1.ब्राजील की पहली महिला राष्ट्रपति डिल्मा रोसेफ का पद छिना :- ब्राजील की पहली महिला राष्ट्रपति डिल्मा रोसेफ का पद छिन गया है। सीनेट ने गुरुवार को उनके खिलाफ महाभियोग चलाने और छह महीने के लिए शीर्ष पद से निलंबित करने का प्रस्ताव बहुमत से पास कर दिया। इसके कुछ घंटों के भीतर ही उपराष्ट्रपति मिशेल टेमर देश के अंतरिम राष्ट्रपति बन गए। रोसेफ की विदाई के साथ ही सबसे बड़े लैतिन अमेरिकी देश में बीते 13 साल से चल रहे वामपंथी वर्कर्स पार्टी का शासन भी समाप्त हो गया है।बजट संबंधी कानून तोड़ने के आरोप में रोसेफ को निलंबित करने के प्रस्ताव पर सीनेट में करीब 22 घंटे तक बहस चली। इस दौरान सदन के बाहर रोसेफ समर्थकों और पुलिस के बीच भिड़ंत भी हो गई। 22 के मुकाबले 55 मतों से सीनेट ने प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। हालांकि इसके लिए 81 सदस्यीय सदन में साधारण बहुमत की ही जरूरत थी। लेकिन, रोसेफ को पद से हटाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। सीनेट की मंजूरी मिलने के बाद महाभियोग के मामले की सुनवाई जल्द शुरू होने की उम्मीद है। 180 दिनों के भीतर यह प्रक्रिया पूरी करनी होगी। तब तक टेमर देश की बागडोर संभालेंगे। वे जल्द ही अपने कैबिनेट सहयोगियों के नाम का एलान कर सकते हैं। रोसेफ ने इसे तख्तापलट जैसे बताते हुए कहा कि वे दृढ़ता से मुकदमे का सामना करेंगी। गौरतलब है कि रोसेफ पर भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं। लंबे समय से देशभर में उनके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। तीन महीने से भी कम समय में ब्राजील में ओलंपिक भी होना है। ऐसे में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और आर्थिक गड़बड़ियों से निपटने की बड़ी चुनौती टेमर के सामने है।
2. ढाका को मिला भारत का साथ:- दक्षिण एशिया में कूटनीतिक सरगर्मी चरम पर है। यह सरगर्मी इसलिए है कि यहां नए समीकरण बन रहे हैं। पुराने दोस्तों के बीच तनाव है तो यहां दोस्ती की नई इबारत भी लिखनी शुरू हो गई है। जमात-ए-इस्लामी के नेताओं को युद्ध अपराध में ढाका में फांसी चढ़ाने को लेकर बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा है। ऐसे समय में भारत के विदेश सचिव एस. जयशंकर ने ढाका पहुंच कर बदले माहौल और समीकरण का संकेत दिया है। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ बांग्लादेश की लड़ाई और वहां युद्ध अपराध के चल रहे मामले में भी उसे पूरा समर्थन दिया है। विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने बताया, ‘विदेश सचिव जयशंकर ने बुधवार को पीएम शेख हसीना और विदेश मंत्री एएच महमूद अली से मुलाकात की। आज उनकी मुलाकात विदेश सचिव एम. शहादुल हक से हुई। इस दौरे में भारत ने कट्टरवाद और आतंकवाद के खिलाफ बांग्लादेश में की जा रही कार्रवाई का जोरदार समर्थन किया है।’ बांग्लादेश में युद्ध अपराध को लेकर चल रहे मामले में भी दिल्ली ने ढाका का जोरदार समर्थन किया। स्वरूप के मुताबिक वैसे तो यह मामला बांग्लादेश का आंतरिक है लेकिन उसे वहां स्थानीय स्तर पर जबरदस्त समर्थन हासिल है। भारत भी वर्ष 1971 के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान युद्ध अपराध के दोषियों के मामले में न्याय का पक्षधर है। यह बैठक इस बात का प्रमाण है कि दक्षिण एशिया में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते हाल के वर्षो में एक आदर्श पड़ोसी देश के तौर पर विकसित हुए हैं। जुलाई, 2016 में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक है जबकि पीएम शेख हसीना भी जल्द ही भारत के दौरे पर आने वाली हैं।वैसे भारत ने इस बैठक को सामान्य द्विपक्षीय दौरा बताया लेकिन जिस समय यह दौरा हुआ वह काफी दिलचस्प है। दो दिन पहले ही बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के शीर्ष नेता अमीर मोतीउर निजामी को फांसी देने पर पाकिस्तान ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। बांग्लादेश में हाल के महीनों में जमात के कई नेताओं को वर्ष 1971 में पाकिस्तानी सेना के साथ मिल कर स्थानीय नागरिकों की हत्या, लूटमार, बलात्कार करने का दोषी पाने पर फांसी दी गई है। पाकिस्तान की कड़ी प्रतिक्रिया को बांग्लादेश ने यह कहते हुए खारिज किया कि उसके अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप किया जा रहा है। दूसरी तरफ भारत इन कट्टरपंथी नेताओं के खात्मे से खुश है क्योंकि 90 के दशक में इन्होंने बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने, पूवरेत्तर के आतंकी संगठनों को प्रश्रय देने और पाक की खुफिया एजेंसी आइएसआइ को पैर जमाने में पूरी मदद की थी। पीएम नरेंद्र मोदी की जून, 2015 की ढाका यात्र और जमीन हस्तांतरण संबंधी समझौते को लागू करने से भी दोनों देशों के बीच माहौल को बेहतर बनाने में काफी मदद मिली है।विदेश मंत्रलय के अधिकारी बताते भी हैं कि भारत और बांग्लादेश न सिर्फ दक्षिण एशिया में बल्कि पूरे एशिया में एक आदर्श पड़ोसी देश की छवि पेश कर रहे हैं। हम एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने वाली नीतियों व मुद्दों की तुरंत समीक्षा कर रहे हैं और लंबी अवधि के आर्थिक सहयोग की नींव रख रहे हैं। भारतीय कंपनियां बांग्लादेश में विशेष आर्थिक क्षेत्र भी लगाने को तैयार हैं। इस बारे में दोनों देशों की सरकारों के बीच बात हो रही है।
3. संयुक्त राष्ट्र में बोला भारत, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी धर्म की विरोध में नहीं:- भारत ने कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को किसी धर्म विशेष के विरोध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए आतंकवाद रूपी सबसे बड़े खतरे से लड़ने के लिए दुनिया के देशों को एकजुट हो जाना चाहिए। यह बात संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने सुरक्षा परिषद की एक खुली बहस में कही है। अकबरुद्दीन ने कहा, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी धर्म के खिलाफ नहीं बल्कि अमानवीय ताकतों के विरुद्ध मानवता की लड़ाई है। सही धार्मिक मूल्यों को लेकर हमें इस लड़ाई पर विजय प्राप्त करनी है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद से लड़ाई एक लंबी प्रक्रिया है। इस पर लगातार कई क्षेत्रों में काम किए जाने की जरूरत है। यह दुनिया की शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। भारतीय राजनयिक ने कहा, आतंकी संगठनों की कट्टरपंथी विचारधारा ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। इसकी काट के लिए हमें उतनी ही स्पष्टता से कट्टरपन के नुकसान को बताना चाहिए। बताना चाहिए कि किस तरह कट्टरपंथी बाकी समाज से कटता चला जाता है और अंतत: हजारों-लाखों साल पहले की जीवनशैली में पहुंच जाता है।
4. भारत-मॉरीशस में सहकारिता पर करार:- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को भारत और मॉरीशस की सरकारों के बीच एक समझौते को मंजूरी दे दी। इस समझौते के तहत सहकारिता विकास और उससे जुड़े क्षेत्रों में दोनों के बीच सहयोग बढ़ाया जाएगा। यह प्रस्ताव कृषि मंत्रलय ने रखा था। इस प्रस्ताव के अनुसार दोनों देशों के बीच सहयोगी गतिविधियां पहले पांच साल तक चलेंगी। इसके बाद यह समझौता पांच साल के लिए और बढ़ जाएगा। समझौते के अनुसार दोनों देशों में लघु और मध्यम अवधि के कार्यक्रम चलाए जाएंगे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में स्टॉक मार्केट रेगुलेटर सेबी और अबू धाबी की फाइनेंशियल सर्विसेज रेगुलेटरी अथॉरिटी के बीच एक अन्य समझौते को मंजूरी दे दी गई। इसके तहत दोनों नियामक आपसी सहयोग करेंगे और तकनीकी मदद देंगे।
5. पंचवर्षीय योजनाएं होंगी सात साल की:- योजना आयोग को बंद करने के बाद मोदी सरकार नेहरू युग की एक और व्यवस्था को खत्म करने जा रही है। केंद्र सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं को समाप्त करने का फैसला किया है। अब इनकी जगह नरेंद्र मोदी की ‘सप्तवर्षीय’ योजना चलेगी। वित्त वर्ष 2017-18 से इसे लागू किया जाएगा और यह ‘राष्ट्रीय विकास एजेंडा’ का आधार बनेगी। सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12वीं पंचवर्षीय योजनाओं के बाद मौजूदा व्यवस्था खत्म करने और इसकी जगह ‘राष्ट्रीय विकास एजेंडा’ के रूप में नई व्यवस्था शुरू करने को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री ने ‘राष्ट्रीय विकास एजेंडा’ तैयार करने की जिम्मेदारी नीति आयोग को सौंपी है। 12वीं पंचवर्षीय योजना सिर्फ 31 मार्च 2017 तक है।उल्लेखनीय है कि पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में की थी। उन्होंने 1950 में योजना आयोग की स्थापना कर उसे पंचवर्षीय योजनाएं तैयार करने का जिम्मा सौंपा था। मोदी सरकार योजना आयोग को पहले ही खत्म कर चुकी है। इससे पहले 15वीं लोकसभा के दौरान वित्त मामलों संबंधी संसद की स्थायी समिति भी पंचवर्षीय योजनाओं की व्यवस्था को खत्म करने की सिफारिश कर चुकी है।
• 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें 2015-16 से लागू हो चुकी हैं और ये वित्त वर्ष 2019-20 तक लागू रहेंगी।
• ऐसे में इस अवधि के बाद केंद्र और रायों के पास धन आवंटन करने के बारे में कोई निश्चित अनुमान नहीं होगा।
• 15 वर्षीय दीर्घकालिक विजन सप्तवर्षीय योजनाएं शुरू करने का फैसला किया गया है, ताकि हर तीन साल पर उसका मूल्यांकन किया जा सके।
• पंचवर्षीय योजनाओं की समीक्षा ढाई साल पर तय थी, लेकिन इसमें कई वर्ष लग जाते थे।
दीर्घकालिक लक्ष्य पर जोर
• नीति आयोग 15 साल का दीर्घकालिक विजन तैयार करेगा। इसमें सामाजिक लक्ष्य तथा सतत विकास के लक्ष्य शामिल होंगे।
• इस दीर्घकालिक विजन को धरातल पर उतारने के लिए सात वर्ष की योजना तैयार करने का फैसला लिया गया है।
• सप्तवर्षीय योजनाओं की शुरुआत वित्त वर्ष 2017-18 से होगी। तीन वर्ष बाद इनकी मध्यावधि समीक्षा की जाएगी।
• सप्तवर्षीय योजनाओं में रक्षा और आंतरिक सुरक्षा जैसे अति संवेदनशील विषय भी शामिल होंगे।
• पंचवर्षीय योजनाएं सिर्फ सामाजिक और ढांचागत क्षेत्र के विकास तक ही सीमित थीं। रक्षा क्षेत्र इनके दायरे से बाहर था।
इसलिए लिया फैसला
• केंद्र ने अगली पंचवर्षीय योजना नहीं बनाने का फैसला इसलिए किया है, क्योंकि इसकी अवधि 14वें वित्त आयोग की अवधि से भिन्न है।• 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें 2015-16 से लागू हो चुकी हैं और ये वित्त वर्ष 2019-20 तक लागू रहेंगी।
• ऐसे में इस अवधि के बाद केंद्र और रायों के पास धन आवंटन करने के बारे में कोई निश्चित अनुमान नहीं होगा।
• 15 वर्षीय दीर्घकालिक विजन सप्तवर्षीय योजनाएं शुरू करने का फैसला किया गया है, ताकि हर तीन साल पर उसका मूल्यांकन किया जा सके।
• पंचवर्षीय योजनाओं की समीक्षा ढाई साल पर तय थी, लेकिन इसमें कई वर्ष लग जाते थे।
दीर्घकालिक लक्ष्य पर जोर
• नीति आयोग 15 साल का दीर्घकालिक विजन तैयार करेगा। इसमें सामाजिक लक्ष्य तथा सतत विकास के लक्ष्य शामिल होंगे।
• इस दीर्घकालिक विजन को धरातल पर उतारने के लिए सात वर्ष की योजना तैयार करने का फैसला लिया गया है।
• सप्तवर्षीय योजनाओं की शुरुआत वित्त वर्ष 2017-18 से होगी। तीन वर्ष बाद इनकी मध्यावधि समीक्षा की जाएगी।
• सप्तवर्षीय योजनाओं में रक्षा और आंतरिक सुरक्षा जैसे अति संवेदनशील विषय भी शामिल होंगे।
• पंचवर्षीय योजनाएं सिर्फ सामाजिक और ढांचागत क्षेत्र के विकास तक ही सीमित थीं। रक्षा क्षेत्र इनके दायरे से बाहर था।
6. बैंक्रप्सी पर नया कानून सुधारेगा भारत की रैंक:- दिवालियेपन पर बहुप्रतीक्षित कानून संसद से पारित होने के बाद कारोबार सुगम बनाने की कसौटी पर विश्व में भारत की स्थिति बेहतर होने के आसार हैं। माना जा रहा है कि यह महत्वपूर्ण कानून बनने के बाद भारत विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में कई पायदान ऊपर चढ़ सकता है। फिलहाल इस रैंकिंग में भारत का स्थान 130वां है। इस मामले में पीछे होने की वजह यह है कि देश में अब तक दिवालियेपन (ब्रैंक्रप्सी) पर कोई समग्र और आधुनिक कानून नहीं था। सरकार, उद्योग जगत और वित्तीय क्षेत्र के विशेषज्ञ संसद से ब्रैंक्रप्सी बिल पारित होने को बड़ा आर्थिक सुधार करार दे रहे हैं।सूत्रों ने कहा कि विश्व बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत के पिछड़ने की एक बड़ी वजह दिवालियेपन के मुद्दों के समाधान की जटिल प्रक्रिया थी। विश्व बैंक की 2016 की सूची की ओवरऑल रैंकिंग 130वीं होने के बावजूद दिवालियेपन के समाधान के मामले में देश का नंबर 136वां था। बीते वर्षो में इसमें कोई सुधार नहीं आ रहा था। विश्व बैंक जून से लेकर अगले वर्ष मई तक किसी भी देश में कारोबार की प्रक्रिया सरल बनाने के उपायों का आकलन करने के बाद यह रैंक तैयार करता है। नया कानून बनने के बाद देश में कंपनियों के दिवालियेपन से जुड़े मामलों के हल में तेजी आने की संभावना है। वित्त मंत्रलय का भी कहना है कि लोकसभा से पांच मई तथा रायसभा से 11 मई को पारित इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 समग्र व सुनियोजित सुधार है। इसे ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि भारत की गिनती अब उन देशों में होगी, जहां दिवालियेपन के समाधान की व्यवस्था बेहद सरल है। इससे पूर्व दिवालियेपन के मुद्दे के समाधान को ‘रिकवरी ऑफ डेट ड्यू टू बैंक्स एंड फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस एक्ट 1993’, ‘सरफेसी कानून 2002’ और टाउन इनसॉल्वेंसी एक्ट 1909 और प्रॉवेंशियल इनसॉल्वेंसी एक्ट 1920 जैसे कानून प्रचलन में थे।
7. रास की 57 सीटों के चुनाव 11 जून को:- राज्यसभा की 57 सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव 11 जून को कराए जाएंगे। इसमें शराब व्यवसायी विजय माल्या द्वारा खाली की गई एक सीट भी शामिल है। चुनाव आयोग ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।पंद्रह राज्यों से 55 सदस्यों का कार्यकाल जून और अगस्त के बीच पूरा हो रहा है। राजस्थान और कर्नाटक से एक-एक सीट क्रमश: आनंद शर्मा (कांग्रेस) और विजय माल्या (निर्दलीय) द्वारा खाली की गई है और इनके लिए भी चुनाव कराए जाएंगे। इन कुल 57 सीटों में से 14-14 सीटें भाजपा और कांग्रेस से जुड़ी हैं, जबकि छह सदस्य बसपा, पांच जदयू और तीन-तीन सपा, बीजद व अन्नाद्रमुक से हैं। दो-दो सदस्य द्रमुक, राकांपा और तेदेपा से हैं, जबकि एक सदस्य शिवसेना का है। माल्या एक निर्दलीय सदस्य थे, जिन्होंने 5 मई को इस्तीफा दे दिया था।जिन सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उनमें केन्द्रीय मंत्री एम. वेंकैया नायडू, बिरेन्दर सिंह, सुरेश प्रभु, निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल और मुख्तार अब्बास नकवी, पूर्व मंत्री जयराम रमेश, जदयू नेता शरद यादव और वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी शामिल हैं।जहां सेवानिवृत्त हो रहे सबसे अधिक 11 सदस्य उत्तर प्रदेश से हैं, वहीं छह-छह सदस्य तमिलनाडु व महाराष्ट्र से हैं। बिहार से पांच सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे, जबकि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से चार-चार सीटों पर चुनाव होंगे। वहीं मध्य प्रदेश और ओड़िशा से तीन-तीन सीटों, हरियाणा, झारखंड, पंजाब, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना से दो-दो सीटों और उत्तराखंड से एक सीट पर चुनाव होने हैं। इन चुनावों के लिए अधिसूचना 24 मई को जारी की जाएगी।
8. भारत ने नहीं की नेपाल की मदद में कोई कटौती:- भारत ने नेपाल को दी जा रही वार्षिक सहायता को घटाने संबंधी रिपोटरें को नकारते हुए कहा है कि इसमे कोई कटौती नहीं की गई है और प्रतिवर्ष पांच से सात करोड़ डॉलर की सहायता दी जा रही है, वह जारी रहेगी। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत ने नेपाल की वार्षिक सहायता में कटौती कर दी है।विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि इस संबंध मे आंकड़ा भ्रामक और गुमराह करने वाला है, जबकि हकीकत यह है कि विदेश मंत्रालय से नेपाल को सहायता का सालाना बजट तीन सौ से चार सौ करोड़ रपए यानी पांच से सात करोड़ डॉलर है। उन्होंने कहा कि समझने में फर्क शायद इसलिये है, योंकि नेपाल को सहायता की बड़ी राशि नेपाली राजकोष से होकर नहीं जाती है।स्वरूप ने कहा कि करीब तीन हजार नेपाली विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति और सुरक्षा, आर्थिक एवं अन्य संगठनों से जुड़े सात सौ नेपाली नागरिकों को प्रशिक्षण में 75 करोड़ रपए खर्च होते हैं। इसके अलावा बीस छोटी परियोजनाओं में भारत योगदान दे रहा है। भारत ने नेपाल को 600 बसें एवं एम्बुलेंस, 1000 ट्यूबवेल और आयोडीन युक्त नमक प्रदान किया है जिसकी कीमत 50 करोड़ रपए है। इसके अतिरिक्त नदी तट बंधों के निर्माण के लिये 40 करोड़ रपए और समेकित जाँच चौकी, तराई क्षेत्र में सड़क एवं रेलवे लाइन निर्माण परियोजनाओं के लिये प्रगति के आधार पर धनराशि दी जा रही है। प्रवक्ता ने कहा कि वर्ष 2010 से अब तक नेपाल को 15 करोड़ डॉलर का ऋण दिया गया है। इस प्रकार से उसे 1.65 अरब डॉलर के चार ऋण दिये जा चुके हैं। उसका ब्याज विदेश मंत्रालय वहन करता है। इसके अलावा गोरखा पूर्व सैनिकों के पेंशन के मद में सालाना जाने वाले 1800 करोड़ रपए यानी 30 करोड़ डॉलर की गिनती नहीं की गयी है। उन्होंने बताया कि नेपाल में पिछले साल आए भूकंप के बाद चले ऑपरेशन मैत्री में 400 करोड़ रपए या सात करोड़ डॉलर का व्यय हुआ। इस प्रकार से हम कम से कम पांच से सात करोड़ डॉलर हर साल नेपाल को भेज रहे हैं।
9. रैंकिंग की कसौटी पर परखे जाएंगे देश के कृषि संस्थान:- देश के कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता जांचने और परखने के लिए इनकी रैंकिंग की जाएगी। इन संस्थानों में शिक्षण की गुणवत्ता, अनुसंधान, विकास और कृषि प्रसार के आधार पर रैकिंग सूची तैयार की जाएगी। केंद्रीय और रायों के कृषि विश्वविद्यालयों के इसी मूल्यांकन के आधार पर उन्हें वित्तीय मदद और वहां कार्यरत वैज्ञानिकों को तरजीह मिलेगी। राष्ट्रीय स्तर पर कृषि संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों के इस मूल्यांकन का मूल उद्देश्य उन्हें गुणवत्ता युक्त शिक्षा और अनुसंधान के लिए प्रोत्साहित करना है। साथ ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली रैंकिंग में स्थान बनाने के लिए सशक्त करना भी है। अखिल भारतीय स्तर पर करीब सौ कृषि संस्थानों और केंद्र व राय कृषि विश्वविद्यालयों को इसमें शुमार किया जाएगा। रैंकिंग के लिए कुल पांच मानक निर्धारित किए गए हैं। इनमें पहला शिक्षण का नतीजा होगा, जिसे सर्वाधिक 35 फीसद अंक दिए जाएंगे। जबकि 33 फीसद अंक अनुसंधान एवं विकास को और 20 फीसद कृषि प्रसार को दिए जाएंगे। बाकी 12 फीसद अंकों में पांच फीसद बेहतर लिंकेज और सात फीसद सर्वेक्षण को मिलेंगे, जिसमें उस संस्थान की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनने वाली छवि को शामिल किया जाएगा। अप्रैल के तीसरे हफ्ते में राष्ट्रीय स्तर पर सभी कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य कृषि संस्थानों के प्रमुखों को बुलाकर इस मसले पर गंभीर चर्चा हुई थी। केंद्रीय कृषि रायमंत्री डॉ. संजीव बालियान की पहल पर कृषि वैज्ञानिकों की शीर्ष संस्था नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइसेंस (एनएएएस) ने इसके मानक तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। मानकों के निर्धारण में उत्कृष्ट कृषि शिक्षा पर यादा जोर दिया गया है, जो विश्व की खाद्य सुरक्षा, पौष्टिक तत्वों की उपलब्धता के लिए अहम है। वैश्विक जरूरतों के मद्देनजर भारतीय कृषि वैज्ञानिकों से बड़ी उम्मीदें हैं। इसीलिए अनुसंधान को बड़ी तरजीह दी गई है। कुल 73 कृषि विश्वविद्यालयों में शिक्षा और अनुसंधान के कार्य हो रहे हैं। इस नई व्यवस्था से इन संस्थानों को खुद का आकलन करने में काफी सहूलियत होगी। तीसरा महत्व आधुनिक प्रौद्योगिकी और उसे किसानों के खेतों तक पहुंचाने वाली प्रसार प्रणाली को दिया गया है। खेती के लिए जरूरी तत्वों की आपूर्ति इन्हीं विश्वविद्यालयों से हो सकती है, जिनमें बीज, पशु वीर्य और अन्य पौध प्रमुख हैं।
10. मनोहर निर्विरोध चुने गए आइसीसी के पहले स्वतंत्र चेयरमैन:- भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) का अध्यक्ष पद छोड़ने के दो दिन बाद गुरुवार को वरिष्ठ क्रिकेट प्रशासक शशांक मनोहर को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) का निर्विरोध पहला स्वतंत्र चेयरमैन चुना गया। पेशे से वकील 58 वर्षीय मनोहर का दो साल का कार्यकाल तत्काल प्रभाव से शुरू होगा। चुनाव प्रक्रिया के तहत आइसीसी के सभी निदेशकों को एक व्यक्ति को नामित करने का अधिकार था, जो आइसीसी का मौजूदा या पूर्व निदेशक होना चाहिए। दो या अधिक पूर्ण सदस्य निदेशकों के सहयोग से नामित व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार होगा, जो 23 मई को होना है। मनोहर इस पद के लिए अकेले उम्मीदवार थे, लिहाजा उनका चयन निर्विरोध हुआ है। चुनाव की निगरानी कर रहे ऑडिट समिति के स्वतंत्र अध्यक्ष अदनान जैदी ने प्रक्रिया पूरी होने का एलान किया और मनोहर को विजयी घोषित कर दिया। इससे पहले मनोहर आइसीसी के एडहॉक चेयरमैन थे, उन्होंने यह पद नवंबर 2015 में एन श्रीनिवासन के हटने के बाद संभाला था। इसी साल अप्रैल में आइसीसी के नियमों में बदलाव किया गया था। जिसके तहत वैश्विक संस्था की कार्यकारी परिषद ने फैसला किया था कि वह गुप्त मतदान के जरिये अध्यक्ष का चुनाव करेगा और नए अध्यक्ष की स्थिति स्वतंत्र होगी। आइसीसी के मुताबिक उसे किसी भी बोर्ड, राष्ट्रीय या प्रांतीय पद से जुड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
• पूर्ण परिषद ने बोर्ड द्वारा प्रस्तावित संवैधानिक सुधारों को मंजूरी दे दी।
• इसके तहत अध्यक्ष का पद 2016 में खत्म हो जाएगा।
• मनोहर पहले 2008 से 2011 तक बीसीसीआइ अध्यक्ष रहे।
• जगमोहन डालमिया के निधन के बाद उन्हें अक्टूबर, 2015 में फिर चुना गया।
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