केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति के मसौदे के प्रमुख बिंदुओं को सार्वजनिक किया है जिसमें छात्रों को फेल न करने की नीति पांचवीं कक्षा तक के लिए सीमित करने, ज्ञान के नए क्षेत्रों की पहचान के लिए एक शिक्षा आयोग का गठन करने, शिक्षा के क्षेत्र में निवेश को बढ़ाकर जीडीपी के कम से कम छह फीसदी करने और शीर्ष विदेशी विविद्यालयों के भारत में प्रवेश को बढ़ावा देने-जैसे कदमों का जिक्र किया गया है। ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2016 के मसौदे के लिए कुछ इनपुट’ शीर्षक से अपनी वेबसाइट पर जारी किए गए दस्तावेज पर मंत्रालय ने प्रतिक्रि याएं मांगी हैं। मंत्रालय की ओर से पेश किए गए मसौदे में इस बात का जिक्र है कि छात्रों को फेल न करने की नीति के मौजूदा प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा, क्योंकि इससे छात्रों का शैक्षणिक प्रदर्शन काफी प्रभावित हुआ है। मसौदा इनपुट दस्तावेज में कहा गया है, ‘‘फेल न करने की नीति पांचवीं कक्षा तक सीमित रहेगी और उच्च प्राथमिक स्तर पर फेल करने की व्यवस्था बहाल की जाएगी।’ दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि यदि प्राथमिक स्तर तक निर्देश का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा है तो दूसरी भाषा अंग्रेजी होगी और उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तरों पर तीसरी भाषा चुनने का अधिकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राज्यों और स्थानीय अधिकारियों के पास होगा। नीति के मसौदे से संबंधित इस दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि स्कूलों और विविद्यालयों के स्तर पर संस्कृत पढ़ाने की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। उच्च शिक्षा के बाबत इस दस्तावेज में एक शिक्षा आयोग के गठन का जिक्र किया गया है जिसमें शैक्षणिक विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। यह आयोग हर पांच साल पर गठित होगा। मंत्रालय की ओर से जारी दस्तावेज में शिक्षा के क्षेत्र में खर्च को जीडीपी के कम से कम छह फीसदी करने और शीर्ष विदेशी विविद्यालयों को भारत में आने को बढ़ावा देने-जैसी बातें भी कही गई है।
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