Thursday, 11 August 2016

14 july 2016..1.मोदी सरकार को सुप्रीम झटका : शीर्ष अदालत ने अरुणाचल में कांग्रेस सरकार बहाली का आदेश दिया:-

उच्चतम न्यायालय ने भाजपा एवं केंद्र की मोदी सरकार को बुधवार को बड़ा झटका देते हुए अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बहाल करने का आदेश दिया। न्यायालय ने जनवरी में न्यायालय ने जनवरी में अरुणाचल प्रदेश की तत्कालीन नबाम तुकी सरकार के गिरने के लिए जिम्मेदार राज्यपाल के सभी फैसलों को रद्द कर दिया और कहा कि ये फैसले संविधान का ‘‘उल्लंघन’ करने वाले थे। इससे पहले उत्तराखंड के मामले में भी केंद्र सरकार को नीचा देखना पड़ा था जब अदालत ने हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बहाल कर दिया था।न्यायालय के आदेश ने नाबाम तुकी की बर्खास्त कांग्रेस सरकार की सत्ता में वापसी का रास्ता साफ कर दिया है और विधानसभा के छठे सत्र की कार्यवाही को 14 जनवरी 2016 से एक महीने पूर्व 16 से 18 दिसम्बर 2015 को बुलाए जाने से संबंधित राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के निर्देश को दरकिनार कर दिया। न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से लिए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में आदेश दिया कि अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में 15 दिसम्बर, 2015 की यथास्थिति कायम रखी जाए। न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल के नौ दिसम्बर, 2015 के आदेश की अनुपालना में अरुणाचल प्रदेश विधानसभा द्वारा उठाए गए सभी कदम एवं फैसले बरकरार रखने योग्य नहीं है। न्यायमूर्ति खेहर के अलावा न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति एनवी रमन इस पीठ में शामिल हैं।
न्यायमूर्ति खेहर ने विस्तृत मुख्य फैसला सुनाया और क्रि यात्मक हिस्सा पढ़ते हुए कहा कि विधानसभा का सत्र 14 जनवरी 2016 से एक महीने पूर्व 16 दिसम्बर 2015 को बुलाने संबंधी राज्यपाल का नौ दिसम्बर, 2015 का निर्देश संविधान के अनुच्छेद 163 (अनुच्छेद 174 के साथ पढ़ा जाए) का उल्लंघन है और यह खारिज किए जाने लायक है तथा इसे खारिज किया जाता है।पीठ ने कहा, ‘‘दूसरी बात यह है कि 16 से 18 दिसम्बर, 2015 को होने वाले अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के छठे सत्र की कार्यवाही के तरीके के बारे में निर्देश देना वाला राज्यपाल का संदेश संविधान के अनुच्छेद 163 (अनुच्छेद 175 के साथ पढ़ा जाए) का उल्लंघन है और इस तरह यह खारिज करने लायक है और इसे खारिज किया जाता है।’ तीसरी बात यह है कि ‘‘राज्यपाल के नौ दिसम्बर, 2015 के आदेश की अनुपालना में अरुणाचल प्रदेश विधानसभा द्वारा उठाए गए सभी कदम एवं निर्णय बरकरार रखने योग्य नहीं हैं और दरकिनार किए जाने लायक हैं और इसलिए इन्हें दरकिनार किया जाता है।’ ‘‘पहले निर्णय से लेकर तीसरे निर्णय के मद्देनजर 15 दिसम्बर 2015 की यथास्थिति बहाल करने का आदेश दिया जाता है।’ न्यायमूर्ति मिश्रा एवं न्यायमूर्ति लोकुर ने एक अलग एवं समवर्ती निर्णय पढ़ते हुए कहा कि वे न्यायमूर्ति खेहर के विचार से असहमत नहीं हैं और उन्होंने राज्यपाल एवं विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय संबंधी कुछ और टिप्पणियां जोड़ीं। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि राज्यपाल का व्यवहार केवल निष्पक्ष ही नहीं होना चाहिए बल्कि यह स्पष्ट रूप से निष्पक्ष प्रतीत भी होना चाहिए।
विधानसभा की स्थिति
• दिसंबर, 2015 में बगावत से पहले
• 2014 में 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं।
• भाजपा को 11, पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (पीपीपी) को पांच और निर्दलीयों को दो सीटें मिलीं।
• पीपीए के पांचों विधायक बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इससे कांग्रेस के पास कुल 47 विधायक हो गए थे।
बगावत के बाद बदली संख्या
• दिसंबर 2015 में कांग्रेस विधायकों की बगावत के बाद कांग्रेस के दो विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
• ऐसे में 58 सदस्यीय विधानसभा में मुख्यमंत्री तुकी के पास 26 विधायकों का ही समर्थन रह गया।
• सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सत्ता से बेदखल हुए कोलिखो पुल के साथ कांग्रेस के 19 बागी, भाजपा के 11 व दो निर्दलीय हैं।

No comments:

Post a Comment