Sunday, 3 July 2016

2 July 2016..4. केंद्र-राज्य के बीच फंसा उत्तर भारत का सबसे बड़ा गैसीय बिजली संयंत्र:-

 उत्तरभारत का सबसे बड़ा गैस आधारित बवाना बिजली संयंत्र केंद्र-राज्य के उलझन में फंस कर रह गया है। स्थिति ऐसी है कि गैस के अभाव में यह संयंत्र अपनी उत्पादन क्षमता का पांचवां हिस्सा भी उत्पादित नहीं कर रहा है। खास बात यह है कि पिछले छह सालों में इस संयंत्र से मात्र उतनी ही बिजली तैयार हुई, जितनी की इसकी लागत थी। दिल्ली को बिजली क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए आठ साल पहले 1500 मेगावाट क्षमता वाले गैस आधारित बवाना बिजली संयंत्र की नींव रखी गई। संयंत्र के निर्माण में 31 दिसंबर 2015 तक 4717 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। सूचना के अधिकार के तहत ऊर्जा विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस संयंत्र के निर्माण हेतु लिए गए कर्ज का 15 करोड़ रुपए प्रतिमाह ब्याज के तौर पर भुगतान करना पड़ रहा है। इस संयंत्र के निर्माण पर 31 दिसंबर 2015 तक 4717 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। 
बवानासंयंत्र के संचालन पर हर महीने खर्च हो जाते हैं 52.43 करोड़ रुपए बवानासंयंत्र के अनुरक्षण एवं संचालन पर हर महीने 52.43 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। इस मद में 31 मार्च 2015 तक 1452.93 करोड़ रुपए खर्च हो गए। इसमें कर्मचारियों का वेतन, ब्याज आदि शामिल है। संयंत्र के निर्माण के लिए विभिन्न संस्थाओं से 2515.58 करोड़ रुपए कर्ज लिए गए। जिनके पर हर महीने 15 करोड़ रुपए ब्याज के तौर पर भुगतान किया जाता है। छह सालों में मात्र उतनी ही बिजली तैयार हुई, जितनी इसकी लागत थी राजधानी की सबसे महात्वाकांक्षी इस परियोजना को कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान शुरू किया गया, ताकि अंतरराष्ट्रीय खेलों के आयोजन के समय राजधानी में किसी तरह की बिजली संकट उत्पन्न हो। वर्ष 2011-12 से फरवरी 2015-16 तक 4949.10 करोड़ रुपए की बिजली बेची जा चुकी है, जो कि संयंत्र के निर्माण लागत के लगभग बराबर है। दिल्ली की बिजली कंपनियों की दलील है कि इस संयंत्र से बिजली की खरीद उन्हें महंगी पड़ती है।

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