़ने में चौकन्ना तथा तैयार रहने में मदद मिलेगी। यह बात उन्होंने शनिवार को दस साल के अंतराल के बाद आयोजित अंतर राज्यीय परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए कही।प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से कहा, हमें इस बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि हमारी आंतरिक सुरक्षा के समक्ष खड़ी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हम अपने देश को किस तरह तैयार कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि आंतरिक सुरक्षा तब तक मजबूत नहीं की जा सकती जब तक कि राज्य और केंद्र खुफिया सूचना साझा करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते।उन्होंने कहा, हमें हमेशा चौकन्ना तथा अद्यतन रहना होगा। सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल तथा 17 केंद्रीय मंत्री अंतर-राज्यीय परिषद के सदस्य हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि परिषद की बैठक में आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों और इस बारे में र्चचा होगी कि उनसे कैसे लड़ा जाए और राज्य तथा केंद्र किस तरह सहयोग कर सकते हैं। मोदी ने कहा, घनिष्ठ सहयोग से, हम न सिर्फ केंद्र-राज्य संबंधों को मजबूत करेंगे बल्कि नागरिकों के लिए बेहतर भविष्य भी बनाएंगे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बैठक में भाग नहीं लिया। जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (पीडीपी) भी बैठक में शामिल नहीं हुई।
राज्यपालों की भूमिका को लेकर उठे सवाल
केंद्र और राज्यों के बीच संबंध बेहतर बनाने के लिए 10 साल बाद बुलाई गई अंतर्राज्यीय परिषद की बैठक पर उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश का साया दिखा। विपक्षी मुख्यमंत्रियों ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यपाल के पद पर सवाल उठाया। वहीं कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने इस पद के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के विकास के लिए राज्यों को केंद्र के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने की अपील की।
लोकतंत्र में वाद-विवाद-संवाद की अहमियत पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कथन का उल्लेख करते हुए मोदी ने विकास में सबके सहयोग पर बल दिया। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने विकास में राज्यों को भागीदार बनाने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा, इसीलिए केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 10 फीसद बढ़ाई गई है। इसी का परिणाम है कि राज्यों को 2014-15 के मुकाबले 2015-16 में केंद्र से 21 फीसद अधिक राशि मिली है। इसके अलावा पंचायतों और स्थानीय निकायों के लिए दो लाख, 87 हजार करोड़ रुपये अलग से दिए जा रहे हैं। उन्होंने कैंपा फंड के 40 हजार करोड़ रुपये राज्यों को मुहैया कराने के लिए कानून में बदलाव का भी आश्वासन दिया। प्रधानमंत्री की अपील के बावजूद विपक्षी मुख्यमंत्रियों ने अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड की आड़ में राज्यपाल की भूमिका पर सवालिया निशान लगाया। विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर मोदी सरकार की गंभीरता पर संदेह जताया। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के कामकाज में उप राज्यपाल की दखलंदाजी का मुद्दा भी उठाया। अपने समापन भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि सर्वशिक्षा अभियान की सफलता के बाद अब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराना सरकार की पहली प्राथमिकता है। उन्होंने आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर व्यापक एकजुटता पर बल दिया।
राज्यपालों की भूमिका को लेकर उठे सवाल
केंद्र और राज्यों के बीच संबंध बेहतर बनाने के लिए 10 साल बाद बुलाई गई अंतर्राज्यीय परिषद की बैठक पर उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश का साया दिखा। विपक्षी मुख्यमंत्रियों ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यपाल के पद पर सवाल उठाया। वहीं कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने इस पद के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के विकास के लिए राज्यों को केंद्र के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने की अपील की।
लोकतंत्र में वाद-विवाद-संवाद की अहमियत पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कथन का उल्लेख करते हुए मोदी ने विकास में सबके सहयोग पर बल दिया। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने विकास में राज्यों को भागीदार बनाने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा, इसीलिए केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 10 फीसद बढ़ाई गई है। इसी का परिणाम है कि राज्यों को 2014-15 के मुकाबले 2015-16 में केंद्र से 21 फीसद अधिक राशि मिली है। इसके अलावा पंचायतों और स्थानीय निकायों के लिए दो लाख, 87 हजार करोड़ रुपये अलग से दिए जा रहे हैं। उन्होंने कैंपा फंड के 40 हजार करोड़ रुपये राज्यों को मुहैया कराने के लिए कानून में बदलाव का भी आश्वासन दिया। प्रधानमंत्री की अपील के बावजूद विपक्षी मुख्यमंत्रियों ने अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड की आड़ में राज्यपाल की भूमिका पर सवालिया निशान लगाया। विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर मोदी सरकार की गंभीरता पर संदेह जताया। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के कामकाज में उप राज्यपाल की दखलंदाजी का मुद्दा भी उठाया। अपने समापन भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि सर्वशिक्षा अभियान की सफलता के बाद अब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराना सरकार की पहली प्राथमिकता है। उन्होंने आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर व्यापक एकजुटता पर बल दिया।
3. न्यायिक प्रणाली में सुधार की बड़ी गुंजाइश : जस्टिस ठाकुर:- भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) जस्टिस टीएस ठाकुर ने देश की न्यायिक प्रणाली में सुधार की बड़ी गुंजाइश बताई है। यहां आयोजित ‘वकीलों के लिए सतत कानूनी शिक्षा और उसके लाभ’ विषयक सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि जस्टिस ठाकुर ने शनिवार को कहा कि आजादी के बाद न्यायिक प्रणाली में हुए कई सुधारों से देश लाभान्वित हुआ। उन्होंने वकीलों की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुएकहा कि कानून का शासन और प्रजातंत्र तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक देश के प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय सुलभ न हो जाए। कानून में हो रहे परिवर्तनों से वकील अपडेट रहेंगे तो निश्चय ही न्याय दिलाने में वे अधिक सफल होंगे। उन्होंने जजों से भी अपेक्षा व्यक्त की कि वे लगातार सीखने की प्रवृत्ति रखें ताकि हमारी न्यायिक प्रणाली सशक्त बनी रहे। इससे देश लाभान्वित होगा। बार काउंसिल ऑफ इंडिया और झारखंड स्टेट बार काउंसिल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सीजेआइ ने कहा कि पहले सिर्फ जजों के प्रशिक्षण की व्यवस्था थी, लेकिन अब वकीलों के प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। परिवर्तनों से स्वयं को अपडेट नहीं करने वाले इस पेशे में लंबे समय तक नहीं बने रह सकते। जस्टिस ठाकुर ने संगोष्ठी के पूर्व बार काउंसिल द्वारा बनवाई जाने वाली लायर्स एकेडमी का शिलान्यास किया। इस प्रकार केरल के बाद झारखंड देश का दूसरा प्रदेश बन जाएगा, जिसके पास लायर्स एकेडमी होगी। जस्टिस ठाकुर ने कहा कि पेशे को बदनाम करने वाले वकीलों के खिलाफ बार काउंसिल कठोर कार्रवाई करे। उन्होंने कहा कि पेशे का दुरुपयोग करने वालों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाना चाहिए
4. असेम सम्मलेन में दक्षिणी चीन सागर मुद्दे से बनी दूरियां :- एशिया और यूरोपीय देशों के नेताओं का शिखर सम्मेलन शनिवार को दक्षिण चीन सागर विवाद का सीधा जिक्र किए बिना समाप्त हो गया। यह मुद्दा उठाया जाए या नहीं इसे लेकर देशों में मतभेद था। शुक्रवार को चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने सम्मेलन में चेतावनी दी थी कि यह उसका अंदरूनी मामला है, इसमें कोई दखल दे। चीन ने दक्षिण चीन सागर को लेकर इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल का फैसला मानने से इनकार कर दिया है। यह मंच दक्षिण चीन सागर पर चर्चा के लिए उचित मंच नहीं है। अलबत्ता, इसमें कहा गया कि सभी देशों को समुद्री परिवहन के क्षेत्र में सुरक्षा, स्वतंत्रता और आवागमन में सहयोग बढ़ाना चाहिए। साथ ही आक्रामक बल का उपयोग करने से बचना चाहिए। यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने बताया कि सम्मेलन में माना गया कि विवादों का निपटारा अंतरराष्ट्रीय कानूनों, संयुक्त राष्ट्र ट्रिब्यूनल और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मुताबिक होना चाहिए। एक दिन पहले यूरोपीय संघ ने बयान जारी कर कहा था कि पड़ोसी देशों से विवाद में चीन की करारी कानूनी हार हुई है। लेकिन, शनिवार को वह खामोश रहा। असल में आम तौर पर यूरोपीय संघ चीन और उसके पड़ोसी देशों के विवादों में तटस्थ रहता है।
No comments:
Post a Comment