मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक और चार शादियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट संविधान के दायरे और पूर्व फैसलों की रोशनी में विचार करेगा। बुधवार को कोर्ट ने मसले को गंभीर बताते हुए पक्षकारों को उत्तर प्रति उत्तर दाखिले का समय दिया और सुनवाई 6 सितंबर को तय कर दी। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, इस मुद्दे से बहुत लोग प्रभावित होते हैं। कोर्ट इसके कानूनी पहलू पर विचार करेगा। याचिकाकर्ता कानूनी प्रश्न तय करें जिन पर बहस व विचार किया जा सकता है। कोर्ट संविधान के दायरे और पूर्व फैसलों को ध्यान में रखते हुए देखेगा कि किस हद तक दखल दिया जा सकता है। अगर कोर्ट को लगा कि पूर्व फैसलों में ये मुद्दा तय किया जा चुका है तो आगे सुनवाई नहीं करेगा। अगर लगा कि विस्तृत विचार की जरूरत है तो सुनवाई होगी। जरूरत हुई तो बड़ी पीठ को भी भेजा जाएगा। कोर्ट ने यह बात तब कही जब मुस्लिम महिला संगठनों व तीन तलाक पीड़ित महिलाओं ने इसे खत्म करने की मांग की। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का कहना था कि कोर्ट पर्सनल ला के मामले में दखल नहीं दे सकता। ये मुद्दे पूर्व फैसलों में तय हो चुके हैं। केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल नहीं किया है। कोर्ट ने इसके लिए छह हफ्ते का समय दे दिया। कोर्ट ने कई संगठनों को पक्षकार बनने की अनुमति दी। टीवी बहस पर रोक नहीं : कोर्ट ने तीन तलाक पर टीवी पर बहस और ला बोर्ड को बयान जारी करने से रोकने की मांग ठुकरा दी। कोर्ट ने कहा, लोगों के अपने विचार हो सकते हैं। याची चाहे तो बहस में भाग ले सकती हैं। कोर्ट मीडिया बहस से प्रभावित नहीं होता। पर्सनल ला बोर्ड पर आरोप : याचिकाकर्ता ने ला बोर्ड पर लोगों को भ्रमित करने का आरोप लगाया। मांग थी कि बाबरी मस्जिद मामले में मीडिया में बहस पर रोक की तरह ला बोर्ड के बयान जारी करने पर रोक लगाई जाए।
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