• बदलते वैश्विक माहौल में भारत और रूस के बीच रिश्ते पहले जैसे गर्माहट वाले नहीं रहे लेकिन दोनो देश सहयोग के नए आयाम तलाश रहे हैं। इसमें कृषि ऐसा क्षेत्र है, जहां रिश्तों की नई कहानी लिखी जा सकती है। खास तौर पर रूस में खाली पड़े जमीन पर खेती कर भारत अपनी खाद्यान्न जरूरत को पूरी करने पर विचार कर रहा है।
• इस बारे में दोनों देशों के बीच पहले भी बात हुई है। वैसे चीन पहले ही रूस में पट्टे पर जमीन लेकर अपनी आबादी के लिए अनाज व फल-सब्जियां उपजा रहा है। इसी तर्ज पर भारत भी कुछ वर्षो बाद रूस की मदद ले सकता है।
• पिछले हफ्ते विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रूस के उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन के बीच हुई द्विपक्षीय बातचीत में कृषि एक अहम मुद्दा रहा है। बैठक में कृषि से जुड़े तमाम क्षेत्रों में सहयोग को प्रगाढ़ करने पर सहयोग देने के लिए एक समिति गठित की गई है।
• विदेश मंत्रलय के सूत्रों का कहना है कि कृषि और फार्मास्युटिकल्स दो ऐसे क्षेत्र हैं जो आने वाले दिनों में भारत व रूस के द्विपक्षीय रिश्तों को बिल्कुल नया आयाम देंगे। भारत व रूस के द्विपक्षीय रिश्ते अभी तक बहुत हद तक रक्षा व ऊर्जा तक ही सीमित हैं।
• दोनो देश अब दूसरे क्षेत्रों में विस्तार करना चाहते हैं। वैसे भी भारत अपनी रक्षा जरूरत के लिए अब दूसरे देशों पर रूस से भी ज्यादा निर्भर रहने लगा है।
• स्वराज और रोगोजिन के बीच हुई मुलाकात में इस संदर्भ में कई मुद्दों पर चर्चा हुई है जिसके आधार पर आने वाले दिनों में कदम उठाए जाएंगे
• भारत हाल के दिनों में अन्य देशों में भी खाद्यान्न उत्पादन कर अपनी जरूरत पूरी करने पर योजना पर गंभीर हुआ है। दो वर्ष पहले जब भारत में दाल का संकट हुआ था तब भारत ने म्यांमार, मोजाम्बिक और नामीबिया में दलहन उपजाने पर वहां की सरकारों से बात की थी।
• खाद्य तेल का उत्पादन दूसरे देशों में करने के लिए भी भारत इच्छुक है। इसके लिए थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ चर्चा की जा रही है। लेकिन जानकार मान रहे हैं रूस के पास काफी खाली जमीन है और भविष्य में खाद्यान्न की भारी मांग को देखते हुए वहां खेती कर अनाज भारत लाने का तरीका एक बढ़िया नुस्खा हो सकता है।
• रूस खुद चीन को साइबेरिया और पूर्वी सीमा के राज्यों में कृषि में निवेश करने के लिए आकर्षित कर रहा है। रूस की जमीन कुछ खास तरह के कृषि उत्पादों के लिए काफी उपजाऊ है। भारत वहां खेती कर उत्पादों को घरेलू बाजार के लिए ला सकता है। पिछले वर्ष दोनों देशों के बीच कृषि स्तरीय अंतरमंत्रलयी आयोग की बैठक में भी इस बारे में चर्चा हुई थी।
• यह काम चीन पहले से ही रूस की पूर्वी सीमा पर कर रहा है। पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत व चीन को आने वाले कुछ दशकों में अपनी जरूरत के कृषि उत्पादों का एक बड़ा हिस्सा दूसरे देशों में उपजाना पड़ेगा। बढ़ती आबादी, जमीन की उर्वरा शक्ति में हो रहे क्षरण आदि की वजह से भारत के लिए भी अपनी घरेलू जमीन से पूरी आबादी का पेट भरना मुश्किल होगा।
• इन दोनो देशों में बड़े पैमाने पर होने वाले औद्योगीकरण को भी एक कारण बताया गया था। दाल और खाद्य तेल उत्पादन में यह स्थिति अभी ही बन गई है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 60 फीसद खाद्य तेल बाहर से आयात कर रहा है। दलहन भी बड़े पैमाने पर आयात किया जाता रहा है।
• इस बारे में दोनों देशों के बीच पहले भी बात हुई है। वैसे चीन पहले ही रूस में पट्टे पर जमीन लेकर अपनी आबादी के लिए अनाज व फल-सब्जियां उपजा रहा है। इसी तर्ज पर भारत भी कुछ वर्षो बाद रूस की मदद ले सकता है।
• पिछले हफ्ते विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रूस के उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन के बीच हुई द्विपक्षीय बातचीत में कृषि एक अहम मुद्दा रहा है। बैठक में कृषि से जुड़े तमाम क्षेत्रों में सहयोग को प्रगाढ़ करने पर सहयोग देने के लिए एक समिति गठित की गई है।
• विदेश मंत्रलय के सूत्रों का कहना है कि कृषि और फार्मास्युटिकल्स दो ऐसे क्षेत्र हैं जो आने वाले दिनों में भारत व रूस के द्विपक्षीय रिश्तों को बिल्कुल नया आयाम देंगे। भारत व रूस के द्विपक्षीय रिश्ते अभी तक बहुत हद तक रक्षा व ऊर्जा तक ही सीमित हैं।
• दोनो देश अब दूसरे क्षेत्रों में विस्तार करना चाहते हैं। वैसे भी भारत अपनी रक्षा जरूरत के लिए अब दूसरे देशों पर रूस से भी ज्यादा निर्भर रहने लगा है।
• स्वराज और रोगोजिन के बीच हुई मुलाकात में इस संदर्भ में कई मुद्दों पर चर्चा हुई है जिसके आधार पर आने वाले दिनों में कदम उठाए जाएंगे
• भारत हाल के दिनों में अन्य देशों में भी खाद्यान्न उत्पादन कर अपनी जरूरत पूरी करने पर योजना पर गंभीर हुआ है। दो वर्ष पहले जब भारत में दाल का संकट हुआ था तब भारत ने म्यांमार, मोजाम्बिक और नामीबिया में दलहन उपजाने पर वहां की सरकारों से बात की थी।
• खाद्य तेल का उत्पादन दूसरे देशों में करने के लिए भी भारत इच्छुक है। इसके लिए थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ चर्चा की जा रही है। लेकिन जानकार मान रहे हैं रूस के पास काफी खाली जमीन है और भविष्य में खाद्यान्न की भारी मांग को देखते हुए वहां खेती कर अनाज भारत लाने का तरीका एक बढ़िया नुस्खा हो सकता है।
• रूस खुद चीन को साइबेरिया और पूर्वी सीमा के राज्यों में कृषि में निवेश करने के लिए आकर्षित कर रहा है। रूस की जमीन कुछ खास तरह के कृषि उत्पादों के लिए काफी उपजाऊ है। भारत वहां खेती कर उत्पादों को घरेलू बाजार के लिए ला सकता है। पिछले वर्ष दोनों देशों के बीच कृषि स्तरीय अंतरमंत्रलयी आयोग की बैठक में भी इस बारे में चर्चा हुई थी।
• यह काम चीन पहले से ही रूस की पूर्वी सीमा पर कर रहा है। पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत व चीन को आने वाले कुछ दशकों में अपनी जरूरत के कृषि उत्पादों का एक बड़ा हिस्सा दूसरे देशों में उपजाना पड़ेगा। बढ़ती आबादी, जमीन की उर्वरा शक्ति में हो रहे क्षरण आदि की वजह से भारत के लिए भी अपनी घरेलू जमीन से पूरी आबादी का पेट भरना मुश्किल होगा।
• इन दोनो देशों में बड़े पैमाने पर होने वाले औद्योगीकरण को भी एक कारण बताया गया था। दाल और खाद्य तेल उत्पादन में यह स्थिति अभी ही बन गई है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 60 फीसद खाद्य तेल बाहर से आयात कर रहा है। दलहन भी बड़े पैमाने पर आयात किया जाता रहा है।
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