Sunday, 21 August 2016

दैनिक समसामयिकी 07 August 2016(Sunday)


1.मोदी ने आर्थिक लक्ष्यों को लेकर बहुत स्पष्ट ढंग से रखी अपनी राय : स्वास्थ्य के प्रति भारतीयों की उदासीनता पर पीएम ने जताया क्षोभ:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उन्हें 125 करोड़ भारतीयों के सपने पूरा करने की धुन है और इसलिए वह थकते नहीं हैं। शनिवार को टाउनहॉल कार्यक्रम में उनसे पूछा गया कि लंबी यात्रओं के तुरत बाद भी वह तत्काल काम पर जुट जाते हैं, इसका राज क्या है। क्या वह थकते नहीं हैं। मोदी ने कहा कि यह सवाल उनसे कई बार पूछा जाता रहा है। विदेश में रहने वाले भारतीय यात्र के बाद थकान की बात भी करते हैं। मोदी ने कहा कि वह देश के लोगों के सपनों और उनकी स्थितियों से हर वक्त दिल से जुड़े रहते हैं। इसलिए उन्हें लगता है कि उनके पास जो भी समय है, शक्ति है, वह उन्हें इसे पूरा करने के लिए लगा देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘कई लोग कहते हैं कि आपमें अतिरिक्त ऊर्जा है। लेकिन ईश्वर ने सबको समान ऊर्जा दी है। मुझमें भी उतनी ही है। मैं उसका उपयोग कर इसे बढ़ाता रहता हूं। स्वस्थ जीवन को बहुत तवजो नहीं देने के लोगों के रवैये पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षोभ प्रकट किया है। उन्होंने खास तौर पर इस बात पर नाराजगी जताई कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद लाखों बचों का अभी भी टीकाकरण नहीं हो सका है। अपने पहले टाउनहॉल कार्यक्रम में मोदी ने संकेत दिए कि सरकार स्वास्थ्य बीमा को लेकर एक बड़ी योजना तैयार कर रही है जो देश के हर व्यक्ति के लिए होगी।
मोदी ने कहा कि हाल ही में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि लाखों बचों का टीकाकरण अब भी नहीं हो पाया है। अब सरकार इंद्रधनुष योजना के तहत लोगों के घर जाकर बचों के टीकाकरण का कार्यक्रम चलाने जा रही है। साथ ही सरकार हेल्थ बीमा पर भी काम कर रही है। इसकी घोषणा पिछले बजट में ही की गई थी।
कई समस्याएं सरकार की वजह से भी : मोदी काफी बेबाक रहे। जब उनसे गवर्नेस पर सवाल किया गया तो उन्होंने गुड गवर्नेस को भारत की कई समस्याओं का समाधान बताया। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि भारत में कई समस्याओं की जड़ में तो सरकार ही होती है। यह भांपते हुए कि उनके इस बयान का राजनीतिकरण हो सकता है, मोदी ने कहा कि ‘उन्हें मालूम है कि इस बयान के बाद क्या क्या होगा।’
खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन : नए नारे देने के लिए मशहूर प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को खादी सेक्टर के लिए एक नया स्लोगन दे दिया। उनसे सवाल पूछा गया था कि हैंडलूम सेक्टर के लिए सरकार क्या कर रही है। इसके जवाब में पीएम मोदी ने हैंडलूम और खादी सेक्टर को नए फैशन से जोड़ने की वकालत की और ‘खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन’ का नारा दिया। मोदी पहले भी हर भारतीय से खादी निर्मित एक समान खरीदने की बात कह चुके हैं।
हर एनआरआइ पांच विदेशियों को भेजे भारत : मोदी ने सभी प्रवासी भारतीयों से आग्रह किया है कि वे साल में पांच विदेशी परिवारों को भारत भ्रमण के लिए भेजें। इससे भारत में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या काफी बढ़ सकती है। पीएम ने बताया कि पहले छह महीने में भारत में 40 लाख पर्यटक आ चुके हैं जो काफी अछी स्थिति है। उन्होंने भारत की हजारों साल परंपरा और खान-पान की विविधता की विदेशी पर्यटकों में यादा मार्केटिंग करने की जरूरत बताई।
माइगाव मर्केडाइज : इस अवसर पर मोदी ने मर्केडाइज का भी उद्घाटन किया। इस पर उपहार जैसे कई तरह के सामान बिकेंगे। मोदी ने कहा कि वह पहले तो घबड़ा गए थे लेकिन यह जानकर संतुष्टि हुई कि इससे होने वाली आमदनी का गंगा की सफाई के लिए उपयोग किया जाएगा।ठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली
पिछले कुछ दिनों के दौरान आर्थिक सुधार से जुड़े कई कदमों को उठाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकेत दिए हैं कि उनकी सरकार लंबे समय तक आठ फीसदी आर्थिक विकास दर का लक्ष्य रख सकती है। मोदी ने शनिवार को अपने पहले टाउनहॉल कार्यक्रम में अपनी सरकार के आर्थिक लक्ष्यों को लेकर यादा स्पष्टता से राय रखी। मोदी ने कहा कि अगर तीस वर्षो तक अर्थव्यवस्था में लगातार आठ फीसदी की विकास दर बनाई जाए तो दुनिया की हर सुविधा भारतीयों के कदमों में रखी जा सकती है। चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने साढ़े सात फीसद विकास दर का लक्ष्य रखा है। जीएसटी लागू होने के बाद इसमें अतिरिक्त एक फीसद और जुड़ने की बात कही जा रही है।
मोदी ने लगातार दो वर्षो के सूखे और जबरदस्त वैश्विक मंदी के बावजूद पिछले वित्त वर्ष के दौरान साढ़े सात फीसद की विकास दर हासिल करने को लेकर देश के हर नागरिक को बधाई का पात्र बताया। उन्होंने कहा कि दुनिया के प्रमुख देशों में भारत आज सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाला देश बन गया है। दरअसल, मोदी से यह सवाल पूछा गया था कि तेज आर्थिक विकास दर से देश को क्या हासिल होगा? इसके जबाव में ही उन्होंने देश की आर्थिक विकास दर को तेज करने की जरूरत बताई। मोदी ने कहा कि अगर तीस साल तक 8 फीसद से यादा का ग्रोथ रेट हासिल किया जाता है तो इससे दुनिया में जो भी अछी चीजें हैं, उसे भारतीयों के कदमों में रखा जा सकता है।
मारुति, मेट्रो के उदाहरण दिए : मोदी ने साफ किया कि इस ग्रोथ रेट को हासिल करने के लिए हर भारतीय को अपनी भूमिका निभानी होगी। मसलन, मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। इस क्रम में उन्होंने मारुति का जिक्र किया कि किस तरह से भारत में बनीं मारुति सुजुकी की कारें जापान की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रही हैं। भारत में बने मेट्रो टेन के डिब्बे आस्ट्रेलिया को निर्यात किए जा रहे हैं। उन्होंने रक्षा उपकरणों के निर्माण में घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर खास जोर दिया और कहा कि अभी काफी राशि के रक्षा उपकरणों का आयात करना पड़ता है। घरेलू उत्पादन बढ़ने से आयात कम होगा जिससे अर्थव्यवस्था को फायदा होगा।
नए एजेंडे का संकेत : पीएम मोदी की तरफ से पहली बार लंबी अवधि के विकास दर के लक्ष्यों की बात कही गई है। माना जा रहा है कि आर्थिक विकास दर बढ़ाने का जो नया एजेंडा तैयार हो रहा है, उसमें आठ फीसद का ही लक्ष्य रखा जाएगा। सनद रहे कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी वर्ष 2030 तक लगातार दस फीसद की विकास दर हासिल करने की बात कही थी। इससे देश में गरीबी को दूर किया जा सकता था। हाल के दिनों में केंद्र सरकार ने जिस तरह से आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया है, उससे आर्थिक विकास दर में एक से दो फीसद तक का इजाफा होने की बात की जा रही है।
2. ग्रोथ रेट का नया ‘चैंपियन’ झारखंड:- साल भर पहले ईज ऑफ डूइंग बिजनेस कार्ययोजना लागू करने की रैंकिंग में तीसरे नंबर पर आकर सबको चौंकाने वाले झारखंड ने तरक्की के मामले में लंबी छलांग लगाई है। वित्त वर्ष 2015-16 में 12.14 फीसद विकास दर के साथ झारखंड ने ग्रोथ रेट का नया ‘चैंपियन’ बनकर उभरने का संकेत दिया है। विकास दर के मामले में झारखंड न सिर्फ अपने पड़ोसी बीमारू प्रदेशों बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को पछाड़ा है बल्कि कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे संपन्न राज्यों को भी पीछे छोड़ा है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने नए आधार वर्ष 2011-12 पर राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के आंकड़े संकलित किए हैं। राज्यों की विकास दर के ये आंकड़े संबंधित राज्य सरकारों ने ही सीएसओ के पास भेजे हैं। इन आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2015-16 में झारखंड की विकास दर 12.14 प्रतिशत रही है जबकि परंपरागत तौर पर बेहतर माने जाने वाले राज्यों तमिलनाडु की विकास दर 8.79 प्रतिशत और कर्नाटक की 6.45 प्रतिशत रही। गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और पूवरेत्तर सहित कई राज्यों ने वित्त वर्ष 2015-16 के आंकड़े अब तक उपलब्ध नहीं कराये है। हालांकि जिन राज्यों के आंकड़े उपलब्ध हैं उनमें झारखंड की विकास दर सर्वाधिक है। वहीं झारखंड के साथ ही बने उत्तराखंड की विकास दर 8.79 प्रतिशत रही है जबकि छत्तीसगढ़ के ताजे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। वैसे वित्त वर्ष 2014-15 में झारखंड की विकास दर 12.47 प्रतिशत रही थी और इस मामले में यह देशभर में बिहार के बाद दूसरे नंबर पर था।
बिहार की विकास दर घटी : ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में सर्वाधिक विकास दर हासिल करने वाले बिहार की विकास दर बारहवीं पंचवर्षीय योजना में आकर डगमगाने लगी है। हाल यह है कि वित्त वर्ष 2015-16 में बिहार की विकास दर तेजी से नीचे आते हुए मात्र 7.14 प्रतिशत रह गयी है जबकि वित्त वर्ष 2014-15 में यह 13.02 प्रतिशत थी। वैसे बारहवीं पंचवर्षीय योजना के शुरुआती दो वर्षो में तो बिहार की विकास दर पांच वर्ष के स्तर को भी पार नहीं कर पायी थी।
पिछड़ रहा उत्तर प्रदेश : आबादी के लिहाज से देश में सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश विकास दर के मामले में पिछड़ रहा है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के पहले चार वर्षो में उत्तर प्रदेश एक बार भी राष्ट्रीय जीडीपी वृद्धि के बराबर विकास दर हासिल नहीं कर पाया है। बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे बीमारू राज्यों ने हाल में जहां दहाई के अंक में विकास दर हासिल की है वहीं इस मामले में उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन बेहद सुस्त रहा है। हाल यह है कि वित्त वर्ष 2015-16 में देश की विकास दर 7.56 प्रतिशत थी वहीं उत्तर प्रदेश की विकास दर मात्र 7.13 प्रतिशत रही। इस तरह वित्त वर्ष 2012-13 से लेकर 2015-16 के दौरान चार वर्षो में एक भी वर्ष में उत्तर प्रदेश की विकास दर देश के बराबर नहीं रही है।
3. बेहतर रेटिंग के लिए भारत का दावा:- बहुप्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और महंगाई दर का लक्ष्य तय करने जैसे अहम सुधार लागू करने के बाद सरकार ने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से देश की रेटिंग में सुधार का दावा ठोंका है। सरकार का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों को बीते एक सप्ताह में देश में हुए महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों को मान देकर रेटिंग में सुधार करना चाहिए। केंद्र का यह दावा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि लंबे समय से अटके जीएसटी के लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक रायसभा से पारित होने को अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों फिच और मूडीज ने सकारात्मक करार दिया है। ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों पर भारत की रेटिंग सुधारने का दवाब बढ़ जाएगा। वित्त मंत्रलय के आर्थिक कार्य विभाग के सचिव शक्तिकांत दास ने शनिवार को ट्वीट कर कहा कि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों को भारत में लागू किए गए सुधारों को उसी प्रकार मान देना चाहिए, जिस प्रकार वे विकसित देशों के संबंध में करती हैं। दास ने कहा कि यह पूरा सप्ताह बड़े सुधारों से भरा रहा है। पहले जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक संसद से पारित हुआ, उसके बाद सरकार ने महंगाई दर का लक्ष्य तय करते हुए मौद्रिक नीति से संबंधित सुधारों के नए दौर में प्रवेश किया। उन्होंने कहा कि भारत सुधारों की राह पर बढ़ रहा है और आने वाले समय में और भी कदम उठाए जाएंगे। दास ने कहा कि सरकार सुधारों के लिए प्रतिबद्ध है और मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क निवेश और विकास दर का सही माहौल बनाने की दिशा में कदम है। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजंेसी मूडीज ने फिलहाल भारत को सकारात्मक परिदृश्य के साथ बीएए3 रेटिंग दी है। मूडीज ने जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक सकारात्मक करार दिया है। मूडीज का कहना है कि मध्यावधि में विकास दर और राजस्व पर जीएसटी का सकारात्मक असर पड़ेगा, इससे सोवरिन क्रेडिट प्रोफाइल को मदद मिलेगी। साथ ही इससे वस्तुओं और सेवाओं के निर्वाध हस्तांतरण में बाधा भी दूर होगी और सरकार तथा कॉरपोरेट के लिए टैक्स पर व्यय भी कम होगा। साथ ही इससे कर नियमों का पालन बेहतर होने से राजस्व में भी वृद्धि होगी। इसी तरह फिच ने भी जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक पारित होने को सकारात्मक कदम करार दिया है। फिच ने पिछले महीने भारत को स्थिर परिदृश्य के साथ बीबीबी रेटिंग दी थी।
4. राज्यों के राजस्व आधार का आकलन बड़ी चुनौती:- पूरे देश को एक तरह की कर प्रणाली के सूत्र में बांधने वाले जीएसटी ने भले ही संवैधानिक बाधा पार कर ली हो, लेकिन इसे धरातल पर उतारने की राह में अभी कई चुनौतियां हैं। ऐसी ही एक बड़ी चुनौती केंद्र और राज्यों के राजस्व आधार का आकलन है। जब तक केंद्र और राज्यों के राजस्व का आकलन नहीं हो जाता, तब तक वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अमल में लाने की दिशा में ठोस कदम उठाना मुश्किल होगा। यही वजह है कि वित्त मंत्रलय राज्यों के साथ मिलकर राजस्व आधार का आकलन करने के लिए तत्परता से कदम उठाने की तैयारी कर रहा है। माना जा रहा है कि जल्द ही राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति और केंद्र के अधिकारी इस दिशा में कोई ठोस पहल करेंगे। राजस्व सचिव हसमुख अढिया भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि जीएसटी को लागू करने की राह में सात चुनौतियां हैं। इनमें से एक केंद्र व राज्यों के राजस्व आधार का आकलन करना है। केंद्र और रायों के राजस्व आधार का आकलन होने पर ही तय होगा कि राज्यों को जीएसटी लागू होने पर राजस्व की क्षतिपूर्ति कितनी की जानी है। सरकार ने एक अप्रैल, 2017 से जीएसटी लागू करने का लक्ष्य रखा है। इसके लागू होने पर केंद्र सरकार के उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, अतिरिक्त सीमा शुल्क, विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क और राज्यों के वैट, मनोरंजन कर, केंद्रीय बिक्री कर, चुंगी और प्रवेश कर, क्रय कर, विलासिता कर और लॉटरी तथा सट्टेबाजी पर टैक्स जैसे कई प्रकार के परोक्ष कर समाप्त हो जाएंगे। एक अनुमान के अनुसार केंद्र और राज्यों को फिलहाल इन करों से वर्ष 2013-14 में लगभग सात लाख करोड़ रुपये राजस्व प्राप्त हुआ है। जीएसटी लागू होने पर यह राशि उपलब्ध नहीं होगी। इसलिए यह जरूरी है कि जीएसटी की दर इतनी रखी जाए, जिससे इस राशि से अधिक राजस्व प्राप्त होता रहे। रायों को अगर अधिक राजस्व हानि होती है तो केंद्र को उन्हें क्षतिपूर्ति देनी होगी। राज्य सभा से पारित जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक में क्षतिपूर्ति के भुगतान की जिम्मेदारी बाकायदा केंद्र पर डाली गई है। केंद्र को पांच वर्षो तक राज्यों को भुगतान करना होगा। इसके अलावा जीएसटी की प्रस्तावित दरें भी इस बात पर निर्भर करेंगी कि केंद्र को राज्यों को कितनी क्षतिपूर्ति करनी है। सूत्रों ने कहा कि इसलिए यह जरूरी है कि पहले केंद्र और राज्यों के राजस्व आधार का आकलन किया जाए। इसलिए केंद्र और राज्य को किस कर से कितनी राशि प्राप्त हो रही है, इसका विस्तृत अध्ययन किया जाएगा।

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