दस दिन बाद दो दिन की यात्र पर अमेरिका पहुंच रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यात्र चुनौतीपूर्ण होगी। इसमें परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश को लेकर होने वाली वोटिंग पर सरकार की कूटनीति की असल परीक्षा होगी। वैसे तो अमेरिका ने इस मुद्दे पर भारत का खुला समर्थन कर राह आसान करने में मदद की है, लेकिन सरकार मान रही है कि रास्ता अभी आसान नहीं है। दरअसल, चीन की ओर से अटकाए जा रहे रोड़े से पार पाने की चुनौती सबसे बड़ी है।1अमेरिका ने एनएसजी में भारत के प्रवेश के मुद्दे पर विरोध करने वाले देशों को असलियत भी समझाई है। अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता मार्क टोनर ने आशा जताई है कि पाकिस्तान इस वास्तविकता को समङोगा और अपने असंतोष को दूर करेगा। पाकिस्तान का मानना है कि भारत के एनएसजी का सदस्य बनने से क्षेत्र में परमाणु हथियारों की होड़ बढ़ेगी। टोनर ने कहा कि हमें यह समझना चाहिए कि एनएसजी में प्रवेश का संबंध हथियारों के मुकाबले या परमाणु हथियारों से कुछ लेना-देना नहीं है। यह परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल से जुड़ा मामला है। ओबामा ने ही पिछले वर्ष भारत यात्र के दौरान एनएसजी में भारत के प्रवेश का प्रस्ताव किया था। अमेरिका भारत की मदद कर रहा है, लेकिन उसे मालूम है कि आगे का रास्ता अभी आसान नहीं है। सबसे बड़ा विरोध चीन का है।
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