भारत-ईरान-अफगानिस्तान के बीच चाबहार समझौते से पाकिस्तान के भीतर खलबली मच गई है। नौबत यहां तक आ गई कि पाकिस्तान में ईरानी राजदूत को कहना पड़ गया कि ग्वादर बंदरगाह का चाबहार बंदरगाहविरोधी नहीं है और भविष्य में इसमें पाकिस्तान और चीन के शामिल होने का रास्ता खुला हुआ है। मध्य एशिया में भारत का दबदबा बढ़ने की आशंका के साथ ही पाकिस्तान में सबसे बड़ी बेचैनी अफगानिस्तान की उस पर निर्भरता खत्म होने को लेकर है।
दरअसल पाकिस्तान ने ब्लूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के जरिये आर्थिक विकास के बड़े मंसूबे पाल रखे थे। चीन न सिर्फ इस बंदरगाह का विकास कर रहा है, बल्कि यहां तक पहुंचने के लिए सड़क भी बना रहा है। पाकिस्तान में इसे विकास के गलियारे के रूप में देखा जा रहा था। पाकिस्तान में इससे विकास की असीम संभावनाओं के द्वार खुलने के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन, चाबहार बंदरगाह के लेकर भारत के समझौते के बाद विकास का यह सपना टूटने लगा है। चाबहार बंदरगाह के रास्ते भारत न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि मध्य एशिया के अन्य देशों के साथ सीधे व्यापार कर सकता है। एक बार चाबहार बंदरगाह पर पहुंचने के बाद भारतीय माल रेल और सड़क मार्ग से मध्य एशिया में कहीं भी पहुंच सकता है। जो पाकिस्तान के बीच में होने के कारण संभव नहीं हो पा रहा था। 1भारत के लिए जो असीम संभावनाओं का दरवाजा है, वही पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फेरने वाला साबित हो सकता है। ग्वादर बंदरगाह के सिर्फ चीनी इस्तेमाल तक सीमित होने की आशंका है। क्योंकि अफगानिस्तान की मदद के बिना यहां से मध्य एशिया तक पहुंचना मुश्किल होगा। जबकि, चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान की पाकिस्तान पर निर्भरता पूरी तरह खत्म कर देगा। चारों तरफ जमीन से घिरे अफगानिस्तान को चाबहार बंदरगाह से समुद्री व्यापार से जुड़ने का रास्ता मिल जाएगा। इसके लिए अफगानिस्तान को पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ता था।
ईरान और अमेरिका के बीच कटु संबंधों को देखते हुए पाकिस्तान ने मान लिया था कि पिछले 13 सालों से लंबित चाबहार समझौता कभी सफल नहीं होगा। लेकिन भारत न सिर्फ यह समझौता करने में सफल रहा, बल्कि अमेरिका ने इस पर मुहर भी लगा दी है।
दरअसल पाकिस्तान ने ब्लूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के जरिये आर्थिक विकास के बड़े मंसूबे पाल रखे थे। चीन न सिर्फ इस बंदरगाह का विकास कर रहा है, बल्कि यहां तक पहुंचने के लिए सड़क भी बना रहा है। पाकिस्तान में इसे विकास के गलियारे के रूप में देखा जा रहा था। पाकिस्तान में इससे विकास की असीम संभावनाओं के द्वार खुलने के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन, चाबहार बंदरगाह के लेकर भारत के समझौते के बाद विकास का यह सपना टूटने लगा है। चाबहार बंदरगाह के रास्ते भारत न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि मध्य एशिया के अन्य देशों के साथ सीधे व्यापार कर सकता है। एक बार चाबहार बंदरगाह पर पहुंचने के बाद भारतीय माल रेल और सड़क मार्ग से मध्य एशिया में कहीं भी पहुंच सकता है। जो पाकिस्तान के बीच में होने के कारण संभव नहीं हो पा रहा था। 1भारत के लिए जो असीम संभावनाओं का दरवाजा है, वही पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फेरने वाला साबित हो सकता है। ग्वादर बंदरगाह के सिर्फ चीनी इस्तेमाल तक सीमित होने की आशंका है। क्योंकि अफगानिस्तान की मदद के बिना यहां से मध्य एशिया तक पहुंचना मुश्किल होगा। जबकि, चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान की पाकिस्तान पर निर्भरता पूरी तरह खत्म कर देगा। चारों तरफ जमीन से घिरे अफगानिस्तान को चाबहार बंदरगाह से समुद्री व्यापार से जुड़ने का रास्ता मिल जाएगा। इसके लिए अफगानिस्तान को पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ता था।
ईरान और अमेरिका के बीच कटु संबंधों को देखते हुए पाकिस्तान ने मान लिया था कि पिछले 13 सालों से लंबित चाबहार समझौता कभी सफल नहीं होगा। लेकिन भारत न सिर्फ यह समझौता करने में सफल रहा, बल्कि अमेरिका ने इस पर मुहर भी लगा दी है।
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