Sunday, 21 August 2016

दैनिक समसामयिकी 08 August 2016(Monday)

1. सुप्रीम कोर्ट का जाट आरक्षण रद करने का फैसला पूर्व प्रभाव से लागू:- केंद्रीय नौकरियों में जाटों को आरक्षण पर केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कैट ने कहा है कि जाट आरक्षण रद करने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूर्व प्रभाव से लागू माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय नौकरियों में जाटों को आरक्षण देने वाली अधिसूचना शुरुआत से ही यानी जारी होने की तिथि से रद घोषित की है। ऐसे में जिन्हें अधिसूचना जारी होने के बाद नियुक्ति के लिए पेशकश पत्र (ऑफर लैटर) मिला था वह भी खत्म और शून्य माना जाएगा। इस व्याख्या के साथ कैट ने एम्स कर्मी दीपक तुशीर की नौकरी बहाली की गुहार लगाने वाली याचिका खारिज कर दी। इस मामले में खास बात ये थी कि तुशीर को दिल्ली एम्स में ओबीसी कोटे में फार्मेसिस्ट ग्रेड टू पद का ऑफर लैटर 31 मार्च, 2014 को जारी हुआ था। इससे पहले 4 मार्च, 2014 को केंद्र सरकार ने नौ रायों के जाटों को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल करने की अधिसूचना जारी की थी। यानी कि जिस समय तुशीर को ऑफर लैटर जारी हुआ जाट आरक्षण की अधिसूचना लागू थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च, 2015 को जाट आरक्षण रद कर दिया था। जाट कोटे से नौकरी मांग रहा तुशीर तय समय में क्रीमी लेयर न होने का ओबीसी प्रमाणपत्र नहीं दे पाया था जिसके चलते एम्स ने उसका नियुक्ति ऑफर वापस ले लिया था। तुशीर ने ढाई महीने देरी से प्रमाणपत्र दिया था जिसे एम्स ने नहीं माना। एम्स के वकील राजकुमार गुप्ता का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट जाट आरक्षण रद कर चुका है। इस संबंध में अधिसूचना जारी होने की तिथि से निरस्त हुई है। जिसका मतलब है कि जाट आरक्षण कभी लागू ही नहीं था। ऐसे में उसके तहत कोटे की मांग नहीं की जा सकती। जबकि, तुशीर के वकील का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसे ऑफर लैटर जारी होने के बाद आया है इसलिए वह फैसला उस पर लागू नहीं होगा। कैट ने तुशीर की दलीलें खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय कानून के मुताबिक आज की तारीख में जाट केंद्रीय नौकरियों में नियुक्ति के लिए ओबीसी श्रेणी में नहीं आते। फैसला सिर्फ आगे की तिथि से लागू होगा ये घोषित करने का अधिकार केवल सुप्रीम कोर्ट को है। टिब्यूनल या अन्य अदालत ऐसा घोषित नहीं कर सकती। जाट आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये नहीं कहा है कि उसका फैसला सिर्फ आगे की तिथि से लागू होगा। ऐसे में जाटों को आरक्षण देने वाली केंद्र सरकार की 4 मार्च, 2014 की अधिसूचना जारी होने की तिथि से ही रद मानी जाएगी।
2. जीएसटी पर आज लगेगी संसद की मुहर:- बहुप्रतीक्षित जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक पर सोमवार को संसद की मुहर लग जाएगी। राज्य सभा से 11 संशोधनों के साथ पारित इस विधेयक को दोबारा लोकसभा में पेश किया जाएगा। विधेयक पर होने वाली चर्चा को ऐतिहासिक बनाने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी हिस्सा लेने की संभावना है।देश में अप्रत्यक्ष कर की एक व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान में 122वां संशोधन किया जा रहा है। लोकसभा में जीएसटी विधेयक के मूल स्वरूप को मई 2015 में पारित किया गया था। बीते सप्ताह तीन अगस्त को राज्य सभा ने इसे 11 संशोधनों के साथ सर्वसम्मति से पारित किया। इन संशोधनों को लोकसभा की मंजूरी लेनी है। इसके बाद ही इसे राज्यों की विधानसभाओं में पारित कराने के लिए भेजा जा सकेगा। सरकार ने विपक्ष के साथ सहमति बनाने के बाद ही इसमें संशोधनों का प्रस्ताव किया था। सदन ने उसके सभी संशोधनों को स्वीकार कर लिया था। सोमवार को लोकसभा की कार्यवाही में अन्य किसी महत्वपूर्ण विधायी कार्य को शामिल नहीं किया गया है। दोपहर 12 बजे दस्तावेजों के पटल पर रखे जाने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली रायसभा से पारित विधेयक पेश करेंगे। आमतौर पर किसी दूसरे सदन से विधेयक की वापसी पर चर्चा नहीं कराई जाती है। लेकिन जीएसटी के महत्व को देखते हुए लोकसभा में इस पर चर्चा होगी। सरकार खुद चाहती है कि यह ऐतिहासिक अवसर बने और ज्यादा से ज्यादा सांसद इस कार्यवाही में हिस्सा लें। इस मौके को विपक्ष भी हाथ से नहीं गंवाना चाहता। लिहाजा कांग्रेस ने भी अपने सभी सांसदों को लोकसभा में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी की है। कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयोतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि जीएसटी देश के लिए महत्वपूर्ण है। हम इस विधेयक में संशोधन का लोकसभा में समर्थन करेंगे। उधर भाजपा ने अपने सभी सांसदों को सदन में उपस्थित रहने को कहा है। इसके साथ ही वह चाहती है कि सभी दलों के अधिक-से-अधिक सांसद उपस्थित रहें। हालांकि राज्य सभा की भांति लोकसभा में भी अन्नाद्रमुक सांसदों के वाकआउट करने की संभावना है।
ये हैं अहम संशोधन
• उत्पादक राज्यों के लिए एक फीसद अतिरिक्त दर के प्रावधान को वापस लिया जाएगा
• रायों के हिस्से वाले जीएसटी के संग्रह को केंद्र की समेकित निधि का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा।
• केंद्र द्वारा संग्रह किया जाने वाला केंद्रीय जीएसटी का हिस्सा राज्यों और केंद्र में वितरित किया जाएगा।
• सरकार ने आइजीएसटी (इंटीग्रेटेड जीएसटी) का नाम बदलकर अंतररायीय व्यापार पर लगने वाला जीएसटी कर दिया है।
• आइजीएसटी में राज्यों की हिस्सेदारी भारत की संचित निधि का हिस्सा नहीं होगी।
• केंद्र को जीसीएसटी और आइजीएसटी के रूप में जो राशि प्राप्त होगी उसका वितरण केंद्र और राज्यों के बीच में होगा।
• केंद्र और राज्यों तथा विभिन्न राज्यों के बीच विवाद की स्थिति में निर्णय करने वाले तंत्र की स्थापना जीएसटी काउंसिल करेगी।
3. नए संविधान पर थाइलैंड की जनता की मुहर:- थाइलैंड की जनता ने रविवार को सेना समर्थित नए संविधान के पक्ष में मतदान किया। आलोचकों ने यह संदेह जाहिर किया है कि इस संविधान से सत्ता पर सेना की अपनी पकड़ और मजबूत कर सकती है। जनमत संग्रह में देश के करीब पांच करोड़ मतदाताओं से यह पूछा गया कि ‘क्या आप मसौदा संविधान को स्वीकार करते हैं?’ इसका जवाब ‘हां’ या ‘नहीं’ में देना था। ‘हां’ के पक्ष में मतदाताओं का बहुमत मिलने से यह मसौदा संविधान बन जाएगा। इसके लिए रविवार को मतदान कराया गया और उसी दिन मतों की गिनती भी शुरू हो गई। चुनाव आयोग के अनुसार, अब तक 86 फीसद मतों की गिनती हो चुकी है। इसमें से 62 फीसद ने इसका समर्थन किया है। नए संविधान से अगले साल चुनाव कराए जाने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। नए संविधान के समर्थकों का कहना है कि इससे राजनीतिक उथल-पुथल खत्म करने में मदद मिलेगी। जबकि आलोचकों के मुताबिक, इससे सेना की पकड़ मजबूत होगी। इस मसौदे के खिलाफ अभियान चलाने वाले दर्जनों लोगों को हिरासत में लिया गया। देश की बड़ी राजनीति पार्टियां इस संविधान को खारिज कर चुकी हैं। बैंकाक में पोलिंग स्टेशन पर मत डालने के बाद प्रधानमंत्री प्रयुथ चान-ओ-चा ने कहा, ‘मतदान करने के लिए निकलें क्योंकि देश के भविष्य के लिए आज का दिन महत्वूपर्ण है।’ देश में 2014 में सैन्य तख्तापलट के बाद पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव कराया गया है।
4. जलवायु परिवर्तन से विश्व धरोहरों को खतरा :- आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइएस) से ही धरोहर स्थलों को खतरा नहीं है बल्कि जलवायु परिवर्तन भी इनका विनाश कर सकता है। वेनिस जैसे शहर, स्टैयू ऑफ लिबर्टी और मानव इतिहास की ऐसी अन्य धरोहरों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है।यूनेस्को के वल्र्ड हेरिटेज सेंटर की निदेशक मेशटिल्ड रॉसलर ने कहा कि संभवत: मेरे जीवनकाल में ही प्राकृतिक और सांस्कृतिक विश्व धरोहर स्थल नष्ट हो जाएंगे या समुद्र में समा जाएंगे। फ्लोरिडा डूब सकता है और वेनिस रहने लायक नहीं रह जाएगा। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में स्मारकों को सबसे बड़ा खतरा आतंकियों से है लेकिन वैश्विक तौर पर जलवायु परिवर्तन भी हमारे जीवन को प्रभावित करेगा। रॉसलर हाल ही में भारत दौरे पर थीं। इसके अलावा यूनेस्को ने वल्र्ड हेरिटेज एंड टूरिम रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर स्थलों के लिए तेजी से बड़ा खतरा बनता जा रहा है। इसका प्रभाव व्यापक है। प्रशांत या अंडमान क्षेत्र में मूल निवासियों के स्थानों पर आने वाले खतरों के प्रति तैयार रहना चाहिए। रिपोर्ट में जिन स्थानों पर खतरा मंडरा रहा है, उसमें अमेरिका में स्टैयू ऑफ लिबर्टी, येलोस्टोन पार्क और पेरू तथा ब्राजील के कई जंगलों को शामिल किया गया है। रॉसलर ने सीरिया के पाल्मीरा में आतंकियों द्वारा नष्ट की गई कलाकृतियों और धरोहरों का हाल ही में जायजा लिया है। उन्होंने कहा सीरिया का अलेप्पो शहर पूरी तरह बर्बाद हो गया है। उन्होंने युद्धग्रस्त क्षेत्रों में पुनर्निर्माण की बात कही। दुनियाभर में कुल 1,052 विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें करीब 50 को लुप्तप्राय स्थलों की सूची में शामिल किया गया है।
5. कुपोषण के खिलाफ निर्णायक जंग की तैयारी:- केंद्र सरकार शिशुओं और महिलाओं में कुपोषण की समस्या के खिलाफ निर्णायक जंग लड़ने के लिए एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस)में आमूलचूल बदलाव की तैयारी कर रही है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मांलय के सूत्रों के अनुसार सरकार ने इस योजना में बदलाव की तैयारी करते हुए राज्यों और संबंधित मंत्रालयों के साथ विचार विमर्श शुरू कर दिया है। इसके लिए हाल में ही राज्यों के महिला एवं बाल विकास के प्रभारी प्रधान सचिवों और सचिवों के एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें इस योजना के साथ-साथ महिलाओं, बच्चों की देखभाल और बच्चों के संरक्षण से संबंधित अन्य योजनाओं की समीक्षा भी की गयी थी। सूत्रों ने बताया कि सरकार आईसीडीएस कार्यक्रम का पूरी तरह कायाकल्प कर रही है, क्योंकि देश में कुपोषण का स्तर लगातार ऊंचा बना हुआ है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय नीति आयोग, स्वास्य एवं परिवार कल्याण तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय व अन्य पक्षकारों के साथ तालमेल से कुपोषण की समस्या से युद्धस्तर पर निपटने के लिए कार्य कर रहा है। इसके लिए आंगनवाड़यिों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है। प्रत्येक बच्चे, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताओं की वास्तविक समय निगरानी का समुचित इंतजाम किया जा रहा है। आईसीडीएस योजना के दायरे में छह साल के तक बच्चें आते हैं। यह योजना अक्टूबर, 1975 को शुरू की गयी जो सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है और बचपन की देखभाल और विकास के लिए दुनिया का सबसे बड़ा और अनूठा कार्यक्रम है।निगरानी व्यवस्था मजबूत करने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को स्मार्ट फोन देने की योजना बनाई गयी है और सुपरवाइजरों को टैबलेट प्रदान किए जाएंगे। राज्य सरकार नई आईटी आधारित पण्राली अपनाने में मदद देने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देगी। महिला एवं बाल विकास मांलय ने सूक्ष्म पोषक तत्वों की पर्याप्त उपलब्धता वाला साफ-सुथरा भोजन तैयार करने के संबंध में राज्यों को सख्त निर्देश जारी किये हैं। पूरक पोषण के मानकीकरण का प्रयास किया जा रहा है। इससे पकाने और वितरण की मानकीकृत प्रक्रिया के माध्यम से बच्चों और महिलाओं को स्वच्छ, पोषक और स्थानीय रूप से स्वीकार्य खाना उपलब्ध कराया जा सकेगा। सूत्रों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर खरीदारी और खाना तैयार करने की वर्तमान पण्रालियां कुपोषण घटाने में सफल नहीं हुई हैं। सरकार वर्तमान लागत मानदंडों का स्तर बढ़ाने का प्रयास कर रही है, ताकि लाभार्थियों को बेहतर खाना उपलब्ध कराया जा सके। सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष में मातृत्व सहयोग योजना के लिए 400 करोड़ रुपये का आवंटन किया है जबकि बीते साल अंतिम आवंटन 233 करोड़ रपए रहा था। इसी तरह से इसी वित्त वर्ष में राष्ट्रीय कुपोषण मिशन के अंतर्गत 360 करोड़ रपए का आवंटन किया गया है। पिछले साल यह आंकडा 65 करोड़ रपए का आवंटन हुआ था। इसके साथ ही विश्व बैंक से सहायता प्राप्त आईसीडीएस‘‘स्ट्रेंथे¨नग प्रोजेक्ट’के अंतर्गत 450 करोड़ रपए का आवंटन किया गया है जबकि बीते वित्त वर्ष इसके लिए अंतिम तौर पर 35 करोड़ रपए का ही आवंटन हुआ था। देश में चार क्षेत्रीय स्थानों पर विशेष प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए खाद्य एवं कुपोषण विभाग को अतिरिक्त 15 करोड़ रपए का आवंटन किया गया है।
6. मानव कोशिकाओं पर रिसर्च की फन्डिंग फिर शुरू होगी :- अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ (एनआईएच) उस रिसर्च की फन्डिंग पर लगा बैन हटाने वाला है, जिसमें मानव कोशिकाएं वन्य जीवों के भ्रूण में इंजेक्ट कर बीमारी के कारण खोजे जाते हैं। यह घोषणा साइंस पॉलिसी के एसोसिएट डाइरेक्टर कैरी वॉलिनेट्ज ने ब्लॉग पोस्ट में की है। इसका तरह की रिसर्च में मानव कोशिकाएं या अंगों को वन्य जीवों में विकसित करने की कोशिशें की जाती हैं। ताकि बीमारी के मूल कारण बेहतर तरीके से समझकर उनकी उचार थैरेपी विकसित की जा सके। बैन हटने के बाद एनआईएच भी इस रिसर्च में फन्डिंग कर सकता है। शोधकर्ता पहले भी मानव कोशिकाएं वन्य जीवों में लगाते रहे हैं। एक केस में मानव ट्यूमर चूहे में इंजेक्ट किया गया था ताकि उन दवाओं का परीक्षण हो सके, जो ट्यूमर नष्ट करती हैं। स्टेम कोशिकाओं की रिसर्च मूल रूप अलग होती है। इस रिसर्च की फन्डिंग पर बैन हटने से मरीजों को भी लाभ मिल सकता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी मरीज की किडनी फेल हो गई है, तो वन्य जीव में उसे विकसित किया जा सकेगा। हालांकि इस आइडिया से सभी सहमत हों, यह संभव नहीं है क्योंकि वैश्विक स्तर पर इसकी स्वीकार्यता नहीं है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के स्टेम सेल रिसर्चर पॉल नोएफ्लर कहते हैं- जब मानव कोशिकाएं किसी वन्य जीव के भ्रूण में इंजेक्ट की जाती हैं, तब वे उस वन्य जीव के दिमाग से जुड़ी होती हैं। ऐसे में उनके सही कार्य करने का सवाल उठता है, जो गंभीर है। जॉन होपकिन्स बर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ बायोएथिक्स के डाइरेरक्टर जैफ्री पी. काहन कहते हैं- जब दो प्रकार के जीवों में विकसित कोशिकाओं को मिलाया जाएगा, तो क्या वह मानव कोशिकाएं कहलाएंगी। यहां दूसरा बड़ा सवाल यह उठता है कि लोग उसे कितना स्वीकारेंगे। लोग आनुवांशिकी रूप से परिवर्तित ऑर्गेनिज्म स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन मानव और वन्य जीव के मिश्रण वाले ऑर्गेनिज्म की स्वीकार्यता अभी स्पष्ट नहीं है।

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