ब्लू इकॉनमी (समुद्री अर्थव्यवस्था) पर रणनीति बनाने और देश के चारों ओर फैले हुए समुद्री संसाधनों को कैसे उपयोग में लाया जाए, इस पर विदेश मंत्रालय से जुड़े संस्थान विश्व मामलों की भारतीय परिषद ने देश भर के विशेषज्ञों और कई मंत्रालयों के साथ मिलकर 11-12 जुलाई को र्चचा करने की योजना बनाई है। सरकार की योजना है कि विस्तृत विचार विमर्श के बाद ही इसकी नीतियां निर्धारित की जाएं। दो दिनों के इस कार्यक्रम का उद्घाटन नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत करेंगे जबकि इसके समापन अवसर पर विदेश सचिव एस जयशंकर अपनी बात रखेंगे। सूत्रों के अनुसार, र्चचा के प्रमुख विषयों में इंडिया एंड द ओशन इकानमी : एक ओवरव्यू; ओशन मिनरल, सी बेड माइनिंग एंड ओशन एनर्जी, फिशरीस एंड एक्वाकलचर; शिपिंग, पोर्ट एंड मेरीन टूरिज्म और ओशन गर्वनेंस व मेरीटाइम सिक्योरिटी एंड इंटरनेशनल कोआपरेशन शामिल हैं। भारत इस मामले में बहुत बेहतर स्थिति में है और विश्व के कई देश सहयोग की मंशा भी जता चुके हैं। विश्व मामलों की भारतीय परिषद के निदेशक (शोध) पंकज झा ने राष्ट्रीय सहारा को बताया कि ब्लू इकानमी, जिसे भारत ओशन इकॉनमी का नाम दे रहा है, पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मारिशस, सेशल्श और श्रीलंका की 2015 में यात्रा के दौरान बात आगे बढ़ी थी और इन देशों के साथ भारत ने समुद्री अर्थव्यवस्था से संबंधित समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए थे। जून 2015 में भारत और बांग्लादेश के बीच भी इस मसले पर हस्ताक्षर हुए थे और समुद्री अर्थव्यवस्था पर काम करने की सहमति बनी थी। पंकज झा ने बताया कि तकनीकी और निवेश के अभाव के बावजूद मारिशस और सेशल्श ने मिलकर अपने विकास के लिए इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। ये दोनों देश आपसी सहमति पर भी काम कर रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका ने भी आपरेशन फाकीशा के तहत समुद्र की आर्थिक क्षमताओं का आकलन शुरू कर दिया है। इसके अलावा काफी सारे इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के देशों ने समुद्री अर्थव्यवस्था को लेकर सूचना साझा करने समेत डाटा की जानकारी भी सहयोगी देशों को उपलब्ध करानी शुरू कर दी है। अन्य देश भी इसमें शामिल होने के इच्छुक हैं।ब्लू इकॉनमी के तहत भारत अन्य देशों के साथ मिलकर मछली उद्योग, व्यापार, बंदरगाह और जहाजरानी, सी बेड उत्खनन, समुद्री ऊर्जा, पर्यटन और मिनरल के क्षेत्र में एक दूसरे के साथ सहयोग की संभावनाएं तलाश रहा है।
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