सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों में रणनीतिक हिस्सेदारी बेचने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने गुरुवार को इस संबंध में नीति आयोग के एक प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दी। सरकार जिन उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी रणनीति तरीके से बेचेगी उनमें कई पीएसयू मुनाफे में चल रहे हैं। कैबिनेट की बैठक के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संवाददाताओं से कहा कि जिन पीएसयू को रणनीतिक बिक्री के लिए चुना गया है उनके नाम उस समय सार्वजनिक किए जाएंगे जब वे नीलामी के लिए जाएंगे। जेटली ने कहा कि बैठक में विनिवेश और रणनीतिक बिक्री दोनों प्रस्तावों पर चर्चा हुई। कैबिनेट ने कुछ उपक्रमों के संबंध में नीति आयोग के प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। हालांकि उन्होंने कहा कि पीएसयू के विनिवेश के प्रस्ताव पर अलग-अलग विचार किया जाएगा। वित्त मंत्रलय का विनिवेश विभाग संबंधित मंत्रलयों के साथ इस संबंध में अलग से चर्चा करेगा। जेटली ने एक सवाल के जवाब में स्पष्ट किया कि कैबिनेट ने जिस प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दी है उसमें किसी पीएसयू को बंद करने का प्रस्ताव शामिल नहीं है। रणनीतिक बिक्री का मतलब यह है कि पीएसयू में सरकार की हिस्सेदारी घटकर 50 प्रतिशत से कम हो जाएगी। साथ ही सरकार का प्रबंधन से नियंत्रण भी हट जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि क्या विनिवेश के लिए यह उचित समय है, जेटली ने कहा कि सभी उपक्रम महत्वपूर्ण हैं इसलिए समय के बारे में सरकार भलीभांति विचार करेगी। पीएसयू के मूल्यांकन के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनायी जाएगी। यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार चालू वित्त वर्ष के लिए तय किए गए 20,500 करोड़ रुपये के रणनीतिक बिक्री के माध्यम से जुटाने के लक्ष्य को हासिल कर लेगी, जेटली ने कहा कि सरकार ने आधे साल में ही इतना सफर तय कर लिया है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश के माध्यम से 36000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है जिसमें से 8000 करोड़ रुपये जुटाए जा चुके हैं। जेटली ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार सिर्फ इस लक्ष्य को हासिल करने की जल्दबाजी में हिस्सेदारी नहीं बेचेगी। पहली बार पीएसयू की रणनीतिक बिक्री तत्कालीन एनडीए सरकार के कार्यकाल में 1999-2000 में हुई थी। उस समय सरकार ने मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज की 74 प्रतिशत हिस्सेदारी 105.45 करोड़ रुपये में हिन्दुस्तान यूनीलीवर को बेची थी। आखिरी बार भी पीएसयू की रणनीतिक बिक्री वाजपेयी सरकार के दौरान 2003-04 में हुई थी। उस समय सरकार ने जेसप एंड कंपनी में 72 प्रतिशत हिस्सेदारी 18.18 करोड़ रुपये में इंडो वैगन इंजीनियरिंग को बेची थी।
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