क्या देश के सरकारी बैंक भारी वित्तीय संकट में फंसे हुए हैं। वित्त मंत्रलय और रिजर्व बैंक इस मुद्दे पर बिल्कुल ही विपरीत राय रखते हैं। एक तरह जहां केंद्रीय बैंक ने सरकारी बैंकों के न सिर्फ गहरे संकट में फंसे होने पर चेतावनी दी है बल्कि अगले वित्त वर्ष तक हालात में बहुत सुधार नहीं होने की आशंका जताई है। जबकि दूसरी तरफ वित्त मंत्रलय इस बात से बहुत इत्तेफाक नहीं रखता है। वित्त मंत्रलय का मानना है कि बैंकों के लिए सबसे बुरा वक्त बीत चुका है। फंसे कर्जे की समस्या पर भी जल्द लगाम लग जाएगी।वित्त मंत्री अरुण जेटली से जब यह पूछा गया कि क्या भारतीय बैंक और खास तौर पर सरकारी बैंक किसी गहरे संकट में फंसे हुए हैं तो उन्होंने इसका विस्तृत जबाव दिया। जेटली ने बताया कि सरकारी बैंकों की स्थिति खराब थी लेकिन अब वह नियंत्रण में आ गई है। अगर केंद्रीय बैंक की रिपोर्ट को ही आधार बनाया जाए तो साफ है कि कमजोरी के यादातर मानकों में सुधार हो रहा है। फंसे कर्जे (एनपीए) के खातों की संख्या घट रही है। कर्ज नहीं चुका पाने वाली कंपनियों को लेकर तेजी से बैंक फैसले कर रहे हैं। कर्ज लौटाने की उनकी स्थिति सुधर रही है। एनपीए की वजह से सरकारी बैंकों को भारी भरकम राशि अपने मुनाफे से अलग करनी पड़ रही है। हो सकता है कि इनमें से अछी खासी रकम आने वाले दिनों में बैंकों के मुनाफे में फिर से जुड़ जाए।लेकिन रिजर्व बैंक की तरफ से पिछले मंगलवार को पेश रिपोर्ट भारतीय बैंकों की जो तस्वीर पेश करती है, वह किसी भी तरह से बहुत उत्साहजनक नहीं है। सितंबर, 2015 के मुकाबले मार्च, 2016 में सभी सूचीबद्ध वाणियिक बैंकों की कुल फंसे कर्ज की राशि का कुल कर्जो में हिस्सा 5.1 फीसद से बढ़कर 7.6 फीसद हो गया है। शुद्ध एनपीए का अनुपात इस दौरान कुल कर्जो की तुलना में 2.8 फीसद से बढ़कर 4.6 फीसद हो गया है। सरकारी बैंकों के लिए तो यह अनुपात और भी खतरनाक स्तर यानी 3.6 फीसद से बढ़कर 6.1 फीसद हो गया है। यह आंकड़ा बताता है कि किस तरह से देश में छाई औद्योगिक मंदी ने धीरे-धीरे बैंकिंग सेक्टर (खास तौर पर सरकारी क्षेत्र के बैंकों) को अपने जद में लिया है। सीमेंट, लौह-इस्पात, खनन, रसायन जैसे उद्योगों की रफ्तार जैसे-जैसे सुस्त होती गई है, इनमें एनपीए की राशि भी बढ़ती गई है। इससे यह भी पता चलता है कि सितंबर, 2015 से मार्च, 2016 के बीच देश के कुल अग्रिम राशि में बड़े ग्राहकों की हिस्सेदारी 56.8 फीसद से बढ़कर 58 फीसद हुई है जबकि इस बीच कुल एनपीए में इनकी हिस्सेदारी 83.4 फीसद से बढ़कर 86.4 फीसद हो गई है। छोटे कर्जदार अभी भी समय पर कर्ज चुकाने के मामले में सबसे आगे हैं।
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