1.इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास नहीं हुआ तो, फेल हो जाएगा 'मेक इन इंडिया':- सरकार'मेक इन इंडिया' का चाहे जितना प्रचार करे, इसकी सफलता के लिए पहले इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास जरूरी है। कंपनियों के कामकाज में सुधार भी काफी हद तक इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करेगा। यदि इसका विकास हो जाए तो स्टील, सीमेंट, ऑटो और रियल इस्टेट समेत कई क्षेत्र तेजी से आगे बढ़ेंगे। भारतीय कंपनियों के सामने ऊंची ब्याज दर की भी समस्या है। ब्याज दर ज्यादा होने से कंपनियों को कर्ज लेने में दिक्कत होती है, उन पर वित्तीय दबाव पड़ता है। यह कहना है वैश्विक रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स का। इसके विश्लेषक अभिषेक डांगरा ने बताया कि कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर से भारत को जीडीपी के 5% के बराबर नुकसान होता है। निर्यात में भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धी क्षमता भी कम होती है। डांगरा के अनुसार इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में एक रुपया खर्च होता है तो इससे जीडीपी दो रुपए बढ़ती है। सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च कर रही है, लेकिन ज्यादा निवेश से उसका घाटा बढ़ने का अंदेशा है। इसलिए यहां निजी निवेश की जरूरत होगी। भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर के बारे में एजेंसी ने कहा है कि इसका प्रदर्शन अब बेहतर होगा। इसे जितना नीचे जाना था, जा चुका है।
• भारतीय कंपनियों के सामने ऊंची ब्याज दर की भी समस्या आती है आड़े
• 0.9% तक घटाई हैं हाल के महीनों में भारतीय बैंकों ने ब्याज दरें। आगे दरें और घटेंगी। इससे नेट इंटरेस्ट मार्जिन कम होगा।
• इकोनॉमी में जोखिम ज्यादा: भारतीयबैंकों का बढ़ता एनपीए बताता है कि इकोनॉमी में जोखिम बढ़े हैं। संकटग्रस्त सेक्टर की कंपनियों को दिए कर्ज का अनुपात अभी और बढ़ेगा।
• धीमे औद्योगिक सुधार से बैंकों को दो साल तक कर्ज वसूली में दिक्कत आएगी। इससे मुनाफा घटेगा, कर्ज देने की क्षमता भी कम होगी। 2016-17 में कर्ज वृद्धि 11-13% रह सकती है।
• ड्रैगन को पीछे छोड़ सकती है इंडिया इंक एसएंडपीका कहना है कि भारत की 200 शीर्ष कंपनियों में चीन की कंपनियों को पीछे छोड़ने की क्षमता है।
• भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी बाधाओं के बावजूद ये चीनी कंपनियों को पछाड़ने के कगार पर हैं।
• बाजार पूंजीकरण के आधार पर दोनों देशों की शीर्ष 200 कंपनियों के विश्लेषण से पता चला है कि भारत के मुकाबले चीन की लिस्टेड कंपनियों में सरकारी दखल काफी ज्यादा है।
• इससे उनकी क्षमता प्रभावित होती है। शीर्ष 200 भारतीय कंपनियों के कर्ज तथा कर पूर्व लाभ में निजी कंपनियों का योगदान 75% है, जबकि चीन के मामले में यह महज 20% है।
• दो साल बाद गिरा भारतीय उपभोक्ताओं का भरोसा नईदिल्ली | पेट्रोल-डीजल के साथ महंगाई बढ़ने के कारण साल की जून तिमाही में इकोनॉमी के प्रति उपभोक्ताओं का भरोसा गिर गया है। इस मामले में भारत लगातार दो साल से शीर्ष पर था।
• मार्केट सर्वे फर्म नीलसन के मुताबिक अप्रैल-जून में कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स 128 पर गया। यह जनवरी-मार्च में 128 था। फिलिपींस 132 अंकों के साथ अब पहले और भारत दूसरे स्थान पर है।
• लोग हालात को देखते हुए खर्च करने के बजाय बचत ज्यादा कर रहे हैं। इसने यह सर्वे 63 देशों में किया।
• 9% सबसे कम लोन ग्रोथ अक्टू. 15 में
• 18.70% सबसे ज्यादा ग्रोथ अप्रैल 2012 में।
• 7.7% रहेगी जीडीपी ग्रोथ सिटीग्रुप के अनुसार। यह ग्रोथ अच्छे मानसून और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से आएगी। ग्रामीण डिमांड 5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बढ़ेगी।
• 13.36% रही लोन ग्रोथ 2012 से अब तक
• 0.9% तक घटाई हैं हाल के महीनों में भारतीय बैंकों ने ब्याज दरें। आगे दरें और घटेंगी। इससे नेट इंटरेस्ट मार्जिन कम होगा।
• इकोनॉमी में जोखिम ज्यादा: भारतीयबैंकों का बढ़ता एनपीए बताता है कि इकोनॉमी में जोखिम बढ़े हैं। संकटग्रस्त सेक्टर की कंपनियों को दिए कर्ज का अनुपात अभी और बढ़ेगा।
• धीमे औद्योगिक सुधार से बैंकों को दो साल तक कर्ज वसूली में दिक्कत आएगी। इससे मुनाफा घटेगा, कर्ज देने की क्षमता भी कम होगी। 2016-17 में कर्ज वृद्धि 11-13% रह सकती है।
• ड्रैगन को पीछे छोड़ सकती है इंडिया इंक एसएंडपीका कहना है कि भारत की 200 शीर्ष कंपनियों में चीन की कंपनियों को पीछे छोड़ने की क्षमता है।
• भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी बाधाओं के बावजूद ये चीनी कंपनियों को पछाड़ने के कगार पर हैं।
• बाजार पूंजीकरण के आधार पर दोनों देशों की शीर्ष 200 कंपनियों के विश्लेषण से पता चला है कि भारत के मुकाबले चीन की लिस्टेड कंपनियों में सरकारी दखल काफी ज्यादा है।
• इससे उनकी क्षमता प्रभावित होती है। शीर्ष 200 भारतीय कंपनियों के कर्ज तथा कर पूर्व लाभ में निजी कंपनियों का योगदान 75% है, जबकि चीन के मामले में यह महज 20% है।
• दो साल बाद गिरा भारतीय उपभोक्ताओं का भरोसा नईदिल्ली | पेट्रोल-डीजल के साथ महंगाई बढ़ने के कारण साल की जून तिमाही में इकोनॉमी के प्रति उपभोक्ताओं का भरोसा गिर गया है। इस मामले में भारत लगातार दो साल से शीर्ष पर था।
• मार्केट सर्वे फर्म नीलसन के मुताबिक अप्रैल-जून में कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स 128 पर गया। यह जनवरी-मार्च में 128 था। फिलिपींस 132 अंकों के साथ अब पहले और भारत दूसरे स्थान पर है।
• लोग हालात को देखते हुए खर्च करने के बजाय बचत ज्यादा कर रहे हैं। इसने यह सर्वे 63 देशों में किया।
• 9% सबसे कम लोन ग्रोथ अक्टू. 15 में
• 18.70% सबसे ज्यादा ग्रोथ अप्रैल 2012 में।
• 7.7% रहेगी जीडीपी ग्रोथ सिटीग्रुप के अनुसार। यह ग्रोथ अच्छे मानसून और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से आएगी। ग्रामीण डिमांड 5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बढ़ेगी।
• 13.36% रही लोन ग्रोथ 2012 से अब तक
2. जीएसटी में छह संशोधन पेश होंगे:- राज्यसभा में बुधवार को पेश होने वाले वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी ) विधेयक में 6 संशोधन पेश किये जायेंगे। सबसे महत्वपूर्ण संशोधनों में राज्यों से एकत्रित किये गए कर राशि को राजकोष में जमा नहीं किया जायेगा और राज्यों को पांच साल के लिए मुआवजा देना पक्का किया जायेगा।जीएसटी विधयक को राज्यसभा में पेश करने और सर्वसम्मति से पारित कराने की कवायद पूरी हो गयी है। सरकार ने प्रस्तावित संशोधनों की प्रति सदस्यों के बीच वितरित कर दी है। वित्तमंत्री अरु ण जेटली ने छ: संशोधन प्रस्तावित किये हैं। राज्यों ने मांग की थी कि राज्यों से वसूल किये गए कर को राजकोष में जमा न कराया जाये क्योंकि राज्यों को धन वापसी के वक्त सरकार को हर बार संसद की अनुमति लेने के लिए आना होगा। यानि केंद्र और राज्यों को संसद सत्र इंतजार करना होगा। केंद्र ने राज्यों के इस तर्क को स्वीकार कर लिया है। अब यह धन केंद्र के खाते में जमा होगा और राज्यों को जरूरत के अनुसार उनका उनका हिस्सा दे दिया जायेगा।दूसरा संशोधन विवाद को लेकर है। विवाद तीन स्तर पर हो सकता है ,पहला - केंद्र और राज्यों के बीच, दूसरा - केंद्र के साथ कुछ राज्य हों और कुछ बिरोध में हो और तीसरा दो राज्यों के बीच बीच विवाद खड़ा हो जाये। इन तीनों स्थितियों से निपटने के लिए तीन कमेटियां बनायी जाएंगी। एक और महत्वपूर्ण संशोधन राज्यों को पांच साल तक मुआवजा देना सुनिश्चित करना है। विधेयक से केंद्र सरकार का एक प्रतिशत हिस्सा वसूलने के प्रावधान को भी जा रहा है। विधेयक को बुधवार को पारित किया जायेगा और यदि राष्ट्रपति ने दस्तखत कर दिए तो इसे बृहस्पतिवार को फिर लोकसभा में पेश किया जायेगा। वैसे लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
3. छह शहरों को आइआइटी का तोहफा : आइआइएम को मिलेगी अधिकतम स्वायत्तता:- जम्मू और छत्तीसगढ़ के भिलाई समेत देश के छह शहरों में नए आइआइटी खोले जाएंगे। इस संबंध में संसद में प्रस्ताव पारित हुआ है। राज्य सभा ने मंगलवार को ध्वनिमत से प्रौद्योगिकी संस्थान (संशोधन) विधेयक 2016 पर मुहर लगा दी। लोकसभा से यह 25 जुलाई को ही पारित हो चुका है। इसमें धनबाद के इंडियन स्कूल ऑफ माइंस (आइएसएम) को आइआइटी में प्रोन्नत करने का प्रस्ताव है। जम्मू और भिलाई के अलावा जिन अन्य शहरों को आइआइटी का तोहफा मिला है, उनमें पलक्कड़ (केरल), गोवा, धारवाड़ (कर्नाटक) और तिरुपति (आंध्र प्रदेश) हैं। विधेयक पर चर्चा के दौरान मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘आइआइटी उत्कृष्टता का केंद्र है और वे इसे ऐसा ही बरकरार रखेंगे। हम ऐसी कोई भी चीज नहीं देंगे, जिससे इन प्रौद्योगिकी संस्थानों के गुणवत्ता स्तर पर फर्क पड़ता है। इनके मानकों से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। असल में हम सभी को उनमें सुधार के प्रयास करने और उन्हें वास्तविक विश्वस्तरीय संस्थान बनाना चाहिए। लिहाजा, गुणवत्ता निश्चित ही महत्वपूर्ण है।’ आइआइटी संस्थानों की स्वायत्तता के बारे में चर्चा करते हुए जावड़ेकर ने कहा, ‘आइआइटी संस्थानों के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में मानव संसाधन मंत्रालय का प्रतिनिधित्व नहीं है। प्रौद्योगिकी संस्थान पूरी तरह इन बोर्ड के जरिये संचालित होते हैं। सरकार का काम केवल वित्तीय मदद मुहैया कराना है। वह हम करते रहेंगे।’ भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आइआइएम) को जल्द ही काफी स्वायत्तता मिल सकेगी। इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने संशोधित आइआइएम बिल तैयार कर लिया है। हालांकि इसमे आइआइएम को अध्यापकों की नियुक्ति में आरक्षण के प्रावधानों को लागू नहीं करने की भी छूट दी गई है। इससे नया राजनीतिक विवाद भी खड़ा हो सकता है। मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय के एक वरिष्ठ सूत्र बताते हैं कि संशोधित आइआइएम बिल तैयार कर लिया गया है। नए बिल में इन शीर्ष प्रबंधन संस्थानों को पूरी स्वायत्तता देने का प्रावधान किया गया है। इसके मुताबिक नए बिल में भी आइआइएम फोरम के गठन का प्रावधान है, लेकिन इसके फैसले बाध्यकारी नहीं होंगे। फीस तय करने से लेकर अपने संसाधन जुटाने तक के मामले में हर संस्थान अपने फैसले लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होगा। इसका संचालक मंडल इससे जुड़े नियमों में कोई भी जरूरी बदलाव कर सकेगा। मंत्रलय की भूमिका सिर्फ निदेशक की नियुक्ति तक ही सीमित होगी। अगर प्रस्तावित विधेयक पारित हो गया तो इन प्रबंधन संस्थानों को अपने शिक्षकों की नियुक्ति में भी अपने मुताबिक नियम बनाने का पूरा अधिकार होगा। यहां तक कि केंद्र सरकार के आरक्षण संबंधी नियम भी इन पर लागू नहीं होंगे। हालांकि छात्रों के दाखिले में आरक्षण का नियम लागू होगा। इस बिल का कैबिनेट नोट तैयार हो गया है। अब जल्द ही इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए कैबिनेट सचिवालय को भेजा जाएगा। यहां से मंजूरी मिलने के बाद इसे संसद में पेश किया जाएगा। इससे पहले मंत्रालय की ओर से भेजे गए बिल को कैबिनेट ने वापस कर दिया था। तब इस बिल में इन प्रबंधन संस्थानों से जुड़े फैसलों में मंत्रालय की भूमिका काफी अहम रखी गई थी। यहां तक कि छात्रों के लिए फीस भी इन्हें मंत्रालय की सहमति से ही तय करना था। मगर प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसका विरोध करते हुए इसे ज्यादा से ज्यादा स्वायत्तता देने को कहा था। विभिन्न आइआइएम और इनके निदेशकों ने भी पिछले बिल का विरोध किया था। लेकिन पूर्व मंत्री के कार्यकाल में मंत्रलय इस बिल में ज्यादा बदलाव को तैयार नहीं था।
4. माओवादी नेता ने भरा पर्चा, तीन सूत्री समझौते से बनी बात:- माओवादी नेता पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के दूसरी बार नेपाल का प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया है। मधेशी दलों के साथ मंगलवार को तीन सूत्री समझौते पर दस्तख्त कर उन्होंने इसके लिए रास्ता तैयार किया। इसके बाद उन्होंने पर्चा दाखिल किया। उनके अलावा किसी और ने इस पद के लिए दावेदारी पेश नहीं की है। लिहाजा, बुधवार को संसद की ओर से उनके नाम पर मुहर लगने की औपचारिकता ही बच गई है। माना जा रहा है कि इसके बाद वे अपने कैबिनेट सहयोगियों का भी एलान कर देंगे। सीपीएन-माओवादी के 61 वर्षीय अध्यक्ष प्रचंड की उम्मीदवारी का सबसे बड़े दल नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और माओवादी नेता कृष्ण बहादुर महारा ने किया है। इससे पहले दूसरी सबसे बड़ी पार्टी सीपीएन-यूएमएल अपना उम्मीदवार पेश करने के फैसले से पीछे हट गई। हालांकि पार्टी ने साफ कर दिया है कि बुधवार को संसद में मतदान के दौरान वे प्रचंड के खिलाफ वोट करेगी। गौरतलब है कि केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार से प्रचंड ने पिछले महीने समर्थन वापस ले लिया था। ओली ने 24 जुलाई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन, संविधान में उपेक्षा से नाराज मधेशी दलों की ओर से बिना समझौते के समर्थन नहीं देने के एलान ने प्रचंड की मुश्किलें बढ़ा दी थी। समझौता होने के बाद मधेश लोकतांत्रिक पार्टी के नेता सर्वेद्र नाथ शुक्ल और सद्भावना पार्टी के नेता लक्ष्मण लाल कर्ण ने प्रधानमंत्री पद के लिए प्रचंड के समर्थन का एलान किया। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की ओर से बहुमत वाली सरकार बनाने का आह्वान करने के बाद यह पहल की गई। भंडारी ने सोमवार को राजनीतिक अस्थिरता खत्म करने के लिए सभी दलों से आम राय की अपील की थी।
5. द. चीन सागर पर चीनी सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग : अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन अपराध होगा:- विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में चीन की दावेदारी खारिज करने वाला आपराधिक न्यायाधिकरण का फैसला निष्प्रभावी करने की कोशिश के तहत यहां के सुप्रीम कोर्ट ने एससीएस में देश के अधिकार क्षेत्र को पुन: पुष्ट करते हुए मंगलवार को एक नियम जारी किया और उसकी संप्रभुता का उल्लंघन करने वाले अन्य देशों को आपराधिक तौर पर जिम्मेदार ठहराए जाने की चेतावनी दी।समाचार एजेंसी शिंहुआ के अनुसार सुप्रीम पीपल्स कोर्ट (एसपीसी) ने समुद्री क्षेत्र पर चीन के अधिकारिक क्षेत्र को स्पष्ट करने के लिए न्यायिक व्याख्या करने वाला एक नियम जारी किया। यह व्याख्या चीन को समुद्री व्यवस्था, समुद्री सुरक्षा एवं हितों की रक्षा करने और देश के अधिकार क्षेत्र वाले समुद्र क्षेत्रों पर एकीकृत प्रंबधन लागू करने के लिए एक स्पष्ट कानूनी आधार मुहैया कराती है। मंगलवार से प्रभावी हो रहे इस नियम में कहा गया है कि यदि चीन या अन्य देशों के नागरिकों को चीन के अधिकार वाले समुद्री क्षेत्रों में अवैध शिकार करने या मछली पकड़ने या विलुप्तप्राय: वन्यजीवों की हत्या करने के मामले में शामिल पाया जाता है तो उन्हें आपराधिक तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाएगा।एसपीसी के बयान में कहा गया है, न्यायिक अधिकार राष्ट्रीय संप्रभुता का एक अहम तत्व हैं। पीपल्स अदालतें चीन के समुद्री क्षेत्रों में सक्रि य तौर पर अपने अधिकार का प्रयोग करेंगी, समुद्री प्रबंधन कर्तव्यों को कानूनी रूप से निभाने के लिए प्रशासनिक विभागों का समर्थन करेंगी, चीनी नागरिकों एवं अन्य देशों के संबद्ध पक्षों के कानूनी अधिकारों की समान रक्षा करेंगी और चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता एवं समुद्री हितों की सुरक्षा करेंगी। स्थाई मध्यस्थता अदालत द्वारा नियुक्त न्यायाधिकरण ने 12 जुलाई को सुनाए आदेश में एससीएस पर चीन के नाइन-डैश-दावे को खारिज कर दिया था। एसपीसी के इस कदम को इसी फैसले की पृष्ठभूमि में लगभग संपूर्ण एससीएस में चीन के समुद्री दावों को कानूनी आधार मुहैया कराने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
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