परिवहन विशेषज्ञों का कहना है कि मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2016 में सारा फोकस जुर्माना बढ़ाने पर है। जबकि कार्यान्वयन को लेकर स्थिति अस्पष्ट है। जब तक कार्यान्वयन सुनिश्चित नहीं होता है और जानबूझकर लापरवाही वाले यातायात उल्लंघनों से होने वाली मौतों के मामले में मोटर एक्ट के अलावा आइपीसी के प्रावधान भी लागू करने की व्यवस्था नहीं होती, तब तक सड़क हादसों पर अंकुश लगना मुश्किल है। परिवहन विशेषज्ञों को खासकर दो बातों पर विशेष आपत्ति है। पहली, विधेयक में ई-गवर्नेस की बात तो कही गई है, लेकिन कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। कहने को तो वाहन और सारथी पोर्टल चालू हो गए हैं। लेकिन अभी तक पूरे देश में इनका इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ है। जहां हुआ भी है वहां अनेक खामियां हैं। परिणामस्वरूप अधिकांश आरटीओ में आरसी व डीएल बनाने में दलालों का धंधा बदस्तूर जारी है। इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग के संयोजक एसपी सिंह के मुताबिक, महज कानून बदलने से हालात सुधरने वाले नहीं हैं। मोटर एक्ट में पहले भी कई बार संशोधन हो चुके हैं। इसके बावजूद हादसे घटने की जगह बढ़ गए हैं। ओवरलोडिंग के खिलाफ पहले से काफी सख्त नियम बने हुए हैं। यदि इनका पालन होता तो ओवरलोडिंग की समस्या खत्म हो गई होती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। अभी भी केवल टोल वसूल कर ट्रकों को छोड़ दिया जाता है। नियमानुसार ओवरलोडेड ट्रकों का सारा अतिरिक्त माल ट्रांसपोर्टर के ही खर्चे और जोखिम पर टोल प्लाजा पर ही उतार लिया जाना चाहिए। इसलिए जब तक ओवरलोडेड और ओवरसाइज ट्रक चलाने वालों के ड्राइविंग लाइसेंस और उन्हें चलवाने वाले बिचौलियों के परमिट रद नहीं किए जाते, तब तक हादसों को न्यौता देने वाली इस बुराई का अंत संभव नहीं है। इसके लिए यातायात अनुपालन व्यवस्था को मानवीय हस्तक्षेप की संभावनाओं को खत्म या न्यूनतम करना पड़ेगा। यह सभी टोल प्लाजाओं पर इलेक्ट्रानिक टोलिंग लागू करने व सभी वाहनों पर फास्टैग लगवाने के अलावा आरसी व डीएल जारी करने की ऑनलाइन व्यवस्था को दुरुस्त कर तथा देश की सभी प्रमुख सड़कों पर चौराहों/नाकों पर इंटीग्रेटेड सीसीटीवी लगाकर ही संभव हो सकता है। दूसरा अहम मुद्दा वाहन चालकों की नीयत और वाहन चलाने में की जाने वाली लापरवाही का है। यदि कोई व्यक्ति शराब पीकर अथवा मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाता है या ओवरलोडेड या ओवरसाइज वाहन लेकर सड़क पर उतरता है तो इसका साफ मतलब है कि वह जानबूझकर दुर्घटना की स्थितियां पैदा कर रहा है। ऐसी स्थितियां जिनसे किसी की जान भी जा सकती है। ऐसे में उस व्यक्ति पर केवल जुर्माना लगाना या लाइसेंस निलंबित करना पर्याप्त नहीं है। उस पर तो आपराधिक दंड संहिता के प्रावधान भी लागू होने चाहिए। क्योंकि केवल मोटर एक्ट का दंड लोगों में कानून का भय पैदा करने में नाकाम साबित हुआ है।
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