1. जीएसटी पर बनी बात, कल होगा पेश:- मानसून सत्र में जारी सियासी गर्मी के बीच सरकार ने बहुचर्चित वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) विधेयक बुधवार को रायसभा में पेश करने का एलान कर दिया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों से सकारात्मक संकेत मिलने के बाद ही सरकार ने इसे सदन में लाने का फैसला किया है। जीएसटी पर दिख रही इसी राजनीतिक आम सहमति के मद्देनजर बुधवार को देश के कर ढांचे में क्रांतिकारी बदलाव वाले इस बिल के पारित होने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं। इसी उम्मीद पर सरकार ने मंगलवार की जगह बुधवार को बिल लाने का कांग्रेस के आग्रह मान लिया है। सरकार ने कांग्रेस और कुछ राज्यों की मांग के मद्देनजर जीएसटी बिल में जरूरी संशोधन को पिछले हफ्ते ही मंजूरी दे दी थी। हालांकि, कांग्रेस के साथ उसकी अंदरूनी चर्चाओं का दौर निरंतर जारी था। इसी का नतीजा है कि सोमवार को आनंद शर्मा ने सहमति बनने की बात कही तो कांग्रेस प्रवक्ता पीएल पुनिया ने कहा कि जीएसटी तो उनकी पार्टी की बुनियादी सोच है। इसलिए कांग्रेस बिल पारित कराने के पक्ष में है और हम इसके लिए शुभकमानाएं देते हैं। जीएसटी पर कांग्रेस का समर्थन इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संविधान संशोधन बिल है जिसे सदन में दो तिहाई बहुमत से पास होना जरूरी है। राज्य सभा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है और बिल के कुछ प्रावधानों को लेकर उसकी आपत्तियों की वजह से लोकसभा से पारित होने के बाद भी जीएसटी अभी तक अटका रहा है। लोकसभा में राजग ने अपने संख्या बल के बूते पिछले साल ही इसे आसानी से पारित करा लिया था। अब अगर राज्य सभा में संशोधित बिल बुधवार को पारित होता है तो नए बदले प्रावधानों को लोकसभा से फिर मंजूरी दिलाने की औपचारिकता भी पूरी करनी होगी। संविधान संशोधन बिल होने के कारण संसद से पारित होने के बाद जीएसटी को कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से भी पारित कराना होगा। सरकार ने जीएसटी के नए कर ढांचे को एक अप्रैल 2017 से लागू करने की तिथि तय कर रखी है।
2. जीएसटी से जुड़े विधेयक में चार बड़े फेरबदल:- वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी लागू करने के लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक में सरकार चार बड़े बदलाव करेगी। तमाम राजनीतिक दलों और राज्यों के साथ विचार-विमर्श के बाद सरकार ने यह तय किया है। जीएसटी पर संविधान संशोधन विधेयक पर बुधवार को राज्य सभा में चर्चा होगी। राज्य सभा में अगर सब कुछ ठीक रहा तो इस हफ्ते संसद से जीएसटी लागू करने के लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक पर मुहर लग सकती है। जो चार बदलाव इस विधेयक में किए गए हैं उनमें एक फीसद अतिरिक्त कर का प्रस्ताव वापस लेना सबसे अहम है। मूल विधेयक में मैन्यूफैक्चरिंग राज्यों को फायदा पहुंचाने के मकसद से तीन वषों तक राज्यों के बीच होने वाले व्यापार पर एक फीसदी की दर से अतिरिक्त टैक्स लगाने का प्रस्ताव था। इसके अतिरिक्त जीएसटी लागू होने के बाद किसी तरह के नुकसान की सूरत में पांच साल तक सौ फीसद मुआवजा देने का प्रावधान भी शामिल किया गया है। मूल विधेयक में पहले तीन साल तक सौ फीसद, चौथे साल में 75 फीसद और पांचवें साल में 50 फीसद भरपाई का प्रस्ताव था। तीसरा बदलाव विवाद सुलझाने की नयी व्यवस्था बनाने संबंधी है। इसमें राज्यों की आवाज बुलंद होगी। पहले विवाद सुलझाने की व्यवस्था मतदान पर आधारित थी जिसमें दो तिहाई मत राज्यों और एक तिहाई केद्र के पास था। विधेयक में एक नए प्रस्ताव के जरिये जीएसटी दर का ऐसा मूल सिद्धांत लाया जाएगा जो राज्यों के साथ-साथ आम लोगों को नुकसान नहीं होने का भरोसा देगा। संसद के दोनों सदनों से संविधान संशोधन विधेयक के मंजूरी मिलने के बाद उस पर कम से कम 15 राज्यों के विधानसभाओं की मंजूरी चाहिए होगी। उसके बाद ही राष्ट्रपति बिल पर हस्ताक्षर करेंगे, जिससे ये कानून बन सकेगा। इसके बाद केंद्र सरकार को सेंट्रल जीएसटी और राय सरकारों को स्टेट जीएसटी से जुड़ा कानून बनाना होगा। साथ ही केंद्र सरकार को इंटिग्रेटेड जीएसटी के लिए अलग से कानून बनाना होगा। ये सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही जीएसटी के नियम जारी होंगे। इस पर काम पहले से ही चालू है। केंद्र सरकार की योजना अगले साल पहली अप्रैल से जीएसटी लागू करने की है।
3. आदर्श ग्राम योजना से विमुख हुए सांसद:- गांवों को आत्मनिर्भर और आदर्श बनाने का लक्ष्य अभी बहुत दूर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदर्श ग्राम योजना दूसरे ही साल सांसदों की उदासीनता और उपेक्षा का शिकार हो गई है। नीतिगत खामियां और योजनाओं में परस्पर समन्वय का अभाव इन गांवों के विकास की राह का रोड़ा बन गया है। इसके लिए अलग से राशि का आवंटन न होना भी एक बड़ी बाधा है। शायद यही कारण है कि योजना के पहले चरण में उत्साह से गांवों का चयन करने वाले सांसदों ने दूसरे चरण में हाथ खींच लिए हैं। दोनों सदनों के करीब आठ सौ सांसदों में से महज दस फीसद ने ही नए गावों का चयन किया है।स्मार्ट सिटी मिशन में जहां अलग से धन का प्रबंध है, वहीं आदर्श ग्राम योजना में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। इसी प्रकार स्मार्ट सिटी विकसित करने के लिए अलग-अलग कंपनियां (एसपीवी) बनाई गई हैं। इन कंपनियों पर योजनाओं को लागू करने और उसके नतीजे हासिल करने की जिम्मेदारी भी डाली गई है। इसके उलट, आदर्श गांव योजना में किसी की ऐसी कोई सीधी जिम्मेदारी तय नहीं है। सब कुछ सांसदों के निजी प्रयास और सक्रियता के भरोसे छोड़ दिया गया है। इतना जरूर है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कानूनी अड़चनों से निजात दिलाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) में संशोधन किया है, ताकि आदर्श गांव को मुख्य सड़क से जोड़ा जा सके। इसी प्रकार स्वछता व पेयजल आपूर्ति मंत्रालय ने भी नियमों में कुछ बदलाव किए हैं। हालांकि योजना परवान चढ़ने के लिए ये प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। योजना के प्रारूप में प्रत्येक आदर्श गांव में डाकघर खोलने को प्राथमिकता दी गई है। साथ ही इन गांवों को डिजीटली जोड़ने के लिए भी जरूरी इंतजाम करने की बात है। सूत्रों की मानें तो शायद ही किसी आदर्श गांव में पिछले एक साल के भीतर कोई डाकघर खोला गया है। गांवों में आर्थिक और सामाजिक विकास के साथ रोजगार सृजन के लिए इन्हें आप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ने की कवायद भी धीमी है। इसी प्रकार बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने वाली योजनाएं भी कानूनी अड़ंगों के चलते अधर में। आदर्श ग्राम योजना में केंद्रीय व राज्य स्तरीय योजनाओं के बीच समायोजन (कन्वरजेंस) एक बड़ी चुनौती है। जबकि आदर्श गांवों का विकास इन योजनाओं के समायोजन पर ही निर्भर है। केंद्र की कुल 223 और राज्यों की 80 से लेकर 110 योजनाएं हैं। इनके बीच तालमेल बनाकर इन्हें जमीनी स्तर पर लागू करना संभव नहीं हो पा रहा है। पंचायत और अन्य एजेंसियों के बीच भी तालमेल कायम नहीं हो पाने से आदर्श ग्राम का सपना अभी दूर की कौड़ी ही दिखाई देता है। यही कारण है कि भाजपा शासित राज्यों में भी अब तक यह आदर्श ग्राम योजना परवान नहीं चढ़ पाई है।
4. एनपीए के खिलाफ बैंकों को मिलेगा अमोघ अस्त्र:- फंसे कर्जे यानी एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) की समस्या से निजात पाने के लिए सरकारी क्षेत्र के बैंकों को अमोघ अस्त्र मिलेगा। यह अस्त्र इन बैंकों को नए कानून के तौर पर मिला है जिसे आज लोकसभा में मंजूरी मिली है। अब इसे राज्य सभा में मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा। इस कानून का नाम द इंफरेसमेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एंड रिकवरी ऑफ डेट्स लॉज एंड मिसलेनियस प्रोवीजंस (संशोधन) विधेयक, 2016 है। इस कानून की खासियत यह है कि इसके जरिये एक साथ कर्ज वापसी के चार मौजूदा कानूनों ऋण वसूली प्राधिकरण कानून, सरफेसी कानून, इंडियन स्टांप एक्ट और डिपॉजिटरीज एक्ट में संशोधन हो जाएगा। कानून को पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर्ज नहीं लौटाने वाले को सीधे तौर पर चेतावनी दी कि हम ऐसी व्यवस्था बर्दाश्त नहीं कर सकते है जहां बैंकों से लोग कर्ज लें और उसे वापस नहीं करें। सनद रहे कि सरकारी बैंकों के एनपीए का मुद्दा लगातार काफी गर्म रहा है। उद्योगपति विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर पर बकाये कर्ज की राशि और बाद में उनके देश से बाहर भाग जाने की वजह से इसका राजनीतिकरण भी खूब हुआ। ताजे आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ सरकारी बैंकों के चार लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि एनपीए के तौर पर फंसी हुई है। आरबीआइ की रिपोर्ट बताती है कि आठ लाख करोड़ रुपये की रकम आने वाले दिनों में फंस सकती है। इस वजह से ही एक-दो को छोड़कर अधिकांश सरकारी बैंकों को पिछले वित्त वर्ष के दौरान काफी घाटा हुआ है। ऐसे में यह कानून सरकारी बैंको को कर्ज वसूलने के लिए ज्यादा अधिकार देगा। कर्ज नहीं लौटाने वाले लोगों या कंपनियों के खिलाफ अब जल्दी और ज्यादा सख्त कदम उठाये जा सकते हैं। जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले कंपनियों पर कब्जा करना अब आसान होगा। इन जब्त संपत्तियों को बेचना भी बैंकों के लिए आसान होगा। सनद रहे कि विजय माल्या की परिसंपत्तियों को बेचने में अभी तमाम तरह की अड़चनें आ रही हैं। नए कानून से बैंकों को सबसे बड़ी राहत यह मिलेगी कि अगर किसी व्यक्ति, वर्ग या कंपनी का कर्ज माफ किया जाता है तो उसका प्रावधान केंद्र या राज्य के बजट में करना होगा। जेटली के मुताबिक अगर कर्ज माफ होता है तो उसका प्रावधान कहीं न कहीं करना होगा। हम ऐसा नहीं कर सकते कि कर्ज लेकर कोई उसे बैंकों को वापस नहीं करे और कर्ज वसूलने की पूरी जिम्मेदारी बैंकों पर डाल दी जाए। कृषि कर्ज को इस नियम से बाहर रखा गया है। साथ शिक्षा कर्ज के बारे में भी जेटली ने कहा कि अगर किसी छात्र को पढ़ाई के बाद भी नौकरी नहीं मिली है तो उस स्थिति में कुछ नरमी के प्रावधान किये गये हैं। लेकिन यहां भी कर्ज की राशि को पूरी तरह से माफ नहीं किया जा सकता।
5. भारत कर रहा एआईपीयुक्त पनडुब्बियों का निर्माण:- नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा कि भारत खुद एआईपी से युक्त पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है। यह बात उन्होंने सोमवार को नौसेना प्रमुख का पदभार ग्रहण करने के बाद पहली बार मीडिया से बातचीत में कही। हम डीआरडीओ के साथ मिलकर खुद की एआईपी (एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन) देशज पण्राली बना रहे हैं। वर्तमान में, परियोजना की परिभाषा गढ़ी जा रही है। प्रोटोटाइप आधारित संयंत्र का निर्माण किया जा रहा है और एक बार इसके तैयार हो जाने पर इसे कलवारी-क्लास पनडुब्बियों में लगाया जाएगा। यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तान द्वारा चीन से प्राप्त एआईपी प्रणाली युक्त पनडुब्बियों से क्या भारत को खतरा है, उन्होंने कहा, इन पनडुब्बियों के पास क्षमताएं हैं। लेकिन हमारे पास अपनी पण्राली है जिसकी हम देखरेख कर सकते हैं।नौसेना प्रमुख ने कहा कि नौसेना ‘‘मेक इन इंडिया’ पहल की तर्ज पर देश में ही पोतों का निर्माण करने को लेकर प्रतिबद्ध है और वर्तमान में 46 पोतों और पनडुब्बियों का देश में निर्माण किया जा रहा है। नौसेना शुरू से ही देशीकरण पर ध्यान देती रही है। हम दशकों से भारत में पोतों का निर्माण करते रहे हैं और आज की तिथि तक 200 नौसेना पोतों का भारत में निर्माण किया गया है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे हथियारों और सेंसर्स का निर्माण भारत में हो, हम डीआरडीओ और अन्य निजी क्षेत्र के उद्योगों के साथ काम कर रहे हैं। हम भारत में निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र पर अंतरराष्ट्रीय अधिकरण के फैसले को चीन द्वारा खारिज किए जाने पर भारत के रुख की र्चचा करते हुए लांबा ने कहा कि कानून का पालन किया जाना चाहिए।
6. भारत-भारती पुरस्कार:- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने वर्ष 2015 के पुरस्कारों की सूची सोमवार को जारी कर दी। इस बार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी (दिल्ली) को पांच लाख राशि वाले संस्थान के सवरेच पुरस्कार से नवाजने का फैसला किया है, जबकि चार लाख पुरस्कार राशि की श्रेणी में असगर वजाहत (दिल्ली) को लोहिया साहित्य सम्मान दिया जाएगा। संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह की अध्यक्षता में हुई पुरस्कार समिति की बैठक में इस पर अंतिम मुहर लगा दी गई है। बैठक में सर्वसम्मति से गुड़गांव के डॉ. शेरजंग गर्ग को हिन्दी गौरव सम्मान (चार लाख) से नवाजा जाएगा। इसी तरह नई दिल्ली के गंगा प्रसाद विमल को महात्मा गांधी साहित्य सम्मान (चार लाख), दिल्ली के डॉ. रमानाथ त्रिपाठी को पंडित दीनदयाल उपाध्याय साहित्य सम्मान (चार लाख), मैनपुरी के डॉ. दीन मुहम्मद दीन को अवंतीबाई साहित्य सम्मान (चार लाख) से सम्मानित किया जाएगा, जबकि, हिंदी प्रचार सभा हैदराबाद को राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन सम्मान (चार लाख) देने का निर्णय किया गया है।
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