भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह विकसित करने के लिए हुए समझौते पर अमेरिकी की पैनी नजर है। ओबामा प्रशासन ने कहा है कि वह समझौते का गंभीरता से अध्ययन कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच यह समझौता हुआ था। इसके अनुसार 50 करोड़ डॉलर (करीब 3369 करोड़ रुपये) के निवेश से भारत इस बंदरगाह को विकसित करेगा। सीनेट की विदेश मामलों की समिति की मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान कई सीनेटरों ने इस समझौते पर सवाल उठाए। सीनेटरों ने समझौते में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन होने की आशंका जताई। इसका जवाब देते हुए सहायक विदेश मंत्री (दक्षिण एवं मध्य एशिया) निशा देसाई बिस्वाल ने कहा कि ओबामा प्रशासन समझौते के कानूनी पहलुओं को देख रहा है। भारत और ईरान के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि चाबहार को लेकर अमेरिका अपनी चिंताओं और अपेक्षाओं से नई दिल्ली को अवगत करा चुका है। ईरान पर लगे प्रतिबंध भी स्पष्ट हैं। फिलहाल नहीं लग रहा है कि किसी भी प्रतिबंध का उल्लंघन हुआ है। उन्होंने कहा कि ईरान के साथ भारत के संबंध मुख्य रूप से आर्थिक और ऊर्जा मसलों से संबंधित है। यह सैन्य सहयोग का मसला नहीं है जिससे अमेरिका के लिए खतरा पैदा हो। बिस्वाल ने कहा कि अमेरिकी प्रशासन भारत की जरूरतों का एहसास करता है। भारत की दृष्टि से यह बंदरगाह अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए उसका प्रवेश द्वार है। उल्लेखनीय है कि परमाणु गतिविधियों को लेकर ईरान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए गए थे। लेकिन, विश्व के छह प्रमुख देशों और ईरान के बीच समझौते के बाद कई प्रतिबंध इस साल जनवरी में हटा लिए गए थे। लेकिन कुछ प्रतिबंध अभी भी जारी हैं, जो मानवाधिकार और आतंकवाद से जुड़े हैं।
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