1.प्लेन हाईजैक निरोधी बिल लोस से भी पास:- लोकसभा ने विमान अपहरण की घटनाओं में दोषी लोगों को मौत की सजा के प्रावधान वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को सोमवार को पारित कर दिया। राज्यसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है। लोकसभा में र्चचा के बाद ‘‘यान-हरण निवारण विधेयक 2016’ को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इस विधेयक में विमानों के अपहरण आदि मामलों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौते को प्रभावी बनाने के प्रावधान किए गए हैं। इसके साथ ही ऐसी घटना में हवाई अड्डे पर मौजूद स्टाफ कर्मियों की मौत होने की स्थिति में भी दोषी को मृत्युदंड का प्रावधान विधेयक में किया गया है। पूर्व के विधेयक में केवल बंधक बनाए गए लोगों जैसे चालक दल के सदस्यों, यात्रियों और सुरक्षाकर्मियों की मौत होने की सूरत में ही दोषियों के लिए मौत के सजा का प्रावधान किया गया था। नागर विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू ने विधेयक पर र्चचा के जवाब में कहा कि विमानन क्षेत्र में सुरक्षा के लिहाज से विश्व में भारत की रैंकिंग अच्छी है। उन्होंने मौत की सजा के प्रावधान का कुछ सदस्यों द्वारा विरोध किए जाने पर कहा कि जिस व्यक्ति के मन में दूसरे के जीवन का कोई सम्मान नहीं है, उसके जीवन के सम्मान की चिंता करना समझ में नहीं आता।राजू ने कहा कि भारत इस मामले में अंतरराष्ट्रीय संधि का हस्ताक्षरकर्ता है और भारत को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के साथ खड़े होना चाहिए। उन्होंने अतीत में हुई विमान अपहरण की घटनाओं के संबंध में कहा कि इसके लिए इस सरकार या उस सरकार को दोष देना उचित नहीं है। भारत ने न केवल ऐसी घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से भी सीखा है। विमानन मंत्री ने साथ ही कहा कि हवाई अड्डों की सुरक्षा को अद्यतन करना एक सतत प्रक्रि या है और सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत में विमानन सुरक्षा कुल मिलाकर अच्छी है। मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी। विधेयक पर र्चचा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने देश के इतिहास में घटी विमान अपहरण की घटनाओं का उल्लेख किया और कंधार अपहरण की घटना के संबंध में कहा कि इस मामले में तत्कालीन राजग सरकार निपटने में विफल साबित हुई थी। उन्होंने विधेयक में दोषी को मौत की सजा के प्रावधान को अनावश्यक बताया। उन्होंने सभी हवाईअड्डों पर स्क्रीनिंग पुख्ता करने की भी मांग की।
2. उत्तर कोरिया अपनी परमाणु क्षमता बढ़ाएगा, किम जोंग उन ने दी मंजूरी:- उत्तरकोरिया संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के विपरीत परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाएगा। सोमवार को सत्तारूढ़ वर्कर्स पार्टी ने शासक किम जोंग उन की परमाणु हथियारों का भंडार बढ़ाने की नीति को मंजूरी दे दी। पार्टी की कांग्रेस (सम्मेलन) करीब 35 साल में पहली बार हुई है। इसमें 33 वर्षीय किम जोंग उन को पार्टी चेयरमैन चुना गया। वे अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के शासक हैं। इस मौके पर उन ने कहा, उत्तर कोरिया अपने रक्षात्मक परमाणु अस्त्रों के विकास के साथ आर्थिक तथा सामाजिक विकास पर भी ध्यान देगा। उधर, दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया के परमाणु शक्ति वाले देश के दावे की निंदा की है। कहा है कि जब तक वह परमाणु अस्त्रों की महत्वाकांक्षा को छोड़ नहीं देता, उसके विरुद्ध दबाव बना रहेगा। पश्चिमी विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर कोरिया के पास 40 किलो प्लूटोनियम है। इससे वह आठ से 12 परमाणु अस्त्र बना सकता है।
3. आर्थिक मदद पाने के लिए ग्रीस ने चुना कठोर रास्ता:- आर्थिक तंगी से जूझ रहे ग्रीस ने कठोर सुधारों को लागू करने का फैसला किया है। संसद ने दो दिनों की बहस के बाद रविवार को पेंशन और करों में सुधार के विवादित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इस दौरान सदन के बाहर प्रस्ताव के विरोध में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिला। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नए पैकेज में पेंशन सुधार और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर सुधारों को शामिल किया गया है। इससे सरकार को खर्च में कटौती कर 6 अरब डॉलर जुटाने में मदद मिलेगी। प्रस्ताव का विरोध कर रहे विपक्षी दलों और कामगार संगठनों का कहना है कि देश खर्चो में और कटौती बर्दाश्त नहीं कर सकता है। वहीं, प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने कहा है कि इन सुधारों का मकसद ‘दीर्घकालिक पेंशन प्रणाली’ है। उन्होंने कहा कि 20 लाख से अधिक पेंशनभोगियों के पेंशन से एक यूरो की भी कटौती नहीं की जाएगी। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय कर्ज की शर्तो के तहत ग्रीस पर इन फैसलों को लागू करने के लिए भारी दबाव था। कठोर सुधार का भरोसा दिलाने पर ही उसे बीते साल 86 अरब यूरो (करीब 6327 अरब रुपये) का नया कर्ज देने के लिए यूरोपीय सहयोगी राजी हुए थे। यूरोजोन के वित्त मंत्रियों की इस मसले पर आपात बैठक भी होनी है। आशंका है कि जल्द समझौता नहीं होने पर ग्रीस जुलाई में 3.5 अरब यूरो की कर्ज की किस्त नहीं चुका पाएगा।
4. तेल आपूर्ति में भारत का पत्ता काटने में जुटा नेपाल, चीन से बढ़ा रहा नजदीकी:- नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का भारत विरोध अब कोई छिपी हुई बात नहीं रह गई है। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की भारत यात्र रद करना और नई दिल्ली से अपने राजदूत दीप कुमार उपाध्याय को बुलाना उनकी भारत विरोधी नीति का एक हिस्सा भर है। ओली भारत के खिलाफ चीन कार्ड खेलने में भी कोई कोताही नहीं कर रहे। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, मार्च 2016 में ओली की चीन यात्र के दौरान नेपाल और चीन में जो द्विपक्षीय समझौते हुए थे, उनके अमल में मौजूदा नेपाल सरकार काफी तेजी दिखा रही है। इस दौरान संयुक्त तौर पर तेल खोज का जो समझौता हुआ था उसे अमल में भी ला दिया गया है। रविवार को नेपाल के पश्चिम में स्थित दाइलेख जिले में चीन के विशेषज्ञों ने तेल, गैस व अन्य खनिजों की खोज शुरू भी कर दी। नेपाली विशेषज्ञों का मानना है कि इस जिले में प्राकृतिक गैस का बड़ा भंडार है जिसे निकालने के बाद आयातित पेट्रोलियम उत्पादों पर नेपाल की निर्भरता काफी कम हो जाएगी। नेपाल और चीन के विशेषज्ञ तीन वर्षो तक यह खोज कार्य करेंगे। इस खोज कार्य में देश के बाकी हिस्सों को भी धीरे-धीरे जोड़ा जाएगा। यही नहीं चीन से तेल व गैस की आपूर्ति बढ़ाने को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। ओली की यात्र के दौरान चीन ने नेपाल में तेल भंडारण के लिए ढांचागत व्यवस्था स्थापित करने का वादा किया था। सनद रहे कि पिछले दिनों जब संविधान संशोधन पर नेपाल में मधेशी आंदोलन शुरू हुआ तो वहां भारत से होने वाली तेल व गैस की आपूर्ति काफी बाधित हो गई थी। तब ओली सरकार ने धमकी दी थी कि वह तेल व गैस चीन से ले लेगा। इसके बाद चीन से बात की गई और कुछ मात्र में पेट्रोल व डीजल की आपूर्ति हो भी गई। सूत्रों के मुताबिक, चीन अब नेपाल में बड़ी भंडारण क्षमता स्थापित करने इछुक है। नेपाल इस समय अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए एक तरह से सौ फीसद भारत पर आश्रित रहता है। पीएम ओली और नेपाल के कुछ अन्य नेता कई बार भारत की बजाये चीन से ऊर्जा जरूरतें पूरा करने पर जोर देते रहे हैं। नेपाल में पेट्रोल-डीजल की भंडारण व्यवस्था करना इस रणनीति का ही हिस्सा है।
5. मेक इन इंडिया‘‘ पर सीजेआई के केंद्र से तीखे सवाल:- केन्द्र ने कहा कि उत्सर्जन के नियम विधायिका से पारित हैं लिहाजा सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप न करेसुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, कहा कि बढ़ते प्रदूषण पर केन्द्र सजग नहीं
प्रदूषण के मसले पर केंद्र सरकार को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की खरी-खोटी सुनने को मिली। केन्द्र सरकार ने जैसे ही मेक इंन इंडिया का नाम लिया और कहा कि सरकार दुनियाभर के उद्यमियों को उत्पादन के लिए भारत आमंत्रित कर रही है और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप उचित नहीं है। केन्द्र सरकार के रुख पर सुप्रीम कोर्ट ने सवालों की झड़ी लगा दी। अदालत का कहना था कि प्रदूषण को कम करने पर बने कानून को लागू नहीं किया गया है। इसी कारण वायुमंडल दूषित हो रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि डीजल कैब पर प्रतिबंध को लेकर वह अपने आदेश में बदलाव के लिए तैयार है, लेकिन सरकार बताए कि वह डीजल गाड़ियों को चरणबद्ध तरीके से किस तरह से हटाएगी। इस मुद्दे पर मंगलवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। चीफ जस्टिस तीरथ सिंह ठाकुर, जस्टिस एके सीकरी अर आर भानुमति की बेंच के समक्ष सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि डीजल गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन अर कैब पर प्रतिबंध से केन्द्र की बहुचर्चित योजना ‘‘मेक इंन इंडिया’ पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। सरकार विर्निमाण और उत्पादन के लिए दुनियाभर के उद्यमियों को भारत आने का न्योता दे रही है। सॉलिसिटर जनरल ने यहां तक कहा कि प्रदूषण के लिए सिर्फ डीजल गाड़ियां जिम्मेदार नहीं है। पेट्रोल और सीएनजी की गाड़ियां भी हवा को दूषित करती हैं। उन्होंने रासायनिक आकंड़े देकर अपने तर्क को जायज ठहराने का भी प्रयास किया। रंजीत कुमार ने यह भी कहा कि गैस उत्सर्जन के नियम विधायिका ने तय किए हैं। समय-समय पर इनमें बदलाव होता रहा है। इसलिए अदालत इसमें हस्तक्षेप न करे। सरकार की दलील पर बेंच ने केन्द्र से तीखे सवाल किए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीजल गाड़ियों का चक्का जाम करने का मतलब यह नहीं कि अदालत प्रदूषण के अन्य कारकों को नहीं जानती लेकिन सरकार यह बताए कि उसने लगातार बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए क्या कदम उठाए। बेंच ने कहा कि केन्द्र सरकार प्रदूषण के प्रति कितनी चिंतित है अर इसे कम करने के लिए उसने अभी तक क्या किया, यह भी पता लगना चाहिए। सरकार कानून अर नियमों को कड़ाई से लागू नहीं करती, इसी कारण हवा जहरीली होती जा रही है। दसअसल, कानूनों को सख्ती से लागू न करने के कारण ही यह हालात हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब व उसके आसपास के राज्यों में खेतों में पुआल जलाया जा रहा है। इससे वायुमंडल जहरीला हो रहा है। सरकार ने दिसंबर 2015 से पूर्व इस पर क्या कदम उठाए। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस का पद संभालते ही जस्टिस ठाकुर ने तीन दिसंबर को पुआल जलाने का मसला उठाया था। मुख्यमंत्री अर मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में पिछले माह प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मेक इन इंडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा सीजेआई ने कहा था कि न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने से विदेशी निवेशकों को ही मदद मिलेगी और मेक इन इंडिया कार्यक्रम सफल होगा अन्यथा इसमें दिक्कत आएंगी।
प्रदूषण के मसले पर केंद्र सरकार को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की खरी-खोटी सुनने को मिली। केन्द्र सरकार ने जैसे ही मेक इंन इंडिया का नाम लिया और कहा कि सरकार दुनियाभर के उद्यमियों को उत्पादन के लिए भारत आमंत्रित कर रही है और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप उचित नहीं है। केन्द्र सरकार के रुख पर सुप्रीम कोर्ट ने सवालों की झड़ी लगा दी। अदालत का कहना था कि प्रदूषण को कम करने पर बने कानून को लागू नहीं किया गया है। इसी कारण वायुमंडल दूषित हो रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि डीजल कैब पर प्रतिबंध को लेकर वह अपने आदेश में बदलाव के लिए तैयार है, लेकिन सरकार बताए कि वह डीजल गाड़ियों को चरणबद्ध तरीके से किस तरह से हटाएगी। इस मुद्दे पर मंगलवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। चीफ जस्टिस तीरथ सिंह ठाकुर, जस्टिस एके सीकरी अर आर भानुमति की बेंच के समक्ष सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि डीजल गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन अर कैब पर प्रतिबंध से केन्द्र की बहुचर्चित योजना ‘‘मेक इंन इंडिया’ पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। सरकार विर्निमाण और उत्पादन के लिए दुनियाभर के उद्यमियों को भारत आने का न्योता दे रही है। सॉलिसिटर जनरल ने यहां तक कहा कि प्रदूषण के लिए सिर्फ डीजल गाड़ियां जिम्मेदार नहीं है। पेट्रोल और सीएनजी की गाड़ियां भी हवा को दूषित करती हैं। उन्होंने रासायनिक आकंड़े देकर अपने तर्क को जायज ठहराने का भी प्रयास किया। रंजीत कुमार ने यह भी कहा कि गैस उत्सर्जन के नियम विधायिका ने तय किए हैं। समय-समय पर इनमें बदलाव होता रहा है। इसलिए अदालत इसमें हस्तक्षेप न करे। सरकार की दलील पर बेंच ने केन्द्र से तीखे सवाल किए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीजल गाड़ियों का चक्का जाम करने का मतलब यह नहीं कि अदालत प्रदूषण के अन्य कारकों को नहीं जानती लेकिन सरकार यह बताए कि उसने लगातार बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए क्या कदम उठाए। बेंच ने कहा कि केन्द्र सरकार प्रदूषण के प्रति कितनी चिंतित है अर इसे कम करने के लिए उसने अभी तक क्या किया, यह भी पता लगना चाहिए। सरकार कानून अर नियमों को कड़ाई से लागू नहीं करती, इसी कारण हवा जहरीली होती जा रही है। दसअसल, कानूनों को सख्ती से लागू न करने के कारण ही यह हालात हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब व उसके आसपास के राज्यों में खेतों में पुआल जलाया जा रहा है। इससे वायुमंडल जहरीला हो रहा है। सरकार ने दिसंबर 2015 से पूर्व इस पर क्या कदम उठाए। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस का पद संभालते ही जस्टिस ठाकुर ने तीन दिसंबर को पुआल जलाने का मसला उठाया था। मुख्यमंत्री अर मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में पिछले माह प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मेक इन इंडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा सीजेआई ने कहा था कि न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने से विदेशी निवेशकों को ही मदद मिलेगी और मेक इन इंडिया कार्यक्रम सफल होगा अन्यथा इसमें दिक्कत आएंगी।
6. डीजल वाहनों पर पर्यावरण शुल्क लगने के संकेत:- देश भर में डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मची अफरातफरी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने थोड़ी नरमी दिखाने के संकेत दिए हैं। लेकिन कोर्ट का आगे का रुख इस तथ्य से तय होगा कि दिल्ली सरकार व प्रदूषण रोकने वाले अन्य प्राधिकरण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में डीजल वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का ठोस रोडमैप तैयार कर पाते हैं या नहीं। इसके साथ ही कोर्ट ने हर तरह के डीजल वाहनों पर अलग से पर्यावरण शुल्क लगाने का भी रास्ता खोल दिया है। देश की कार कंपनियों ने कहा है कि अगर पर्यावरण शुल्क की दर यादा हुई तो भारत की निवेश के अनुकूल माहौल वाली छवि को भारी नुकसान पहुंचेगा। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एनसीआर में ऑल इंडिया परमिट वाले डीजल वाहनों पर प्रतिबंध से जुड़े मामले की सुनवाई हुई। इस प्रतिबंध से परेशान बीपीओ व सॉफ्टवेयर कंपनियों के संगठन नासकॉम की तरह से यह दलील दी गई कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में काम करने वाले ढाई लाख लोगों के रोजगार के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है। इससे महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं उठी हैं क्योंकि कंपनियों के लिए महिला कर्मचारियों को घर से ऑफिस लाने व पहुंचाने की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। इस काम में 14 हजार डीजल टैक्सियां लगी है। नासकॉम ने चरणबद्ध तरीके से इन्हें हटाने की बात कही है। इस पर कोर्ट ने यहां थोड़ी नरमी दिखाते हए कहा कि ‘‘हम मानते हैं कि डीजल वाहनों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। हम सही भी हो सकते हैं और गलत भी। हम इस फैसले पर पुनर्विचार करने को तैयार हैं।’’ इसे स्पष्ट तौर पर कोई रियायत नहीं माना जाएगा लेकिन स्थिति मंगलवार को सुनवाई के दौरान साफ हो सकती है। केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट से एनसीआर में डीजल वाहनों पर लगे प्रतिबंध को हटाने की अपील की गई। सॉलीसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि सिर्फ डीजल वाहनों से दिल्ली में प्रदूषण नहीं फैल रहा। साथ ही यह प्रतिबंध सरकार की मेक इन इंडिया कार्यक्रम को भी नुकसान पहुंच सकता है। जो कंपनियां इस कार्यक्रम के तहत निवेश कर रही हैं और तमाम नियमों का पालन कर रही हैं कोर्ट उन पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुआई वाली बेंच इससे खास प्रभावित नहीं दिखी। उल्टा केंद्र को वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर रोक लगाने में कड़ा रवैया नहीं अपनाने के लिए फटकार भी लगा दी। इसी क्रम में कोर्ट ने टिप्पणी की कि, हर तरह के (बड़े व छोटे) डीजल वाहनों पर सांकेतिक पर्यावरण शुल्क लगाया जाना चाहिए। यह डीजल वाहन के आकार व इंजन की क्षमता के आधार पर तय हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि डीजल वाहन खरीदने वालों को यह पता होना चाहिए कि वह प्रदूषण फैलाने वाला वाहन खरीद रहे हैं। ऑटोमोबाइल कंपनियों के संगठन सियाम ने हर तरह के डीजल वाहन पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की संभावना पर कड़ी प्रतिक्रिया जारी करते हुए कहा है कि इससे देश में निवेश के माहौल पर काफी बुरा असर पड़ेगा। भारत में कोई निवेश नहीं करेगा। अमेरिका, कोरिया, जापान की कार कंपनियों ने यहां निवेश किया है और यह फैसला इन देशों से आने वाले निवेश पर असर डालेगा। कोर्ट में भी सियाम ने डीजल प्रतिबंध के बदले दिल्ली से ताप बिजली घर को 300 किलोमीटर दूर कहीं स्थानांतरित करने का सुझाव दिया।
7. लंबित आयकर रिफंड का रास्ता साफ:- अगर लंबे समय से आयकर रिफंड नहीं मिलने से परेशान हैं, तो आपके लिए खुशखबरी है। अब रिफंड मिलने में यादा देर नहीं लगेगी, क्योंकि आयकर विभाग को लंबित रिटर्न का निपटारा 31 अगस्त तक करना होगा। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने यह एलान किया है। सीबीडीटी की ओर से तय की गई समयसीमा के दायरे में छह साल तक के लंबित आयकर रिटर्न (आइटीआर) आएंगे। सीबीडीटी ने इस बारे में दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं। निपटान के लिए 31 अगस्त की समयसीमा तय करके करदाताओं को अंतिम मौका मुहैया कराया गया है। इसके मुताबिक, आकलन वर्ष 2009-10 से 2014-15 तक के आइटीआर इसके दायरे में आएंगे। कई मामलों में आइटीआर-5 के पावती फॉर्म विभाग के बेंगलुरु स्थित कलेक्शन सेंटर (सीपीसी) में नहीं भेजने की वजह से रिटर्न अटके हुए हैं। इस कारण रिफंड भी जारी नहीं किया गया है। तमाम करदाताओं की ओर से शिकायतें मिलने के बाद आयकर विभाग के शीर्ष नीति निर्माता निकाय सीबीडीटी ने यह कदम उठाया है। विभाग के मुताबिक, वे करदाता जिनके रिफंड और टैक्स से जुड़े मुद्दे उक्त छह आकलन वर्षो के लिए बकाया हैं, उन्हें आधिकारिक पोर्टल पर आयकर रिटर्न तत्काल प्रमाणित करना चाहिए। इसे आधार या बैंक खाते पर आधारित इलेक्ट्रानिक वेरिफिकेशन कोड (ईवीसी) सुविधा का उपयोग करके तुरंत प्रमाणित किया जा सकता है। अगर ऑनलाइन ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो आइटीआर-5 की विधिवत हस्ताक्षरित कॉपी विभाग के बेंगलुरु स्थित सीपीसी में स्पीडपोस्ट से भेजनी चाहिए। यह सारा काम 31 अगस्त से पहले करना होगा। इस तारीख तक मिलने वाले सभी केस को नवंबर तक प्रोसेस कर दिया जाएगा। साथ ही रिफंड के साथ ही लंबित ब्याज का भुगतान भी करदाता के बैंक खाते में कर दिया जाएगा। खास बात यह है कि सीबीडीटी के ताजा आदेश के चलते अब वे आइटीआर-5 भी वैध मान लिए जाएंगे, जिन्हें पहले देरी से जमा करने की वजह से अमान्य करार दे दिया गया था। इससे अपने लंबित ऐसे आइटीआर को नियमित करने का आखिरी मौका मिल गया है। करदाताओं से कहा गया है कि वे विभाग की वेबसाइट पर अपने लंबित रिटर्न का स्टेटस चेक कर लें। वे इस वेबसाइट में अपना पैन नंबर और आकलन वर्ष का इस्तेमाल करके लॉग इन कर सकते हैं। विभाग ने आइटीआर दाखिल करने के सिस्टम को पेपरलेस बनाने के लिए बीते साल विभाग ने ई-वैलिडेशन की सुविधा शुरू की थी। इसकी तहत आधार और बैंक खाता नंबर का उपयोग करके आइटीआर को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से प्रमाणित किया जा सकता है।
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