गरीबों के हित में बाधा नहीं बनेगी नई गरीबी रेखा:- मोदी सरकार संप्रग के कार्यकाल में विवादों में घिरी तेंदुलकर और रंजराजन समिति की गरीबी रेखाओं को हमेशा के लिए तिलांजलि देने की तैयारी कर रही है। माना जा रहा है कि नीति आयोग नई गरीबी रेखा तय करने को एक विशेषज्ञ समूह गठित करने पर विचार कर रहा है। बताया जाता है कि ‘नई गरीबी रेखा’ गरीबों के हितों में बाधा नहीं बनेगी, क्योंकि न तो इसका इस्तेमाल गरीबी निवारण कार्यक्रमों के लिए धन आवंटन के लिए होगा और न ही इसके जरिए गरीबों की पहचान की जाएगी। नई गरीबी रेखा का इस्तेमाल सिर्फ देश की तरक्की के आकलन और अकादमिक मकसद के लिए किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगड़िया ने नई गरीबी रेखा तय करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने का सुझाव दिया है। इसके बाद आयोग में इस दिशा में विचार-विमर्श शुरू हो गया है। आयोग इसके लिए उपयुक्त अर्थशास्त्रियों की पहचान करने में जुटा है, जिन्हें गरीबी रेखा सुझाने के लिए रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी जा सके। आयोग को नई गरीबी रेखा तय करने की जरूरत इसलिए पड़ रही है, क्योंकि मौजूदा तेंदुलकर और रंगराजन समिति की रेखाएं देश में गरीबी की तस्वीर सही से पेश नहीं कर पाती हैं। इतना जरूर है कि नई गरीबी रेखा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के मासिक उपभोक्ता खर्च सर्वे के आधार पर ही तय होगी। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने तेंदुलकर समिति के फॉमरूले के आधार पर गरीबी रेखा गांव में 28 रुपये और शहर में 32 रुपये रोजाना प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के रूप में तय की थी। इसकी चौतरफा आलोचना हुई थी। इसके बाद संप्रग सरकार ने रंगराजन समिति का गठन किया था। इस समिति ने शहर में गरीबी रेखा 47 रुपये और गांवों में 32 रुपये रोजाना प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च के तौर पर तय की थी। नई गरीबी रेखा के आधार पर आयोग को राष्ट्रीय विकास का विजन तैयार करने में मदद मिलेगी। हालांकि इसका इस्तेमाल गरीबों को मिलने वाले सरकारी योजनाओं के फायदे के लिए नहीं होगा। इसका मतलब है कि कोई भी गरीब गरीबी रेखा के दायरे में नहीं आने के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ पाने से वंचित नहीं होगा।
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