1.कैबिनेट ने दी राष्ट्रीय पोषण मिशन को मंजूरी
• प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में 9046 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय पोषण मिशन को हरी झंडी दे दी है। इसको अगले तीन साल में पूरे देश में लागू किया जाएगा। मिशन का काम बच्चों और महिलाओं के कुपोषण को दूर करने के लिए चल रही सभी सरकारी योजनाओं में समन्वय स्थापित करना और उन्हें अंतिम लाभार्थी तक पहुंचाना है।
• मिशन का सबसे अधिक जोर चालू योजनाओं में भ्रष्टाचार और लीकेज पर लगाम लगाना है। इसके लिए सभी लाभार्थियों को आधार नंबर से जोड़ा जाएगा। सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को इंटरनेट पर आधारित ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम से जोड़ा जाएगा, ताकि महिला और बच्चों के विकास पर नजर रखी जा सके।
• बच्चों के विकास को सुनिश्चित करने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों में लंबाई मापने की मशीन भी रखी जाएगी। इस समय आंगनबाड़ी केंद्रों में रजिस्टर पर उपस्थिति दर्ज की जाती है, जिससे समय पर लाभार्थियों की उपस्थित का पता नहीं लग पाता है। नए मिशन के तहत आंगनबाड़ी सेविकाओं को मोबाइल, टेबलेट या कंप्यूटर के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जाएगा।
• केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि तीन साल में पूरे मिशन पर 9046 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इस मिशन का उद्देश्य नवजात बच्चों, उनकी माताओं और गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ लड़कियों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना है।
• नड्डा ने कहा कि देश में महिलाओं और बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने की कई योजनाओं चल रही हैं। लेकिन इसके बावजूद शारीरिक व मानसिक रूप से अल्प विकसित बच्चों की बड़ी संख्या अब भी बरकरार है।
• महिला व बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने बताया कि इस मिशन को तीन सालों के भीतर तीन चरणों में देश के सभी जिलों में लागू किया जाएगा। चालू वित्तीय वर्ष में इसे 315, अगले साल 215 और 2019-20 में बाकी बचे जिलों मे लागू कर दिया जाएगा।
• प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में 9046 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय पोषण मिशन को हरी झंडी दे दी है। इसको अगले तीन साल में पूरे देश में लागू किया जाएगा। मिशन का काम बच्चों और महिलाओं के कुपोषण को दूर करने के लिए चल रही सभी सरकारी योजनाओं में समन्वय स्थापित करना और उन्हें अंतिम लाभार्थी तक पहुंचाना है।
• मिशन का सबसे अधिक जोर चालू योजनाओं में भ्रष्टाचार और लीकेज पर लगाम लगाना है। इसके लिए सभी लाभार्थियों को आधार नंबर से जोड़ा जाएगा। सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को इंटरनेट पर आधारित ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम से जोड़ा जाएगा, ताकि महिला और बच्चों के विकास पर नजर रखी जा सके।
• बच्चों के विकास को सुनिश्चित करने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों में लंबाई मापने की मशीन भी रखी जाएगी। इस समय आंगनबाड़ी केंद्रों में रजिस्टर पर उपस्थिति दर्ज की जाती है, जिससे समय पर लाभार्थियों की उपस्थित का पता नहीं लग पाता है। नए मिशन के तहत आंगनबाड़ी सेविकाओं को मोबाइल, टेबलेट या कंप्यूटर के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जाएगा।
• केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि तीन साल में पूरे मिशन पर 9046 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इस मिशन का उद्देश्य नवजात बच्चों, उनकी माताओं और गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ लड़कियों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना है।
• नड्डा ने कहा कि देश में महिलाओं और बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने की कई योजनाओं चल रही हैं। लेकिन इसके बावजूद शारीरिक व मानसिक रूप से अल्प विकसित बच्चों की बड़ी संख्या अब भी बरकरार है।
• महिला व बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने बताया कि इस मिशन को तीन सालों के भीतर तीन चरणों में देश के सभी जिलों में लागू किया जाएगा। चालू वित्तीय वर्ष में इसे 315, अगले साल 215 और 2019-20 में बाकी बचे जिलों मे लागू कर दिया जाएगा।
2. परमाणु पनडुब्बी देंगी चीन की चुनौती का जवाब
• हिन्द महासागर में चीन की चौधराहट रोकने को भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बन रहे गठजोड़ में भी नौसेना खास भूमिका निभाएगी।
• नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने शुक्रवार को सालाना प्रेस कांफ्रेंस में परमाणु पनडुब्बी निर्माण परियोजना के शुरू होने का एलान किया। उन्होंने नई बन रही परमाणु पनडुब्बी कलवरी के जल्द ही नौसेना में शामिल होने की बात कही। उन्होंने कहा,भारतीय नौसेना परंपरागत और नई सुरक्षा चुनौतियों के हर खतरे से निपटने की रणनीति के लिए पूरी तैयारी में है। इसी के तहत छह नई परमाणु पनडुब्बी का निर्माण किया जा रहा है। यह बेहद गोपनीय परियोजना है, इसलिए सिर्फ यही कह सकते हैं कि इसके निर्माण का काम शुरू हो गया है।
• चीनी नौसेना की हालिया समय में हिन्द महासागर में बढ़ी उपस्थिति से भारत पर मंडरा रहे खतरों के सवाल पर उन्होंने कहा कि चीनी पनडुब्बियों को पाकिस्तान और श्रीलंका के निकट तैनात करने का सिलसिला 2013 में शुरू हुआ था। इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। हम निगरानी कर रहे हैं कि वे कहां जा रहे हैं।
• यदि ग्वादर से चीन की पीएलए नेवी के सैन्य जहाज आपरेट होते हैं तो यह सुरक्षा के लिहाज से खतरा है। हमें इसे इसी रूप में देखना चाहिए। नौसेना इस चुनौती का सामना करने को हमेशा तैयार और तत्पर है।
• डोकलाम सीमा पर चीन से विवाद के दौरान चीनी नौसेना की बढ़ी सक्रियता की खबरों की भी नौसेना प्रमुख ने पुष्टि की। कहा, हिन्द महासागर में अमूमन चीनी नौसेना के आठ जहाज तैनात रहते हैं। बीते अगस्त में इनकी संख्या 14 हो गई थी। इसी दौरान डोकलाम विवाद चरम पर था।
• फिलीपींस में पिछले महीने आसियान देशों की बैठक के दौरान हाल ही में भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया की हिन्द महासागर और एशिया प्रशांत क्षेत्र के समुद्री इलाके में चीन की दादागिरी रोकने पर संयुक्त रूप से काम करने पर सहमति बनी थी। चीन ने उसकी समुद्री ताकत की घेरेबंदी के लिए बन रही इस चौकड़ी की आलोचना भी की थी।
• एडमिरल लांबा ने इसमें नौसेना के अहम भूमिका निभाने के साफ संकेत दिए।1नौसेना की परमाणु पनडुब्बी ‘चक्र’ में एक अमेरिकी अधिकारी के जाने की रूसी मीडिया में आई खबरों को लांबा ने खारिज कर दिया। चार दिसंबर को नौसेना दिवस है।
• उससे पूर्व परंपरागत प्रेस कांफ्रेंस में लांबा ने भारतीय नौसेना के आधुनिकीकरण की शुरू हुई पहल से भी रूबरू कराया। वर्तमान में नौसेना 34 नए जहाजों का निर्माण कर रही है। करीब 40,000 करोड़ रुपये की परियोजना में निजी शिपयार्ड कंपनियों को भी शामिल किया जाएगा। इसी तरह स्वदेश में बन रहे एयरक्राफ्ट कैरियर आइएसी-1 का निर्माण प्रगति पर है।
• नौसेना इसे 2020 तक बेड़े में शामिल करने की उम्मीद कर रही है। हल्के लड़ाकू विमान तेजस को शामिल न करने पर लांबा ने कहा, नौसेना को एयरक्राफ्ट कैरियर से उड़ान भरने वाला एलसीए चाहिए। तेजस अभी जमीन से उड़ान भरने के लिए ही तैयार हो रहा है।
3. चीन के साथ 'गुपचुप' करार का मालदीव में विरोध, पैदा हो सकता है नया राजनीतिक संकट
• मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। एक साल पहले उसने भारत के साथ यह समझौता करने की बात कही थी। मालदीव की संसद ने 1,000 पन्नों के एफटीए समझौते पर बुधवार को महज 30 मिनट में सत्ताधारी दल के 30 सदस्यों की मौजूदगी में मुहर लगा दी, जबकि संसद में कुुल 85 सदस्य हैं।
• विपक्षी सदस्यों ने एफटीए पर वोटिंग का बहिष्कार किया। उनका आरोप था कि यह समझौता जल्दबाजी में किया जा रहा है। उनके मुताबिक इस महत्वपूर्ण मसले को जनता से छिपाने के लिए जानबूझकर मीडिया को दूर रखा गया।
वहीं, कारोबारी समुदाय से भी इस मसले पर विचार-विमर्श नहीं किया। उल्लेखनीय है कि हिंद महासागर में
• चीन की मौजूदगी और प्रभाव इस समझौते के बाद बढ़ जाएगा। जहां भारत चीन के प्रभाव को कम करना चाहता है। इस समझौते के तहत दोनों देश ज्यादातर सामान पर शून्य फीसदी आयात शुल्क पर अपने यहां आयात करेंगे।
• भारत के लिए चिंता की बात क्यों
• चीन और मालदीव के बीच कारोबार संतुलन हमेशा से चीन के पक्ष में रहा है। अंदेशा है कि एफटीए से घाटा आगे भी बढ़ता जाएगा। मालदीव में भी श्रीलंका की तरह कर्ज संकट पैदा हो सकता है।
• चीन मालदीव में अपनी नौसेना के लिए बेस बनाना चाहता है जिससे भारत की चिंता बढ़ सकती है। मालदीव चीन के समुद्री सिल्क रूट में पार्टनर बनने को राजी हो गया है।
• चीन की सरकार भी मालदीव में बड़े पैमाने पर निवेश कर उसे लुभा रही है। उसने माले और हुलहुमाले द्वीप को जोड़ने वाले एक पुल के लिए 10 करोड़ डॉलर की मदद की पेशकश की है।
• विपक्षी सदस्यों ने एफटीए पर वोटिंग का बहिष्कार किया। उनका आरोप था कि यह समझौता जल्दबाजी में किया जा रहा है। उनके मुताबिक इस महत्वपूर्ण मसले को जनता से छिपाने के लिए जानबूझकर मीडिया को दूर रखा गया।
वहीं, कारोबारी समुदाय से भी इस मसले पर विचार-विमर्श नहीं किया। उल्लेखनीय है कि हिंद महासागर में
• चीन की मौजूदगी और प्रभाव इस समझौते के बाद बढ़ जाएगा। जहां भारत चीन के प्रभाव को कम करना चाहता है। इस समझौते के तहत दोनों देश ज्यादातर सामान पर शून्य फीसदी आयात शुल्क पर अपने यहां आयात करेंगे।
• भारत के लिए चिंता की बात क्यों
• चीन और मालदीव के बीच कारोबार संतुलन हमेशा से चीन के पक्ष में रहा है। अंदेशा है कि एफटीए से घाटा आगे भी बढ़ता जाएगा। मालदीव में भी श्रीलंका की तरह कर्ज संकट पैदा हो सकता है।
• चीन मालदीव में अपनी नौसेना के लिए बेस बनाना चाहता है जिससे भारत की चिंता बढ़ सकती है। मालदीव चीन के समुद्री सिल्क रूट में पार्टनर बनने को राजी हो गया है।
• चीन की सरकार भी मालदीव में बड़े पैमाने पर निवेश कर उसे लुभा रही है। उसने माले और हुलहुमाले द्वीप को जोड़ने वाले एक पुल के लिए 10 करोड़ डॉलर की मदद की पेशकश की है।
4. सम्राट अकिहितो पांच माह बाद छोड़ेंगे राजगद्दी, प्रिंस नारुहितो संभालेंगे पद
• जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी ने शुक्रवार को एलान किया कि सम्राट अकिहितो 30 अप्रैल, 2019 को राजगद्दी छोड़ देंगे। दो सदी में ऐसा पहली बार होगा कि जब दुनिया के इस सबसे पुराने शाही परिवार में कोई सेवानिवृत्त होगा। उनकी जगह क्राउन प्रिंस नारुहितो जापान के नए सम्राट बनाए जाएंगे।• प्रधानमंत्री एबी ने कहा, स्वास्थ्य कारणों से 83 वर्षीय लोकप्रिय सम्राट के पदमुक्त होने की तारीख पर शाही परिषद की विशेष बैठक में निर्णय लिया गया। वह बिना किसी बाधा के लिए गए इस निर्णय से बेहद प्रभावित हैं।
• सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी कि जापान के लोग सम्राट के गद्दी छोड़ने और उत्तराधिकारी प्रिंस क्राउन के गद्दी संभालने का उत्सव मना सकें। अकिहितो के बड़े बेटे 57 वर्षीय प्रिंस क्राउन उनके पदमुक्त होने के अगले दिन राजगद्दी पर आसीन होंगे।
5. फूड चेन में गड़बड़ी तो नहीं बाघों की मौत की वजह
• बाघ संरक्षण के लिहाज से देशभर में कर्नाटक के बाद उत्तराखंड भले ही दूसरे नंबर पर हो, लेकिन इस साल एक के बाद एक लगातार हो रही बाघों की मौत ने वन महकमे की माथे पर बल डाल दिए हैं। विभागीय आंकड़े टटोलें तो पिछले 11 महीनों में 12 बाघों की मौत हुई, जबकि अनाधिकृत आंकड़े यह संख्या 14 बताते हैं। इनमें सर्वाधिक नौ मौतें कार्बेट टाइगर रिजर्व में हुईं।
• ऐसे में सवाल उठने लगा है कि जिस हिसाब से बाघों की संख्या बढ़ी है, क्या उस लिहाज से जंगल में उनके लिए भोजन की भी व्यवस्था है। कहीं खाद्य श्रृंखला (फूड चेन) में तो कोई गड़बड़ नहीं। हालांकि, विभागीय अधिकारी बाघों की मौत को प्राकृतिक मान रहे हैं, लेकिन चिंताएं अपनी जगह हैं।
• यह किसी से छिपा नहीं है कि बाघ संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड ने बेहतर प्रयास किए हैं। खासकर कार्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ इनके बाहरी क्षेत्रों में भी। दोनों टाइगर रिजर्व के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग बाघों के नए घर के रूप में उभरा है। इन प्रयासों की दुनियाभर में प्रशंसा भी हुई है।
• बाघों को बचाने की परवान चढ़ी मुहिम का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि राज्य में बाघों की संख्या 362 पहुंच चुकी है। तस्वीर का दूसरा पहलू भी है और वह है बाघों की लगातार हो रही मौत। राज्य गठन से लेकर अब तक यह चौथा मौका है, जब सालभर में बाघों की मृत्यु का आंकड़ा दहाई का अंक पार कर गया। इनमें भी सबसे अधिक बाघ उस कार्बेट टाइगर रिजर्व में मरे, जो बाघ घनत्व के लिहाज से देशभर में अव्वल है।
• हालांकि, बाघों की मौत के पीछे प्राकृतिक मौत के साथ ही आपसी संघर्ष, हादसे जैसे कारण गिनाए जा रहे हैं, मगर यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि इस वर्ष ऐसा क्या हो गया कि एक के बाद एक बाघ मर रहे हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ डी.चंद की मानें तो राज्य ने बाघ तो बढ़ा लिए हैं, लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि उनके लिए जंगल मे उस हिसाब से भोजन का इंतजाम है या नहीं।
• फिर जंगल का सिद्धांत भी है कि जो शक्तिशाली होगा, वही इलाके पर राज करेगा। कमजोर को या तो जान गंवानी पड़ेगी अथवा क्षेत्र बदलना होगा। कार्बेट में बाघों की मौत के मामले में भी ऐसा संभव है। इस बिंदु पर गहनता से विचार किया जाना चाहिए।बाघों की लगातार हो रही मौत चिंता का कारण है। स्वाभाविक मौत तो कोई बात नहीं, लेकिन कहीं कोई बीमारी अथवा कोई दूसरे कारण तो नहीं। इसे देखते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे गहनता से इसकी पड़ताल करा लें।
• बाघ संरक्षण के लिहाज से देशभर में कर्नाटक के बाद उत्तराखंड भले ही दूसरे नंबर पर हो, लेकिन इस साल एक के बाद एक लगातार हो रही बाघों की मौत ने वन महकमे की माथे पर बल डाल दिए हैं। विभागीय आंकड़े टटोलें तो पिछले 11 महीनों में 12 बाघों की मौत हुई, जबकि अनाधिकृत आंकड़े यह संख्या 14 बताते हैं। इनमें सर्वाधिक नौ मौतें कार्बेट टाइगर रिजर्व में हुईं।
• ऐसे में सवाल उठने लगा है कि जिस हिसाब से बाघों की संख्या बढ़ी है, क्या उस लिहाज से जंगल में उनके लिए भोजन की भी व्यवस्था है। कहीं खाद्य श्रृंखला (फूड चेन) में तो कोई गड़बड़ नहीं। हालांकि, विभागीय अधिकारी बाघों की मौत को प्राकृतिक मान रहे हैं, लेकिन चिंताएं अपनी जगह हैं।
• यह किसी से छिपा नहीं है कि बाघ संरक्षण की दिशा में उत्तराखंड ने बेहतर प्रयास किए हैं। खासकर कार्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ इनके बाहरी क्षेत्रों में भी। दोनों टाइगर रिजर्व के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग बाघों के नए घर के रूप में उभरा है। इन प्रयासों की दुनियाभर में प्रशंसा भी हुई है।
• बाघों को बचाने की परवान चढ़ी मुहिम का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि राज्य में बाघों की संख्या 362 पहुंच चुकी है। तस्वीर का दूसरा पहलू भी है और वह है बाघों की लगातार हो रही मौत। राज्य गठन से लेकर अब तक यह चौथा मौका है, जब सालभर में बाघों की मृत्यु का आंकड़ा दहाई का अंक पार कर गया। इनमें भी सबसे अधिक बाघ उस कार्बेट टाइगर रिजर्व में मरे, जो बाघ घनत्व के लिहाज से देशभर में अव्वल है।
• हालांकि, बाघों की मौत के पीछे प्राकृतिक मौत के साथ ही आपसी संघर्ष, हादसे जैसे कारण गिनाए जा रहे हैं, मगर यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि इस वर्ष ऐसा क्या हो गया कि एक के बाद एक बाघ मर रहे हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ डी.चंद की मानें तो राज्य ने बाघ तो बढ़ा लिए हैं, लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि उनके लिए जंगल मे उस हिसाब से भोजन का इंतजाम है या नहीं।
• फिर जंगल का सिद्धांत भी है कि जो शक्तिशाली होगा, वही इलाके पर राज करेगा। कमजोर को या तो जान गंवानी पड़ेगी अथवा क्षेत्र बदलना होगा। कार्बेट में बाघों की मौत के मामले में भी ऐसा संभव है। इस बिंदु पर गहनता से विचार किया जाना चाहिए।बाघों की लगातार हो रही मौत चिंता का कारण है। स्वाभाविक मौत तो कोई बात नहीं, लेकिन कहीं कोई बीमारी अथवा कोई दूसरे कारण तो नहीं। इसे देखते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे गहनता से इसकी पड़ताल करा लें।
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