Tuesday, 17 May 2016

दैनिक समसामयिकी 17 May 2016(Tuesday)

1.सरकार ने दया मृत्यु पर मांगी जनता की राय:- केंद्र सरकार ने ‘दया मृत्यु’ (यूथनेशिया) संबंधी विधेयक के मसौदे पर जनता से राय मांगी है। इसके तहत लाइलाज मरीज को जीवित रखने वाला इलाज या लाइफ सपोर्ट सिस्टम रोका जा सकेगा। दरअसल स्वास्थ्य मंत्रलय मरीज ने चिकित्सकीय इलाज रोकने के संबंध में मरीज और चिकित्सक के संरक्षण बिल पर जनता समेत सभी पक्षों से 19 जून तक अपना जवाब मांगा है। स्वास्थ्य मंत्रलय के उप सचिव सुनील कुमार के हस्ताक्षर वाली इस अधिसूचना में बताया गया है कि सरकार दया मृत्यु पर कानून लाने से पहले जनता की राय और प्रतिक्रिया जानना चाहती है। दया मृत्यु को समझाते हुए बेहद बीमार मरीजों के इलाज से संबंधित इस बिल के मसौदे में कानून आयोग की 241वीं रिपोर्ट भी अपलोड की गई है। इस पर जनता को अपनी राय ई-मेल के जरिए 19 जून तक देनी होगी। सरकार के इस नोट में दया मृत्यु तो नकारात्मक दया मृत्यु भी कहा गया है। इसके तहत मरीज का इलाज रोकने या लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने की छूट होगी। इसमें ऐसे गंभीर मरीजों का इलाज रोकना शामिल है जिनकी ऐसा करने से मृत्यु हो सकती है। कोमा में चले जाने वाले ऐसे मरीज प्राय: हृदय या फेफड़ों से जुड़ी मशीनों पर जीवित रहते हैं।दरअसल, इस विषय पर कानूनी प्रावधान बनाने के लिए मंत्रलय ने वर्ष 2006 में ही विशेषज्ञों की राय ली थी। विशेषज्ञों का कहना था कि ऐसा कानून कतई न बनाएं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में अपने फैसले में व्यापक दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था इस प्रक्रिया को पूरे देश में तब तक न लागू किया जाए जब तक कि इस संबंध में कोई कानून नहीं बन जाता है। इसके बाद कानून आयोग ने 2012 में इस बारे में एक विधेयक का प्रस्ताव किया। इस मसौदे में दया मृत्यु और जीने की इछा को अछी तरह से परिभाषित किया गया है। जिसमें बताया गया है कि एक व्यक्ति जो लंबे समय से बीमार है और उसकी स्थिति में सुधार होने की कोई संभावना नहीं है। मंत्रलय ने अब पूछा है कि कानून आयोग की इन सिफारिशों पर अमल किया जाए या नहीं।
2. बढ़ता बैंक घाटा विलय में रोड़ा:- भारी भरकम फंसे कर्जे (एनपीए) सरकार के लिए दोधारी तलवार बने हुए हैं। इस वजह से सरकारी क्षेत्र के बैंको का मुनाफा घटता जा रहा है। घटते मुनाफे और खराब वित्तीय स्थिति के कारण सरकार इन बैंकों में सुधार संबंधी कदम भी नहीं उठा पा रही है। बैंकों की खस्ताहाल वित्तीय स्थिति की वजह से ही सरकारी बैंकों में विलय व एकीकरण पर वित्त मंत्रलय फिलहाल तेजी नहीं दिखाने के मूड में नहीं है। इसी वजह से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) में इसके अन्य पांचों सहयोगी बैंकों के विलय का विचार भी फिलहाल त्याग दिया गया है। बैंक बोर्ड ब्यूरो (बीबीबी) का साफ तौर पर मानना है कि जब तक इन बैंको की माली हालत मजबूत न हो, तब तक इन्हें विलय व एकीकरण की राह पर नहीं डालना चाहिए। ऐसे में एबीआइ समूह के भीतर या अन्य बैंकों में विलय की राह अब अगले वर्ष ही निकलने के आसार हैं। बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रलय ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान ही यह साफ कर दिया था कि बैंकों में विलय को लेकर अब यादा देरी नहीं होनी चाहिए। यह और बात है कि इन एक वर्ष के भीतर सरकारी बैंकों की माली हालात जिस तरह से बद से बदतर हुई है, उसमें इन्हें विलय के लिए तैयार करने में समझदारी नहीं है। पिछले हफ्ते बैंक बोर्ड ब्यूरो के साथ दर्जन भर बैंकों की बैठक में विलय व अधिग्रहण का मुद्दा भी उठा। लेकिन सभी की यह आम राय थी कि मौजूदा हालात बैंकों की सही वित्तीय तस्वीर पेश नहीं करती है। वैसे बैंक विलय पर सुझाव देने के लिए सरकार की तरफ से एक समिति गठित की गई है। समिति को आठ दस छोटे सरकारी बैंकों को मिलाकर एक या दो बड़े बैंक में बदलने का रोडमैप देना है। हालांकि एसबीआइ व इसके सहयोगी बैंकों के विलय के लिए सरकार पहले से ही तैयार है। लेकिन बैंकों की माली हालत को देखते हुए वित्त मंत्रलय विलय पर कोई दबाव नहीं बनाना चाहता। एसबीआइ दो सहयोगी बैंकों का पहले ही विलय कर चुका है। अभी पांच बचे हुए हैं। इनका एक झटके में एसबीआइ के साथ विलय करने की तैयारी थी। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में पांचों सहयोगियों (स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ त्रवणकोर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर) की माली हालत पतली हुई है।
3. आर्थिक कूटनीति : ईरान और बांग्लादेश में एसईजेड बनाएंगी भारतीय कंपनियां:- कुछ समय पहले तक यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान समेत अन्य विकसित देशों से आर्थिक मदद हासिल करने वाले भारत की तस्वीर बदल गई है। भारत की सरकारी व निजी कंपनियां दूसरे देशों में अब बढ़-चढ़ कर निवेश करने लगी हैं। यही नहीं, भारत ने कूटनीतिक रणनीति के तहत दूसरे देशों में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) के निर्माण पर जोर देना शुरू कर दिया है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो बांग्लादेश में दो और ईरान में एक एसईजेड पर सरकार जल्द ही इन दोनों देशो के साथ समझौता कर लेगी। सूत्रों के मुताबिक पिछले हफ्ते विदेश सचिव एस जयशंकर की ढाका यात्र के दौरान एसईजेड को आगे बढ़ाने के संबंध में बातचीत हुई है। बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना की जल्द होने वाली नई दिल्ली यात्र के दौरान एसईजेड को लेकर अंतिम तौर पर समझौता होने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले वर्ष हुई ढाका यात्र के दौरान दोनो के बीच बांग्लादेश में एसईजेड लगाने को लेकर सहमति बनी थी। उसके बाद से काम काफी तेजी से आगे बढ़ा है। दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने ढाका के पास करानीगंज और चिटगांव के पास मीरसराय में दो जगहों का चुनाव किया है, जहां भारतीय कंपनियां एसईजेड लगा सकती हैं। माना जा रहा है कि ढाका भारत को तीसरे एसईजेड के लिए भी जमीन देने को तैयार है। यह एसईजेड दोनों के बीच प्रगाढ़ होते रिश्तों के साथ ही अर्थनीति आधारित कूटनीति की भी एक बानगी है। लगभग एक दशक पहले स्थानीय सरकार से मदद नहीं मिलने की वजह से टाटा समूह ने ढाका में अपनी भारी भरकम निवेश परियोजना को रद कर दिया था। भारतीय कूटनीति इसी तरह से ईरान में एक एसईजेड लगाने के प्रस्ताव पर काफी जोर लगाए हुए है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने हाल ही में कहा था कि भारतीय कंपनियां ईरान के एसईजेड में 20 अरब डॉलर तक निवेश करने को तैयार हैं। ईरान के चाबहार बंदरगाह के पास ही इस एसईजेड को लगाने की योजना है, जहां यूरिया व अन्य खाद तैयार करने की फैक्टियां लगाई जाएंगी। यह चीन की तरफ से पाकिस्तान के ग्वादर में लगाए जा रहे एसईजेड से बहुत दूर नहीं होगा। चीन के बढ़ते असर से परेशान जापान ने ईरान में एसईजेड लगाने के भारतीय प्रस्ताव को हरसंभव मदद देने की बात कही है। वैसे, दूसरे देशों में एसईजेड लगाने के मामले में भारत चीन से काफी पीछे है। चीन की कंपनियों ने सरकारी मदद से दक्षिण अमेरिकी देशों से लेकर अफ्रीका तक में कई एसईजेड लगा चुकी हैं। अगर ईरान और बांग्लादेश में सरकार की पहल रंग लाती है तो चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दूसरा देश होगा।
4. अफगान शांति वार्ता के लिए पाक में जुटेंगे चार देश:- डेढ़ दशक से ¨हसा की आग में झुलस रहे अफगानिस्तान में शांति का सूरज उदय होने की आस बंधी है। तालिबान से बातचीत के लिए पाकिस्तान में बुधवार को चार देशों के विशेष दूत जुटेंगे। चारों देशों ने 23 फरवरी को काबुल में मार्च के पहले सप्ताह में तालिबान के साथ शांति वार्ता शुरू करने की घोषणा की थी। तालिबान के इन्कार के बाद बैठक रद करनी पड़ी थी। सूत्रों के अनुसार, इस घटना के बाद 18 मई को चीन, अमेरिका, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विशेष दूत बातचीत के लिए पहली बार एक मेज पर बैठने वाले हैं। इसमें तालिबान के साथ शांति वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए ठोस पहल पर विचार-विमर्श किया जाएगा। शुरुआत में तालिबान और अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों से परामर्श के बाद वार्ता शुरू करने की योजना थी। लेकिन, अप्रैल में काबुल में जबरदस्त आतंकी हमले के बाद इस पर अमल नहीं हो सका था। मीडिया रिपोर्टो के मुताबिक तालिबान के इन्कार की स्थिति में अफगानिस्तान आतंकी संगठन को वार्ता विरोधी घोषित कराना चाहता है। ऐसी स्थिति में उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है।
5. पाक में चीन बना सकता है नौसैनिक केंद्र:- पेंटागन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन पाकिस्तान जैसे अपने मित्र देशों में अपना अतिरिक्त नौसैनिक केंद्र बना सकता है।रिपोर्ट के अनुसार चीन पाकिस्तान जैसे अपने मित्र देशों में ,जिनके साथ उसका समान रणनीतिक हित है, इन केंद्रों को बना सकता है। चीन की सैनिक तथा सुरक्षा गतिविधियों के संबंध में अमेरिकी कांग्रेस में पेश वार्षिक रिपोर्ट में अमेरिका के रक्षा विभाग ने दावा किया है कि चीन अपने नौसैनिक केंद्र के लिए उन देशों को चुनने का प्रयास कर रहा है जहाँ पहले से विदेशी सैनिकों की तैनाती होती रही है।रिपोर्ट के अनुसार चीन जिन मित्र देशों का चयन कर सकता है, वह अपने यहाँ के एक बंदरगाह को उसके नौसैनिक अड्डे के लिए दे सकते है। पेंटागन के अनुसार इसके लिए पाकिस्तान चीन की स्थायी पसंद वाला देश जो उसके परंपरागत असों और सैनिक क्षेत्र में सहयोग करने वाला देश रहा है। चीन उसके साथ हथियारों की बिक्री तथा रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा सकता है।रिपोर्ट के अनुसार इसमे पाकिस्तान तथा चीन एल वाई-80 जमीन से आकाश तक मार करने वाली मिसाइल पण्राली एफ-32 पी हेलिकाप्टर युक्त युद्धपोत, युद्ध टैंक, मुख्य युद्ध टैंक, आकाश से आकाश में मारे करने वाली मिसाइल तथा पोत रोधी क्रूज मिसाइल शामिल हैं। 2014 के जून से पाकिस्तान ने चीन के साथ साझा निर्माण शुरू किया था और उसने दो 50 ब्लाक 2 जे एफ 17/3 का निर्माण किया था जो ब्लाक 1 जे एफ 17 का विकसित रूप था। पेंटागन की रिपोर्ट में भारत तथा चीन के बीच सीमा पर बढ़ते तनाव का भी उल्लेख है। इसके अलावा अतिरिक्त सेनाओं की तैनाती का भी उल्लेख है।
6. यूनेस्को ने शुरू की उच्च शिक्षा के लिए ग्लोबल फ्रेमवर्क पर चर्चा:- ग्लोबल कनवेंशन आन रिकग्निशन आफ हायर एजूकेशन क्वालीफिकेशन का उद्देश्य है।
 1- अंतक्र्षेत्रीय अकादमिक की एक दूसरे देश में आवाजाही को मजबूत करना। 
 2- उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
 3- उच्च शिक्षा का लोकतांत्रीकरण और जीवन पर्यंत शिक्षा ग्रहण करने का मौका उपलब्ध कराना।
 4- उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहे विभेद के मद्देनजर बेहतर गुणवत्ता के लिए एक बेहतर संरचना बनाना।
 5- विश्व के सभी क्षेत्रों के लिए उच्च शिक्षा के लिए समान मानदंडों के लिए सहमति बनाना भी शामिल है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्व के सभी देशों के बीच बेहतर तालमेल के लिए अपने 2030 के सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऐजेंड के तहत पिछले हफ्ते से यूनेस्को के 18 विशेषज्ञों ने विचार मंथन शुरू कर दिया है जिसका उद्देश्य उच्च शिक्षा के लिए एक ग्लोबल फ्रमेवर्क तैयार करना है। विशेषज्ञों को अपनी प्राथमिक ड्राफ्ट रिपोर्ट नवम्बर 2017 तक तैयार करनी है जिसे यूनेस्को के जनरल कनवेंशन में पेश किया जाएगा। ग्लोबल कनवेंशन उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दो देशों के द्विपक्षीय समझौतों को प्रभावित नहीं करेगी। पेरिस में यूनेस्को की भारतीय प्रतिनिधि रुचिरा कम्बोज के अनुसार, ‘‘ड्राफ्ट कमेटी ऑफ ग्लोबल कनवेंशन आन रिकग्निशन आफ हायर एजुकेशन क्वालीफिकेशन’ की बैठक में एशिया पैसिफिक देशों का नेतृत्व भारत के फुरकान कमर कर रहे हैं जिन्हें इस ड्राफ्ट कमेटी का उपाध्यक्ष चुना गया है। फुरकान कमर एसोशिएशन आफ इंडियन यूनिवर्सिटीज के सेकेटरी जनरल भी हैं।उल्लेखनीय है कि विश्व के लगभग 25 लाख छात्र अपने देश से बाहर जाकर दूसरे देशों में उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं। इन छात्रों के पास अपनी डिग्री को अपने देशों मे लागू करने का कोई कानूनी आधार नहीं है जबकि यह नया ग्लोबल कनवेंशन इस तरह का फ्रेमवर्क छात्रों को उपलब्ध कराएगा ताकि सभी देश इस ग्लोबल कनवेंशन को मानने के लिए बाध्य हों। सूत्रों ने बताया कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर काफी विभेद हैं। कुछ देशों में 10+2 की व्यवस्था लागू है। कहीं पर 12+3 और कहीं पर कुछ और व्यवस्था लागू है। इस समिति की यह जिम्मेदारी है कि यह एक ऐसी व्यवस्था बनाए जो सभी देशों के लिए स्वीकार्य हो। भारत के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि चीन और आस्ट्रेलिया-जैसे देशों की तुलना में भारतीय शिक्षाविद को इस समिति मे जगह मिली है। ऐसा माना जा रहा है इस ग्लोबल कनवेंशन से आकादमिक और प्रोफेशनल लोग एक-दूसरे से बेहतर सहयोग कर पाएंगे व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ेगा। इसके साथ-साथ नियंतण्र मान्यता और विास बढ़ाने की दिशा में भी यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इस बैठक को लेकर यह भी माना जा रहा है कि इसमें रीजनल कनवेंशन में सुधार को मान्यता देने की बात पर भी र्चचा होगी।

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