नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) शशिकांत शर्मा ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जैसे वित्तीय नियामकों का भी आडिट किए जाने पर विचार करने की जरूरत है।शर्मा ने यहां एसोचैम द्वारा वित्तीय एवं कारपोरेट धोखाधड़ी पर आयोजित तीसरे राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ करते हुए कहा कि कैग बाजार नियामक सेबी, बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) और पेंशन कोष नियामक जैसे वित्तीय नियामकों का ऑडिट करता है, लेकिन परफॉम्रेंश ऑडिट नहीं किया जाता है। उनका संगठन रिजर्व बैंक का आडिट नहीं करता है। केंद्र सरकार आरबीआई अधिनियम के तहत उसके आडिटर नियुक्त करती है।उन्होंने कहा कि वित्तीय धोखाधड़ी की घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी के मद्देनजर भविष्य में कैग को हमारे वित्तीय क्षेत्र के जोखिम और अति संवेदनशीलता पर गौर करने के साथ ही नियामकों की इस तरह की स्थिति से निपटने की क्षमता और प्रभावशीलता पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका व ब्रिटेन में जो घटनाएं हुईं उनके बीच देश के वित्तीय क्षेत्र पर भी गौर करना पड़ेगा। इसका लक्ष्य सिर्फ वित्तीय क्षेत्र के नियामकों की प्रभावशीलता व कार्यपण्राली के क्षेत्र में वांछित स्तर का अशुअरेंस हासिल करना है। शर्मा ने कहा कि बैंकों, विशेषकर सरकारी बैंकों के साथ हुई धोखाधड़ी पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। ये बैंक अभी गैर निष्पादित परिसंपत्तियों में बढ़ोतरी की समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि एनपीए का बहुत बड़ा हिस्सा धोखाधड़ी कर लिए गए ऋण का है। ऐसा भी माना जा रहा है कि इस तरह के ऋण का बड़ा हिस्सा विदेशों में भेजे गए हैं और उसकी कभी भी वसूली होने वाली नहीं है।उन्होंने कहा कि आम लोगों के हितों के साथ ही वित्तीय तंत्र की गरिमा की संरक्षा के लिए इस तरह के मामलों से निपटने के उद्देश्य से समग्र रणनीति बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे देश में जहां वित्तीय निक्षरता अधिक है वहां इस तरह की धोखाधड़ी होने की आशंका अधिक होती है। वित्तीय साक्षरता बढ़ाकर इस तरह के जोखिम से निपटा जा सकता है। इसके साथ ही नियामकों को वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने के लिए आपस में मिलकर अपनी क्षमता बढ़ानी चाहिए।
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