Thursday, 12 May 2016

दैनिक समसामयिकी 09 May 2016(Monday)

1.वर्ष 2014-15 से सुस्त है जीडीपी वृद्धि की रफ्तार:- वित्त वर्ष 2014-15 के मध्य से भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ रही है। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि कंपनियों के नतीजों तथा वास्तविक आर्थिक संकेतकों से ऐसा दिख रहा है।अध्ययन में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के आधिकारिक आंकड़ों पर भी सवाल उठाया गया है। इसमें कहा गया है कि क्षेत्रवार विश्लेषण से पता चलता है कि देश के दक्षिणी हिस्से की वृद्धि दर उत्तरी हिस्से से अधिक रही है। यह आधिकारिक आंकड़ों के उलट रुख है। प्रमुख वित्तीय सेवा और निवेश शोध कंपनी एंबिट कैपिटल द्वारा तैयार क्षेत्रीय कीक्वेन्ग इंडेक्स के अनुसार मध्य भारत की वृद्धि दर सबसे अधिक रही है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों के अनुसार 2015-16 में जीडीपी की वृद्धि दर 2014-15 से अधिक रही है। एंबिट कैपिटल की रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियों के नतीजों तथा अर्थव्यवस्था की सेहत जांचने के लिए विकसित विभिन्न माध्यमों से पता चलता है कि 2014-15 के मध्य से वास्तविक भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ रही है। सीएसओ के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015-16 में जीडीपी की वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत रही है, जो 2014-15 में 7.2 प्रतिशत रही थी। हालांकि, इसका कोई तुक नहीं है क्योंकि वास्तविक अर्थव्यवस्था के 14 संकेतकों में से 9 में 2015-16 में गिरावट दर्ज हुई।
2. जजों की नियुक्ति में सरकार के अधिकार वाले क्लॉजों पर आपत्ति:- सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने शीर्ष अदालत और हाईकोटरें में जजों की नियुक्ति के मामले में संशोधित मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिड्योर (एमओपी) की समीक्षा की है। बताया जाता है कि उसने एमओपी के क्लॉजों पर आपत्ति जताई है। कोलेजियम प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सरकार से एमओपी को संशोधित करने को कहा था। इसके बाद कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने मार्च में संशोधित एमओपी को मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर के पास भेजा। माना जाता है कि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने संशोधित एमओपी को देखने के बाद दो क्लॉजों पर आपत्ति जताई है। इनमें एक क्लॉज है कि नियुक्ति को देशहित में नहीं पाने पर सरकार कोलेजियम की सिफारिश को खारिज कर सकती है। एमओपी में कहा गया है कि एक बार खारिज होने के बाद सिफारिश दोबारा भेजे जाने के बावजूद सरकार इस पर पुनर्विचार को बाध्य नहीं है। यह क्लॉज मौजूदा व्यवस्था के विपरीत है। मौजूदा व्यवस्था में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठ न्यायाधीशों के कोलेजियम की सिफारिश दोबारा भेजे जाने पर सरकार उसे मानने के लिए बाध्य है। आपत्ति वाला दूसरा क्लॉज है, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोटरें में जजों की नियुक्ति या उन्नयन में केंद्र में अटॉर्नी जनरल और रायों में महाधिवक्ताओं की बात को शामिल करने अधिकार। इससे केंद्र और राय सरकारों को जजों के नाम तय करने का परोक्ष तौर पर अधिकार मिल जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, एमओपी का मसौदा अभी कोलेजियम के पास ही है, लेकिन सरकार को आपत्तियों से अवगत करा दिया गया है। उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश ने 24 अप्रैल को संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि कोलेजियम सरकार को सिफारिश भेजेगी। मसौदे का मूल सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है और इसमें परिवर्तन नहीं होगा।
3. भारत-नेपाल के रिश्ते फिर दांव पर:- भारत और नेपाल के रिश्ते फिर से इम्तहान के दौर से गुजर रहे हैं। नेपाल में राजनीतिक अहमियत हासिल करने के लिए जिस तरह से सरकार के भीतर घमासान मचा हुआ है, उससे भारत के साथ रिश्तों में तनाव की आशंका बढ़ गई है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत स्थित राजदूत दीप कुमार उपाध्याय को वापस बुलाते हुए भारत पर नेपाल के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने का परोक्ष आरोप लगाया है। साथ ही वामपंथी दलों की ओर से संविधान संशोधन के मसले को नए सिरे से भड़काने की भी कोशिश की जा रही है। भारत नेपाल में तेजी से बिगड़ते हालात से काफी चिंतित है। विदेश मंत्रलय के सूत्रों के मुताबिक, पड़ोसी देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ने पर वहां भारत विरोध को जोरों से हवा दी जाती है। ऐसा पहले भी हुआ है। नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय को वापस बुलाना भी इसी का हिस्सा है। यह भी अकारण नहीं है कि यूसीपीएन (माओवादी) ने संविधान संशोधन को फिर से मुद्दा बनाने की कोशिश की है। यह मुद्दा पहले ही भारत और नेपाल के रिश्तों की बड़ी परीक्षा ले चुका है। तीन-चार महीने की कूटनीतिक कोशिशों के बाद रिश्तों को पटरी पर लाया जा सका है। लेकिन यूसीपीएन (माओवादी) संविधान में उन बदलावों का विरोध कर रहा है, जिसका भारत समर्थन कर रहा है और शांति के लिए जरूरी बता रहा है। भारत के लिए चिंता की बात यह भी है कि प्रधानमंत्री ओली और यूसीपीएन (माओवादी) के नेता पुष्पकमल दहल प्रचंड दोनों भारत विरोधी छवि के लिए जाने जाते हैं। संविधान संशोधन पर जब मधेशी आंदोलन शुरू हुआ तो ओली ने भारत से पहले चीन जाने की धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि वह चीन से आवश्यक सामग्री हासिल करने की कोशिश करेंगे। इसी तरह से पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड हमेशा से भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए जाने जाते हैं। अभी नेपाल की राजनीतिक हालत यह है कि अगर ओली पद से हटाए जाते हैं, तो उनकी जगह प्रचंड प्रधानमंत्री बन सकते हैं। वैसे ओली के समर्थकों का कहना है कि प्रचंड भारत के समर्थन से ही सरकार बनाने में लगे हुए हैं, जिसको विदेश मंत्रलय के अधिकारी खारिज करते हैं। भारत के लिए ओली और प्रचंड में बहुत अंतर नहीं है। ऐसे में नेपाल को लेकर भारत की चिंता फिलहाल खत्म होती नहीं दिख रही।
4. मोबाइल वालेट से सस्ता, आसान होगा यूपीआई :- मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। फरवरी में एक साल पहले की तुलना में इसके जरिए लेन-देन तीन गुना हो गया। इसमें 212% ग्रोथ रही। देश के सभी बड़े बैंक अपनी-अपनी मोबाइल वाॅलेट सेवाएं दे रहे हैं। स्टेट बैंक का 'बडी', आईसीआईसीआई बैंक का 'पॉकेट्स', एचडीएफसी बैंक का 'चिल्लर'। गैर-बैंकिंग कंपनियों में पेटीएम यह सेवा दे रही है। लेकिन सेंट्रम ब्रोकिंग के मुताबिक जल्दी ही ये सब बेकार हो सकती हैं। महीने भर पहले नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन (एनपीसीआई) ने यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) लांच किया। इसके जरिए आरबीआई का मकसद इकोनॉमी में नकद का इस्तेमाल कम करना है। हमारे देश में जीडीपी के 18% के बराबर कैश है। इस लिहाज से हम कैश का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाले देशों में हैं। ब्राजील में यह सिर्फ 3.93%, मेक्सिको में 5.3% और दक्षिण अफ्रीका में 3.73% है।

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