पिछली 20-25सालों में एशिया के कौन-से देश ने ज्यादा तरक्की की, किस देश के लाखों लोग गरीबी रेखा से बाहर आए? ज्यादातर लोग इन सवालों का जवाब चीन और भारत को मानते होंगे। लेकिन इसके उत्तरों में एक ऐसे देश का नाम भी है, जिसने केवल अच्छी तरक्की हासिल की, बल्कि अब वह उज्जवलभविष्य के सपने संजो रहा है। यह वियतनाम है, 9 करोड़ की आबादी वाला देश। 1990 के बाद उसकी प्रति व्यक्ति ग्रोथ रेट विश्व में चीन के बाद दूसरे नंबर पर रही है। अगर यह अगले दशक में 7 फीसदी की ग्रोथ रेट बनाए रखता है, तो यह अर्थव्यवस्था के 'एशियन टाइगर' कहलाने वाले दक्षिण कोरिया और ताइवान के रास्ते पर चल पड़ेगा। फैक्ट्रियों के आधुनिकीकरण से इसे उन परिस्थितियों से उबरने में मदद मिली, जहां कभी विनिर्माण क्षेत्र मानव श्रम पर निर्भर था। वियतनाम ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के खुलेपन का भी लाभ उठाया। यह देश खुशनसीब है कि वह चीन के प्रवेश द्वार पर स्थित है, जहां कंपनियां कम लागत के विकल्प तलाशती हैं। विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए उसने कारोबार नियम आसान किए। इससे विदेशी कंपनियों को कम लागत पर निर्माण ईकाईयां स्थापित करने में सुविधा हुई। ऐसी राहत मिलने के चलते वियतनाम में विदेशी कंपनियों की भरमार हो गई और निर्यात दो-तिहाई बढ़ गया। वहां की सरकार ने सभी 63 राज्यों को प्रतिस्पर्धा के लिए आगे कर दिया। इससे हो ची मिह्न सिटी ने इंडस्ट्रीयल पार्क में बाजी मारी, तो दानांग ने हाई-टेक सिटी का दर्जा हासिल किया। इसी तरह उत्तरी राज्यों ने मैन्यूफैक्चरिंग में समृद्धि हासिल की। इस तरह की विविध अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप पूरे देश में समृद्धि आई और 2011 से ही देश के प्रॉपर्टी मार्केट में उछाल गया। यह भी संयोग है कि यह देश शिक्षा के क्षेत्र में भी उतना ही ध्यान दे रहा है। 15 वर्षीय वियतनामी किशोर अपने जर्मन समकक्ष के बराबर ही गणित और विज्ञान जानता है। वियतनाम स्कूलों पर भी दूसरे समकक्षों के बराबर राशि खर्च करता है। उसका पूरा ध्यान बेसिक्स पर है, यानी ज्यादा से ज्यादा बच्चों का स्कूलों में प्रवेश और अध्यापकों को समय-समय पर प्रशिक्षण।
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